"अन्द्रेय बेली": अवतरणों में अंतर

छो लेख में नई जानकारियाँ जोड़कर उसे आगे बढ़ाया है। लेकिन लेख अभी अधूरा है।
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इस बीच 1903 में ही अन्द्रेय बेली ने प्रसिद्ध रूसी कवि अलिक्सान्दर ब्लोक को एक पत्र लिखा और जल्दी ही दोनों के बीच नियमित रूप से पत्र-व्यवहार शुरू हो गया। एक साल बाद ही बेली ने पितिरबूर्ग नगर की यात्रा की और अलिक्सान्दर ब्लोक से पहली मुलाक़ात की। 1903 में ही अन्द्रेय बेली ने विश्वविद्यालय की अपनी शिक्षा भी पूरी कर ली। जनवरी 1904 में मसक्वा में ’वेसी’ (तुला) नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ। अन्द्रेय बेली एकदम शुरू में ही इस पत्रिका के साथ जुड़ गए थे और लगातार सहयोग करने लगे थे। 1904 में बेली ने मसक्वा विश्वविद्यालय के इतिहास और दर्शनशास्त्र संकाय में दाख़िला ले लिया। लेकिन साल भर बाद ही उन्होंने कक्षाओं में जाना बन्द कर दिया। इस फ़ैकल्टी में उनके प्राध्यापक थे — दर्शनशास्त्री बरीस फ़ोख़्त। 1906 में उन्होंने विश्वविद्यालय से अपना नाम कटा लिया और अपना जीवन पूरी तरह से साहित्य को समर्पित कर दिया।
 
1904 में कवि अलिक्सान्दर ब्लोक से परिचय होने के बाद अन्द्रेय बेली और ब्लोक की पत्नी ल्युबोफ़ मिन्दील्येयवा के बीच प्रेम हो गया, जिसपर ब्लोक ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की और इस प्रेम में असफल होने के बाद अन्द्रेय बेली छह माह के लिए विदेश चले गए। विदेश से लौटकर 1909 में बेली ने ’मुसागेत’ के नाम से एक प्रकाशनगृह खोला, जो देशी-विदेशी प्रतीकवादी कवियों की कविताओं के सँग्रह और प्रतीकवादी आलोचना-प्रत्यालोचना की किताबें प्रकाशित करता था। 1911 में बेली ने सिसली (इटली) के रास्ते ट्यूनिस, मिस्र और फ़िलीस्तीन की यात्राएँ कीं। इससे पहले 1910 में उन्होंने नए युवा कवियों के लिए कविता में लय, कविता का लहज़ा और शब्दों व ध्वनियों के उतार-चढ़ाव में गणितिय ज्ञान के उपयोग के बारे में अनेक व्याख्यान दिए और इस तरह रूसी कविता और विज्ञान को आपस में जोड़ने का अपना नज़रिया पेश किया।
 
1912 में अन्द्रेय बेली ने ’श्रम और दिवस’ (Труды и дни) नामक एक पत्रिका का सम्पादन किया, जिसमें मुख्यत: प्रतीकवादी सौन्दर्यशास्त्र के सैद्धान्तिक प्रशनों से जुड़े लेख प्रकाशित किए जाते थे। 1914 में जब प्रथम विश्वयुद्ध शुरू हुआ और रूस ने उस युद्ध में भाग लेना शुरू किया, उस समय बेली अपने नए गुरु रुदोल्फ़ श्तेनर के साथ स्वीट्जरलैण्ड के दोरनाख़ नगर में रहस्यवादी धार्मिक थियोसोफ़िक पन्थ ’अन्त्रोपॉसोफ़ी’ में दीक्षित हो रहे थे। ’अन्त्रोपॉसोफ़ी’ पन्थ के अनुयायी जर्मन कवि ग्योथे के दर्शन में विश्वास रखते थे और उन्होंने मिलकर दोरनाख़ नगर में ’ग्योथेअनुमा’ मन्दिर बनाया था। गुरु रुदोल्फ़ श्तेनर ने अपने शिष्यों के साथ मिलकर ख़ुद अपने हाथों से इस मन्दिर की इमारत बनाई थी। प्रथम विश्वयुद्ध शुरू होने से कुछ पहले ही बेली ने लेपजिग के पास रियुगन द्वीप पर स्थित रियोक्केन गाँव के क़ब्रिस्तान में फ़्रेडरिक नीत्शे की क़ब्र पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
 
1916 में अन्द्रेय बेली यानी बरीस बुगाएफ़ को रूसी सेना में शामिल होने के लिए बुलाया गया और वे स्वीडन, नोर्वे, इंगलैण्ड और फ़्रांस के रास्ते रूस पहुँचे। उनकी पत्नी आस्या उनके साथ वापिस रूस नहीं लौटी थी। 1917 की रूसी समाजवादी क्रान्ति के बाद अन्द्रेय बेली मसक्वा के जनसंस्कृति विभाग मेंं नए प्रोलितारी लेखकों को ’कविता और कथा के सिद्धान्त’ विषय पर व्याख्यान देने लगे।
 
