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जेवर का इतिहास
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== स्थान ==
[[ग्रेटर नोएडा]] के नगरों]] में स्थित है और नोएडा से ६० कि॰मी॰ दूर है। जेवर [[यमुना नदी]] का उत्तर पूर्व के किनारे स्थापित है। उसके [[निर्देशांक]] है २८.१३ उ॰ और ७७.५५ पु॰। यह नगर समुद्र के स्तर से १९५ मी॰ (६३९ फ़ीट) है। यहा से उत्तर की ओर 15 किमी. पर हरियाणा का बाडर हैं
 
 
 
'''इतिहास'''
 
जेवर शहर का नामकरण प्रसिद्ध ऋषि के नाम पर हुआ ।जेवर से 1 किलोमीटर की दूरी पर महर्षि जावल ऋषि का आश्रम मौजूद है जहां पर उन्होंने तपस्या की थी। इसी इसी कारण इस शहर का नाम जेवर पड़ गया।
 
जेवर शहर पर मैना मेवाड़ीओं का राज राज था।जो शहर के लोगों पर बहुत अत्याचार किया करते थे। उनका अत्याचार इस कदर बढ़ गया था कि अगर कोई बारात जेवर आती थी तो नई दुल्हन को एक रात उनके यहां बितानी पड़ती थी।
 
उन मैना मेवाड़ीओ के अत्याचार से दुखी होकर शहर के कुछ लोग राजस्थान के कलानौर गए और वहां के राजा जी से अपनी समस्या बताई और अपनी सुरक्षा करने के लिए प्रार्थना की। राजा ने अपनी भाइयों और सगे संबंधियों को जेवर भेज दिया । उन योद्धाओं ने शहर के लोगों से कहा अपने-अपने घरों के दरवाजों पर गेरू रंग के हाथ के पंजे के निशान लगा देना जिससे हमें यह पता चल जाए कि यह आपका घर है। चढ़ाई से पहले सभी लोगों ने ऐसा ही किया। चढ़ाई से कुछ देर पहले एक मैना मेवाड़ी औरत बाथरूम जाने के लिए उठी पहले घर में बाथरूम नहीं हुआ करते थे इसलिए वह बाहर खुले में जा रही थी जब उसने बाहर देखा तो पाया कि सभी लोगों ने अपने घरों के बाहर पंजों के निशान लगाए हुए हैं उसने सोचा शायद ग्रहण पड़ने वाला होगा तभी तो इन लोगों ने पंजों के निशान लगाए हैं तो उसने भी ऐसा ही किया और बाथरूम करके अपने घर में जाकर सो गई । कुछ देर बाद उन राजपूत योद्धाओं ने उन मैना मेवाड़ीओं के घरों पर चढ़ाई कर दी और सुबह तक उन्होंने सारे मैना मेवाड़ीओं को उनके बाल बच्चों सहित काट दिया।सुबह पता चला कि एक मैना मेवाड़ी का परिवार बच गया है क्योंकि उसने अपने घर के बाहर पंजे के निशान लगा दिए थे जब वह परिवार उन राजपूत योद्धाओं से दया की भीख मांगने लगा तो उन योद्धाओं ने उस परिवार को जीवनदान दे दिया । मेरी इस बात की सत्यता का प्रमाण यह है कि आज भी इस शहर में वह परिवार जीवित है। शहर के पुराने रिकॉर्ड के अनुसार 52000 बीघे का रकवा था जिसको लोगों ने आधा आधा कर दिया आधा उन राजपूत योद्धाओं को दे दिया गया और आधा उन लोगों ने स्वयं रख लिया।
 
फिर इस शहर पर दिल्ली सल्तनत का राज हो गया इसे दिल्ली सल्तनत में नहीं मिलाया गया और राजपूत राज ही रहा।
 
ब्रिटिश राज के दौरान जेवर के आखिरी जमींदार ठाकुर रघुराज सिंह थे जिनकी क बेटी थी । 1950 के बाद जब सरकार ने जमीदारी प्रथा को खत्म कर दिया ठाकुर रघुराज सिंह उसके कुछ समय बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो गए जो उनकी बेटी थी उसका विवाह कर दिया गया जयपुर में ।उनकी एक हवेली थी जो आज भी जेवर न है जिसे पुरानी हवेली कहा जाता है वह हवेली अब अपनी सबसे बुरे दौर से गुजर रही है।
 
धीरे धीरे राजपूत योद्धाओं के वंशजों ने अपनी जमीन को अपनी शान -ओ -शौकत बनाए रखने के लिए लोगों को दान कर दिया आज भी ठाकुर रघुराज सिंह के द्वारा कुरेशी लोगों को कब्रिस्तान के तौर पर प्रयोग करने के लिए दी गई जमीन को कुरैशी को लोगों ने कब्जे में कर लिया है जिस पर आज भी कोर्ट में केस चल रहा है यह जमीन टप्पल रोड और वैना रोड पर, ठाकुर मार्केट के पास स्थित है। वैना रोड पर जो ठाकुर मार्केट स्थित है वह दो राजपूत योद्धा ठाकुर जानी पवार, ठाकुर मुंशी पवार के वंशजों के घर हैं।
 
