"गोरखनाथ": अवतरणों में अंतर

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[[File:Guru Gorakhnath.jpg|thumb|गोरखनाथ, पुरातन प्रतिमा (गोरखनाथ मठ, ओदाद्र, [[पोरबन्दर]], [[गुजरात]], [[भारत]])]]
Amit Singh gorakhpur ke navapar me rahne Wala he sabse buddhiman hai
'''गोरखनाथ''' या '''गोरक्षनाथ''' जी महाराज प्रथम शताब्दी के पूर्व [[नाथ सम्प्रदाय|नाथ योगी]] के थे ( प्रमाण भी हेहै राजा विक्रमादित्य के द्वारा बनाया गया पञ्चाङ्ग जिन्होंने विक्रम संवत की सुरुआतशुरुआत प्रथम सताब्दीशताब्दी से की थी जब कि गुरु गोरक्ष नाथ जी राजा भरथरीभर्तृहरि एवं इनके छोटे भाई राजा विक्रमादित्य के समय मे थे ) <ref>Omacanda Hāṇḍā. Buddhist Art & Antiquities of Himachal Pradesh, Up to 8th Century A.D. Indus Publishing. p. 71.</ref><ref>Briggs (1938), p. 249</ref> गुरु गोरखनाथ जी ने पूरे [[भारत]] का भ्रमण किया और अनेकों ग्रन्थों की रचना की। गोरखनाथ जी का मन्दिर [[उत्तर प्रदेश]] के [[गोरखपुर]] नगर में स्थित है।<ref>{{cite web|url=http://www.bbc.com/hindi/india-39317123|title=राजनीति की धूरीधुरी रहा है योगी का गोरखनाथ मठ}}</ref> गोरखनाथ के नाम पर इस जिले का नाम गोरखपुर पड़ा है।
महर्षि अत्रि ले दिव्य हजार वर्ष साधना गरि यो जगत् को कारण जो उसलाई पुत्र रूपमा प्राप्त गरूँ भन्ने हठ गरे पछि, भगवान् ब्रह्मा विष्णु र शिवले एकैपटक दर्शन दिनु हुन्छ ! परन्तु जगत् एकमात्र जगत् को कारण खोजी गर्ने अत्रिले ती त्रिदेवलाई तपाईं हरूको हो ?भनी सोद्धा हामी तीन नै जगतका संयुक्त कारण हौँ! तिम्रा तपस्याले प्रसन्न हामी समय अाएपछि हाम्रो अा- अाफ्नो अंशले तिम्रो पुत्रका रूपमा अवतरित हुनेछौं भनी अन्तरधान हुनुहुन्छ! सोही बमोजिम ब्रह्मा-चन्द्रमा, विष्णु- दत्तात्रय र शिव-दुर्वाशा ऋषिका रूपमा प्रकट भएको कथा प्रसंग श्रीमद्भागवत महापुराणमा छ! यसरी गुरु दत्तात्रयका मध्यमले नाथ योग सम्प्रदायको सुरुवात भएको र नव योगेश्वरहरूले नै नौ नाथ यसै अन्तरगत मत्स्येन्द्रनाथ, गुरु गोरखनाथ अादि का रूपमा अवतरित भएको प्रसंग युक्तिसंगत छ!(अाचार्य गोविन्द रेग्मी -तनहूं वन्दिपुर) [[File:Guru Gorakhnath.jpg|thumb|गोरखनाथ, पुरातन प्रतिमा (गोरखनाथ मठ, ओदाद्र, [[पोरबन्दर]], [[गुजरात]], [[भारत]])]]
'''गोरखनाथ''' या '''गोरक्षनाथ''' जी महाराज प्रथम शताब्दी के पूर्व [[नाथ सम्प्रदाय|नाथ योगी]] के थे ( प्रमाण भी हे राजा विक्रमादित्य के द्वारा बनाया गया पञ्चाङ्ग जिन्होंने विक्रम संवत की सुरुआत प्रथम सताब्दी से की थी जब कि गुरु गोरक्ष नाथ जी राजा भरथरी एवं इनके छोटे भाई राजा विक्रमादित्य के समय मे थे ) <ref>Omacanda Hāṇḍā. Buddhist Art & Antiquities of Himachal Pradesh, Up to 8th Century A.D. Indus Publishing. p. 71.</ref><ref>Briggs (1938), p. 249</ref> गुरु गोरखनाथ जी ने पूरे [[भारत]] का भ्रमण किया और अनेकों ग्रन्थों की रचना की। गोरखनाथ जी का मन्दिर [[उत्तर प्रदेश]] के [[गोरखपुर]] नगर में स्थित है।<ref>{{cite web|url=http://www.bbc.com/hindi/india-39317123|title=राजनीति की धूरी रहा है योगी का गोरखनाथ मठ}}</ref> गोरखनाथ के नाम पर इस जिले का नाम गोरखपुर पड़ा है।
 
गुरु गोरखनाथ जी के नाम से ही [[नेपाल]] के [[गोरखा|गोरखाओं]] ने नाम पाया। नेपाल में एक जिला है [[गोरखा जिला|गोरखा]], उस जिले का नाम गोरखा भी इन्ही के नाम से पड़ा। माना जाता है कि गुरु गोरखनाथ सबसे पहले यहीं दिखे थे। गोरखा जिला में एक [[गुफा]] है जहाँ गोरखनाथ का पग चिन्ह है और उनकी एक मूर्ति भी है। यहाँ हर साल वैशाख पूर्णिमा को एक उत्सव मनाया जाता है जिसे 'रोट महोत्सव' कहते हैं और यहाँ [[मेला]] भी लगता है। गुरू गोरक्ष नाथ जी का एक स्थान उच्चे टीले गोगा मेड़ी,राजस्थान हनुमानगढ़ जिले में भी है।इनकी मढ़ी सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के नजदीक वेरावल में है। इनके साढ़े बारह पंथ होते हैं।