"श्रीमद्भगवद्गीता": अवतरणों में अंतर

छो Link
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
Link
टैग: यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 41:
इसमें यह उल्लेख है कि मनुष्य को चाहिए कि वह श्री कृष्ण के भक्त की सहायता से शिक्षण करते हुए भगवद्गीता का अध्ययन करें और स्वार्थ प्रेरित व्याख्याओं के बिना उसे समझने का प्रयास करे। अर्जुन ने जिस प्रकार से साक्षात भगवान कृष्ण श्री गीता सुनी और उसका उपदेश ग्रहण किया, इस प्रकार की स्पष्ट अनुभूति का उदाहरण भगवद् गीता में ही है। यदि उसी गुरु-परंपरा से निजी स्वार्थ से प्रेरित हुए बिना किसी को भगवत गीता समझाने का सौभाग्य प्राप्त हो तो वह समस्त वैदिक ज्ञान तथा विश्व की समस्त शास्त्रों के अध्ययन को पीछे छोड़ देता है। पाठक को भगवत गीता में न केवल 9 शास्त्रों की बातें मिलेंगी अभी तो ऐसी भी बातें मिलेंगी जो अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं है। यही गीता को विशिष्ट मानदंड है। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण द्वारा साक्षात उच्चरित होने के कारण यह पूर्ण आस्तिक विज्ञान है।
 
महाभारत में वर्णित धृतराष्ट्र तथा संजय की वार्ता है। इस महान दर्शन के मूल सिद्धांत का कार्य करती हैं। माना जाता है कि इस दर्शन की प्रस्तुति कुरुक्षेत्र के युद्ध स्थल में हुई जो वैदिक युग से पवित्र स्थल रहा है। इसका प्रवचन भगवान द्वारा मानव जाति के पथ प्रदर्शन हेतु तब किया गया जब वे इस लोक में स्वयं उपस्थित थे। '''[https://www.hindulive.com/bhagavad-geeta/bhagwad-geeta-slok/11/89/?amp और अधिक जानें]<ref>{{Cite web|url=https://www.hindulive.com/bhagavad-geeta/bhagwad-geeta-slok/11/89/|title=जाने भगवद् गीता के पहले श्लोक का महत्व|last=Panwar|first=Deepak|date=2019-11-21|website=Hindu Live|language=en-US|access-date=2019-11-24}}</ref>'''<br />
 
==गीता के १८ अध्याय==