'''ठाकुर जानी पवार ठाकुर मुंशी पवार'''
 
यह वह दो राजपूत योद्धा थे जिनके बहादुरी के चर्चे दूर-दूर तक मशहूर थे। उनके पिता का नाम ठाकुर बादाम पवार था । जहां जानी पवार बहुत ही गुस्सैल स्वभाव के थे वहीं दूसरी ओर ठाकुर मुंशी पवार बहुत ही सीधे और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। यह दोनों युद्ध कला में इस तरह निपुण थे कि कोई भी व्यक्ति इन लोगों में से किसी से भी किसी प्रकार का युद्ध या रंगमंच पर सामने नहींआते थे। यह लोग दान देने में बहुत आगे थे इन्होंने अपनी सारी जमीन और जायदाद का लोगों में दान कर दिया जो आज का ‌ मांडलपुरिया मोहल्ला है यह इन्हीं की दान की गई जमीन पर खड़ा है जिसमें चमार जाति के लोग निवास करते है।
 
जेवर के ठाकुरों को बैलगाड़ी की रेस करने में बहुत आनंद आता था इसीलिए वह महंगे से महंगे बैल दुनिया-भर से खरीद कर लाते थे और उनको देसी घी पिलाया करते थे और काजू-बदाम भी खिलाया करते थे।
 
 
"ठाकुर साहब मुझे माफ कीजिए मुझे यह बैल अपनी जान से भी ज्यादा प्रिय है मैं आपको यह बैल नहीं दे सकता"। तो फिर ठाकुर साहब ने कहा कि "आप इस बेल की दुगनी है जितनी आप चाहे कीमत मुझसे ले सकते हैं मैं देने के लिए तैयार हूं आप मुझे यह बैल दे दीजिए"। लेकिन चौधरी ने ठाकुर साहब को हाथ जोड़ कर एक बार फिर मना कर दिया इस बार ठाकुर साहब को गुस्सा आ गया उन्होंने उस चौधरी से कहा कि" मैं आपके बैल को आपके यहां से ले जाऊंगा चाहे बाद में इसे वापस ले ले मैं आज रात ही आपके घर से आपके बैल को ले जाऊंगा"। चौधरी ने उनकी इस बात सुनकर उनसे कहा कि ठीक है " यदि आप इस बेल को यहां से ले जाने में कामयाब हो गए तो मैं आपको मान जाऊंगा कि आप वही योद्धा हैं जिसके बारे में कहानियां मशहूर हैं कि वह अपनी जवान के बहुत ही पक्के हैं। ठाकुर साहब ने कहा "आज रात का इंतजार करना मैं आऊंगा और आपके बैल को ले जाऊंगा"। चौधरी को पता था ठाकुर साहब आएंगे और बैल ले जाएंगे इसीलिए उसने एक प्लान बनाया उसने अपनी बैल को अपने घर के सबसे अंदर वाले कमरे में बांध दिया और उसी कमरे में अपने बेटे और बहू को सुला दिया कमरे के दरवाजे पर बाहर से एक ताला लगा दिया और चार पांच लोगों को बुलाकर एक भारी पत्थर उठाकर दरवाजे के सामने रख दिया और उसके सामने अपनी चारपाई बिछा ली कमरे के दरवाजे की चाबी को अपने सर के नीचे रख कर लेट गया और ठाकुर साहब के आने का इंतजार करने लगा ठाकुर साहब उसकी चारपाई से कुछ दूरी पर बैठे थे और उसके सोने का इंतजार कर रहे थे जैसे ही चौधरी की नींद लगी वह चौधरी सा चौधरी के पास आए और उसके सर के नीचे से कमरे के दरवाजे की चाबी निकाली फिर उसकी चारपाई को अकेले ही उठाकर उस दरवाजे से दूर कर दिया फिर उस पत्थर को उठाकर उसे ही दरवाजे से दूर कर दिया चाबी से ताला खोलकर वह अंदर दाखिल हो गए और अंदर जाकर वह बैल को बाहर ले आए और फिर दरवाजे पर ताला लगा दिया पत्थर दरवाजे के सामने रख दिया और चौधरी की चारपाई को उठाकर भी वापस वैसे ही रख दिया जैसे वह थी और बैल लेकर घर आ गए। सुबह जब चौधरी की नींद खुली तो उसने सब कुछ वैसा ही देखा उसे लगा कि ठाकुर साहब रात नहीं आए थे उसने लोगों को जमा किया और कहा कि "देखो ठाकुर साहब ने कहा था कि वो आएंगे और मेरा बैल ले जाएंगे लेकिन वह तो आए ही नहीं "। उसने अपनी चारपाई हटाकर चाबी निकाली और वह पत्थर हटवा कर दरवाजा खोला जैसे ही उसने दरवाजा खोला वह हक्का-बक्का रह गया क्योंकि कमरे के अंदर बैल नहीं था वह सोचता -सोचता ठाकुर साहब के घर जा पहुंचा और ठाकुर साहब ने उसे देखा और बैल की ओर इशारा करके अपनी मूछों पर ताव देने लगे और उससे कहा कि "चौधरी अपने बैल को ले जा सकते हो"।
 
