"राम": अवतरणों में अंतर
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== अवतार रूप में प्राचीनता ==
[[वैदिक साहित्य]] में 'राम' का उल्लेख प्रचलित रूप में नहीं मिलता है। [[ऋग्वेद]] में केवल दो स्थलों पर ही 'राम' शब्द का प्रयोग हुआ है<ref>ऋग्वेद पदानां अकारादि वर्णक्रमानुक्रमणिका, संपादक- स्वामी विश्वेश्वरानंद एवं नित्यानंद, निर्णय सागर प्रेस, मुंबई, संस्करण-1908, पृ०-348.</ref> (१०-३-३ तथा १०-९३-१४)। उनमें से भी एक जगह काले रंग (रात के अंधकार) के अर्थ में<ref>ऋग्वेदसंहिता (श्रीसायणाचार्य कृत भाष्य एवं भाष्यानुवाद सहित) भाग-5, चौखम्बा कृष्णदास अकादमी, वाराणसी, संस्करण-2013, पृष्ठ-3892.</ref> तथा शेष एक जगह ही व्यक्ति के अर्थ में प्रयोग हुआ है<ref>ऋग्वेदसंहिता (श्रीसायणाचार्यजी कृत भाष्य एवं भाष्यानुवाद सहित) भाग-5, चौखम्बा कृष्णदास अकादमी, वाराणसी, संस्करण-2013, पृष्ठ-4406.</ref>; लेकिन
ब्राह्मण साहित्य में 'राम' शब्द का प्रयोग [[ऐतरेय ब्राह्मण]] में दो स्थलों पर<ref name="अ">वैदिक-पदानुक्रमकोषः, ब्राह्मण-आरण्यक विभाग, द्वितीय खण्ड, विश्वेश्वरानन्द वैदिक शोध संस्थान, लवपुर, संस्करण-1936, पृष्ठ-852.</ref> (७-५-१{=७-२७} तथा ७-५-८{=७-३४})हुआ है; परन्तु वहाँ उन्हें 'रामो मार्गवेयः' कहा गया है, जिसका अर्थ आचार्य सायण के अनुसार 'मृगवु' नामक स्त्री का पुत्र है।<ref>ऐतरेयब्राह्मणम् (सायण भाष्य एवं हिन्दी अनुवाद सहित) भाग-2, संपादक एवं अनुवादक- डॉ० सुधाकर मालवीय, तारा प्रिंटिंग वर्क्स, वाराणसी, संस्करण-1983, पृष्ठ-1201.</ref> [[शतपथ ब्राह्मण]] में एक स्थल पर<ref name="अ" /> 'राम' शब्द का प्रयोग हुआ है (४-६-१-७)। यहाँ 'राम' यज्ञ के आचार्य के रूप में है तथा उन्हें 'राम औपतपस्विनि' कहा गया है।<ref>शतपथब्राह्मण (सटीक), भाग-1, विजयकुमार गोविंदराम हासानंद, दिल्ली, संस्करण-2010, पृष्ठ-657.</ref> तात्पर्य यह कि प्रचलित राम का अवतारी रूप [[वाल्मीकि रामायण|वाल्मीकीय रामायण]] एवं [[पुराण|पुराणों]] की ही देन है।
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