"परिसंचरण तंत्र": अवतरणों में अंतर

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यह पेशी-ऊतक से निर्मित चार कोष्ठोंवाला खोखला अंग, वक्ष के भीतर, ऊपर, दूसरी पर्शुका और नीचे की ओर छठी पर्शुका के बीच में बाई ओर स्थित है। इसके दोनों ओर दाहिने ओर बाएँ फुप्फुस हैं। इसका आकार कुछ त्रिकोण के समान है, जिसका चौड़ा आधार ऊपर और विस्तृत निम्न धारा (lower border) नीचे की ओर स्थित है। इसपर एक दोहरा कलानिर्मित आवरण चढ़ा हुआ है, जिसका हृदयावरण (Pericardium) कहते हैं। इसकी दोनों परतों के बीच में थोड़ा स्निग्ध द्रव भरा रहता है।
 
हृदय भीतर से चार कोष्ठों में विभक्त है। दो कोष्ठ दाहिनी ओर और दो बाई ओर हैं। दाहिनी और बाई ओर के कोष्ठ के बीच में एक विभाजक पट (septum) हैं, जो दोनों ओर के रुधिर को मिलने नहीं देता। प्रत्येक ओर एक कोष्ठ ऊपर है, जो अलिंद (Auricle) कहलाता है और नीचे का कोष्ठ निलय (Ventricle) कहा जाता है। दाहिने निलय में ऊर्ध्व ओर अधो महाशिराओं (superior and inferior vena cava) के दो छिद्र हैं, जिनके द्वारा रुधिर लौटकर हृदय में आता है। एक बड़ा छिद्र अलिंद और निलय के बीच में हैं, जिसपर कपाटिका (valve) लगी हुई है। हृदय के संकुचन के समय अलिंद के संकुचित होने पर कपाटिकाएँ निलय की ओर खुल जाती है, जिससे रुधिर निलय में चला जाता है। दाहिने निलय में फुप्फुसी धमनी (pulmonaryartery) का भी छिद्र है। निलय के संकुचित होने पर रुधिर फुप्फुसी धमनी में होता हुआ फुप्फुसों में चला जाता है। इसी प्रकार बाई ओर भी ऊपर अलिंद है और नीचे निलय। बाएँ निलय में चार फुप्फुसी शिराओं के छिद्र हैं, जिनके द्वारा फुप्फुसों में शुद्ध हुआ (ऑक्सीजनयुक्त) रुधिर लौटकर आता है और अलिंद के सकुचन करने पर वह निलय और अलिंद के बीच के छिद्र द्वारा निलय में चला जाता है। बांई ओर के इस छिद्र पर भी कपाटिका लगी हुई है। बाएँ निलय में महाधमनी (aorta) का छिद्र है, जिससे रुधिर निकलकर महाध्मनी में चला जाता है और उसकी अनेक शाखाओं द्वारा सारे शरीर में संचार करके शिराओं द्वारा लौटकर फिर हृदय के दाहिने अलिंद में लौट आता है। ह्रदय के संकुचन और फैलाव के द्वारा रुधिर पर परिवहन के लिए दबाव बनाया जाता है जिसे हम ह्रदय के धड़कन द्वारा महशुश करते है इसे ही ह्रदय स्पन्द कहते है सामान्य अवस्था में यह 72 बार प्रति मिनट वयस्क मनुष्य में होता है
 
=== हृदय की कपाटिकाएँ ===