"रामधारी सिंह 'दिनकर'": अवतरणों में अंतर

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== पद ==
1947 में देश स्वाधीन हुआ और वह बिहार विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रध्यापक व विभागाध्यक्ष नियुक्त होकर मुज़फ़्फ़रपुर पहुँचे। 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह दिल्ली आ गए। दिनकर 12 वर्ष तक संसद-सदस्य रहे, बाद में उन्हें सन 1964 से 1965 ई. तक भागलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया। लेकिन अगले ही वर्ष भारत सरकार ने उन्हें 1965 से 1971 ई. तक अपना हिन्दी सलाहकार नियुक्त किया और वह फिर दिल्ली लौट आए। फिर तो ज्वार उमरा और रेणुका, हुंकार, रसवंती और द्वंद्वगीत रचे गए। रेणुका और हुंकार की कुछ रचनाऐं यहाँ-वहाँ प्रकाश में आईं और अग्रेज़ प्रशासकों को समझते देर न लगी कि वे एक ग़लत आदमी को अपने तंत्र का अंग बना बैठे हैं और दिनकर की फ़ाइल तैयार होने लगी, बात-बात पर क़ैफ़ियत तलब होती और चेतावनियाँ मिला करतीं। चार वर्ष में बाईस बार उनका तबादला किया गया।
 
== प्रमुख कृतियाँ ==
उन्होंने सामाजिक और आर्थिक समानता और शोषण के खिलाफ कविताओं की रचना की। एक प्रगतिवादी और मानववादी कवि के रूप में उन्होंने ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं को ओजस्वी और प्रखर शब्दों का तानाबाना दिया। उनकी महान रचनाओं में [[रश्मिरथी]] और [[परशुराम की प्रतीक्षा]] शामिल है। [[उर्वशी]] को छोड़कर दिनकर की अधिकतर रचनाएँ वीर रस से ओतप्रोत है। [[भूषण]] के बाद उन्हें [[वीर रस]] का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है।
 
ज्ञानपीठ से सम्मानित उनकी रचना उर्वशी की कहानी मानवीय प्रेम, वासना और सम्बन्धों के इर्द-गिर्द घूमती है। [[उर्वशी]] स्वर्ग परित्यक्ता एक अप्सरा की कहानी है। वहीं, कुरुक्षेत्र, महाभारत के शान्ति-पर्व का कवितारूप है। यह दूसरे विश्वयुद्ध के बाद लिखी गयी रचना है। वहीं सामधेनी की रचना कवि के सामाजिक चिन्तन के अनुरुप हुई है। [[संस्कृति के चार अध्याय]] में दिनकरजी ने कहा कि सांस्कृतिक, भाषाई और क्षेत्रीय विविधताओं के बावजूद भारत एक देश है। क्योंकि सारी विविधताओं के बाद भी, हमारी सोच एक जैसी है।
 
विस्तृत दिनकर साहित्य सूची नीचे दी गयी है-
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=== काव्य ===
 
1. बारदोली-विजय संदेश (1928)
 
2. प्रणभंग (1929)
 
3. रेणुका (1935)
 
4. हुंकार (1938)
 
5. रसवन्ती (1939)
 
6.द्वंद्वगीत (1940)
 
7. कुरूक्षेत्र (1946)
 
8. धूप-छाँह (1947)
 
9. सामधेनी (1947)
 
10. बापू (1947)
 
11. इतिहास के आँसू (1951)
 
12. धूप और धुआँ (1951)
 
13. मिर्च का मजा (1951)
 
14. रश्मिरथी (1952)
 
15. दिल्ली (1954)
 
16. नीम के पत्ते (1954)
 
17. नील कुसुम (1955)
 
18. सूरज का ब्याह (1955)
 
19. चक्रवाल (1956)
 
20. कवि-श्री (1957)
 
21. सीपी और शंख (1957)
 
22. नये सुभाषित (1957)
 
23. लोकप्रिय कवि दिनकर (1960)
 
24. उर्वशी (1961)
 
25. परशुराम की प्रतीक्षा (1963)
 
26. आत्मा की आँखें (1964)
 
27. कोयला और कवित्व (1964)
 
28. मृत्ति-तिलक (1964)
 
29. दिनकर की सूक्तियाँ (1964)
 
30. हारे को हरिनाम (1970)
 
31. संचियता (1973)
 
32. दिनकर के गीत (1973)
 
