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इसी को श्लोक के रूप में इस प्रकार कहते हैं -
:श्लोके षष्ठं गुरु ज्ञेयं सर्वत्र लघु पंचमम्। <br />द्विचतुष्पादयोर्ह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः॥
==वैदिक उदाहरण==
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