 
 
 
 
 
 
 
बैलगाड़ी की रेस के लिए पास के गांव में बैल देखने गए थे वहां उन्हें एक चौधरी का बैल पसंद आ ग उन्होंने उस चौधरी से उस बैल को बेचने के लिए कहा तो चौधरी ने कहा कि " ठाकुर साहब मुझे माफ़ करना मैं यह बैल नहीं बेच सकता मुझे यह पहल अपनी जान से प्यारा है"। मगर ठाकुर जानी पवार ने कहा "मुझे यह बैल पसंद आ गया है आप इसकी कीमत दुगनी या दस गुनी कीमत ले सकते हैं मगर मुझे यह बैल चाहिए। आप अपनी सारी ताकत लगा ले मैं इस बेल को आपके यहां से ले जाऊंगा वह भी आज रात को ही। चौधरी साहब ने कहा कि" अगर ठाकुर साहब आप यह बैल यहां से ले गए तो मैं आपको मान जाऊंगा कि आप वह योद्धा हैं जिसके बारे में कहानियां मशहूर है"। चौधरी ने बैल को बचाने के लिए अपने घर के सबसे अंदर वाले कमरे में उस बैल को बांध दिया। अपनी बेटी और बहू को बैल वाले कमरे में सुला दिया और कमरे का दरवाजा बंद करके ताला लगा दिया 4-5 लोगों को बुलाकर दरवाजे के बाहर एक बड़ा सा पत्थर रख दिया और दरवाजे के बाहर अपनी चारपाई पर लेट गया उसे पता था ठाकुर जानी पवार अपनी बहन का पक्का है वह बैल लेने जरूर आएगा और मैं उनको पकड़ लूंगा और वह अपनी चुनौती पूरी नहीं कर पाएंगे। वह जाग रहा था कि उसकी आंख लग गई ठाकुर जॉनी पवार वहीं पर बैठ कर उसके सोने का इंतजार कर रहे थे जैसे ही वह सोया ठाकुर साहब उसके पास आए उसके सर के नीचे से कमरे की चाबी निकाली और उसकी चारपाई को उठाकर दरवाजे से दूर कर दिया और फिर वह बड़ा सा पत्थर जिसको चौधरी ने चार पांच आदमियों के साथ मिलकर सात उसे उठाकर दरवाजे के सामने रखा था । ठाकुर साहब ने अकेले ही दरवाजे से दूर रख दिया, चाबी से दरवाजा खोलकर अंदर गए और वहां से बिना कोई आवाज करें उस बैल को कमरे से बाहर आते फिर उन्होंने दरवाजे पर ताला लगाया उसके सामने वह बड़ा सा पत्थर रखा और फिर उसके सामने उस चौधरी की चारपाई को वापस वैसे ही रख दिया और बैल लेकर चले आऐ ।सुबह जब वह उठा तो सब कुछ वैसे ही था पत्थर भी वही रखा था ताला भी लग रहा था।चौधरी को लगा कि ठाकुर साहब तो केवल बातों की ही शेर है उसने आसपास के लोगों को इकट्ठा किया और कहा कि ठाकुर साहब ने उससे चुनौती दी थी कि वह उसके बैल को ले जाएंगे लेकिन वह आए ही नहीं जैसे ही लोगों ने और चौधरी ने ताला खोला उसे पता चला कि ठाकुर साहब बैल लेकर चले गए हैं।या
 
एक बार जेवर शहर के पास स्थित मेहंदीपुर जो कि मुस्लिमों का गांव है।यह गांव अपनी चोरी के किस्सो के लिए मशहूर है। पुरानी समय में इस गांव में एक से बढ़कर एक चोर रहा करते थे जो कि अब नहीं रहे हैं। पुराने समय में इस गांव को चोरों का मेहंदीपुर भी कहा जाता था। मेहंदीपुर के चोर जेवर शहर की एक महिला की गाय भैंस चुरा कर अपने गांव ले गए।उनके गांव में जाने का किसी में साथ नहीं था क्योंकि वह बहुत ही ज्यादा खूंखार थे जब औरत अपनी समस्या लेकर ठाकुर जानी पवार और मुंशी पवार के पास है तो उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि शाम तक आपकी भैंस आपको मिल जाएगी । जब वह मेहंदीपुर गए तो उनको देखकर उन लोगों ने उन पर हमला कर दिया और दोनों ने ही सारे गांव को परास्त कर उस औरत की गाय भैंस छुड़ाकर उस औरत को वापस कर दिए।
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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