1919 में बेली स्वीटजरलैण्ड में अपनी पत्नी के पास दोरनाख़ लौटना चाहते थे, लेकिन सितम्बर 1921 में ही उन्हें देश छोड़ने की इजाज़त दी गई। आस्या से मुलाक़ात होने पर पति-पत्नि के बीच अनबन सामने आ गई। अक्तूबर 1921 से नवम्बर 1923 तक अन्द्रेय बेली बर्लिन में रहे। उन्हीं दिनो रूस में क्रान्तिकारी सैन्य परिषद के अध्यक्ष लेफ़ त्रोत्स्की ने समाचारपत्र ’प्राव्दा’ में लिखा — बेली मर चुका है और अब वह किसी भी रूप में पुनर्जीवित नहीं होगा। रूसी कवि व्लदीस्लाफ़ ख़दासेविच ने और अन्य संस्मरणकारों ने उस दौर की बेली की स्थिति का वर्णन करते हुए लिखा है कि वे एक बुरी तरह से टूटे हुए इंसान में बदल गए थे। बर्लिन के बारों में बन्द होकर उनका जीवन एक नाचती हुई त्रासदी में बदल चुका था। उनकी एक परिचित चित्रकार नताल्या सिविर्त्सोवा-गबरीचोफ़्स्कया ने अन्द्रेय बेली को याद करते हुए उनके बारे में लिखा है — उन्हें नाचना बेहद पसन्द था। उन्होंने जैसे इन नाचों में ही ख़ुद को झोंक दिया था। वे बड़ा ख़ूबसूरत नृत्य करते थे। नवम्बर 1923 में मसक्वा लौटने के बाद भी वे रोज़ नाचा करते थे। अन्द्रेय बेली ने उन दिनों को याद करते हुए लिखा है —
 
"अब मैं दूसरी विधाओं की ओर आकर्षित हो रहा हूँ। संगीत की मेरी दीक्षा फॉक्सट्रॉट, बोस्टन और जिमी के संगीत में बदल गई है। अच्छे जॉज्बैण्ड की जगह अब मैं परिसेवल की घण्टियों का संगीत पसन्द करता हूँ। अब भविष्य में मैं फॉक्सट्रॉट-कविताएँ लिखना चाहता हूँ"
 
रूसी कवियत्री मरीना त्स्विताएवा ने उनकी फॉक्सट्रॉट-कविताओं पर टिप्पणी करते हुए लिखा है — अन्द्रेय बेली के फॉक्सट्रॉट का मतलब था — कोड़ामार कविताएँ, जिन्हें हम सीटी की धुन पर नाच नहीं, बल्कि ईसा की धुन पर नाच कह सकते हैं।
 
मार्च 1925 में बेली ने कूचिना (मसक्वा अंचल के बलाशिख़ा नगर का एक मोहल्ला) में दो कमरे किराए पर ले लिए। 8 जनवरी 1934 को अन्द्रेय बेली को दिल का दौरा पड़ा और वे अपनी नई पत्नी क्लावदिया निकलाएव्ना की गोद में सिर रखे-रखे दूसरी दुनिया की तरफ़ निकल पड़े। ये माना जाता है कि इससे पहले क्रीमिया के कक्तिबेल नगर में उन्हें लू लग गई थी और यह लू ही उनको हुए हृदयाघात का कारण बनी। 1909 में प्रकाशित अपने काव्य-सँग्रह ’राख’ में उन्होंने अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी करते हुए लिखा था —
 
सुनहरी चमक में विश्वास था मेरा
 
और सूर्य के तीरों से मैं मर गया
 
इस सदी को मापा मैंने विचारों से
 
लेकिन जीवन जीने से डर गया
 
रूसी कवि ओसिप मन्देलश्ताम ने अन्द्रेय बेली की स्मृति में अनेक कविताएँ लिखीं और अपनी कविताओं की उस सीरीज को नाम दिया — "माथे की गर्म हड्डी और नीली आँखें, दुनिया ने बरगलाया, युवा रोष को दे पाँखें।" अन्द्रेय बेली के निधन पर जारी शोक-सन्देश ’इज़्वेस्तिया’ नामक समाचार-पत्र में प्रकाशित हुआ, जिसके नीचे कवि लिअनीद पस्तिरनाक और कवि बरीस पिलन्याक के हस्ताक्षर थे। इस शोक सन्देश में अन्द्रेय बेली को सोवियत साहित्य का एक प्रमुख नाम नहीं माना गया था, लेकिन तीन बार उन्हें ’जीनियस’ बताया गया था। बाद में अन्द्रेय बेली के मस्तिष्क को ’मानव मस्तिष्क संस्थान’ की प्रयोगशाला में सुरक्षित रखा गया।
 
== निजी जीवन ==
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