33. रश्मिलोक (1974)
 
34. उर्वशी तथा अन्य शृंगारिक कविताएँ (1974)
 
=== गद्य ===
 
35. मिट्टी की ओर 1946
 
36. चित्तौड़ का साका 1948
 
37. अर्धनारीश्वर 1952
 
38. रेती के फूल 1954
 
39. हमारी सांस्कृतिक एकता 1955
 
40. भारत की सांस्कृतिक कहानी 1955
 
41. संस्कृति के चार अध्याय 1956
 
42. उजली आग 1956
 
43. देश-विदेश 1957
 
44. राष्ट्र-भाषा और राष्ट्रीय एकता 1955
 
45. काव्य की भूमिका 1958
 
46. पन्त-प्रसाद और मैथिलीशरण 1958
 
47. वेणुवन 1958
 
48. धर्म, नैतिकता और विज्ञान 1969
 
49. वट-पीपल 1961
 
50. लोकदेव नेहरू 1965
 
51. शुद्ध कविता की खोज 1966
 
52. साहित्य-मुखी 1968
 
53. राष्ट्रभाषा आंदोलन और गांधीजी 1968
 
54. हे राम! 1968
 
55. संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ 1970
 
56. भारतीय एकता 1971
 
57. मेरी यात्राएँ 1971
 
58. दिनकर की डायरी 1973
 
59. चेतना की शिला 1973
 
60. विवाह की मुसीबतें 1973
 
61. आधुनिक बोध 1973
 
[[आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी]] ने कहा था "दिनकरजी अहिंदीभाषियों के बीच हिन्दी के सभी कवियों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय थे और अपनी मातृभाषा से प्रेम करने वालों के प्रतीक थे।" [[हरिवंश राय बच्चन]] ने कहा था "दिनकरजी को एक नहीं, बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिन्दी-सेवा के लिये अलग-अलग चार ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने चाहिये।" [[रामवृक्ष बेनीपुरी]] ने कहा था "दिनकरजी ने देश में क्रान्तिकारी आन्दोलन को स्वर दिया।" [[नामवर सिंह]] ने कहा है "दिनकरजी अपने युग के सचमुच सूर्य थे।"
प्रसिद्ध साहित्यकार [[राजेन्द्र यादव]] ने कहा था कि दिनकरजी की रचनाओं ने उन्हें बहुत प्रेरित किया। प्रसिद्ध रचनाकार [[काशीनाथ सिंह]] के अनुसार 'दिनकरजी राष्ट्रवादी और साम्राज्य-विरोधी कवि थे।'
 
=== रचनाओं के कुछ अंश ===
किस भांति उठूँ इतना ऊपर?
मस्तक कैसे छू पाउँ मैं?
ग्रीवा तक हाथ न जा सकते,
उँगलियाँ न छू सकती ललाट
वामन की पूजा किस प्रकार,
पहुँचे तुम तक मानव विराट?
 
: ''रे रोक युधिष्ठर को न यहाँ, जाने दे उनको स्वर्ग धीर
: ''पर फिरा हमें गांडीव गदा, लौटा दे अर्जुन भीम वीर --([[हिमालय]] से)
 
: ''क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो;
: ''उसको क्या जो दन्तहीन, विषहीन, विनीत, सरल हो। -- ([[कुरुक्षेत्र]] से)
 
: ''पत्थर सी हों मांसपेशियाँ, लौहदंड भुजबल अभय;
: ''नस-नस में हो लहर आग की, तभी जवानी पाती जय। -- (रश्मिरथी से)
 
: ''हटो व्योम के मेघ पंथ से, स्वर्ग लूटने हम जाते हैं;
: ''दूध-दूध ओ वत्स तुम्हारा, दूध खोजने हम जाते है।
 
: ''सच पूछो तो सर में ही, बसती है दीप्ति विनय की;
: ''सन्धि वचन संपूज्य उसी का, जिसमें शक्ति विजय की।
 
: ''सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है;
: ''बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।"
 
: ''दो न्याय अगर तो आधा दो, पर इसमें भी यदि बाधा हो,
: ''तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम।-- (रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 3)
 
: ''जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। -- (रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 3)।।
वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा संभालो
चट्टानों की छाती से दूध निकालो
है रुकी जहाँ भी धार शिलाएं तोड़ो
पीयूष चन्द्रमाओं का पकड़ निचोड़ो
(वीर से)
 
== सम्मान ==