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== कारक के भेद ==
[[हिन्दीसंस्कृत]] में आठ कारक होते हैं।थे। उन्हें विभक्ति चिह्नों सहित नीचे देखा जा सकता है-
 
कारक - - विभक्ति चिह्न (परसर्ग)
 
1. '''कर्ता''' प्रथमा -- नेकरनेवाला
 
2. '''कर्म''' द्वितीया -- कोकार्य जिसपर हो
 
3. '''करण''' -- सेजिससे, केजिसका द्वारामाध्यम से
 
4. '''संप्रदान''' -- के लिएजिसको, कोजिसके लिए
 
5. '''अपादान''' -- सेजिस (पृथक)स्थान से
 
6. '''संबंध''' -- का, के, की, रा, रे, री ,ना, ने, नीजिसका
 
7. '''अधिकरण''' --में, पे, परस्थानसूचक
 
8. '''संबोधन''' -- हेपुकारने !के अरे ! ओ!लिए
 
कारकहिन्दी चिह्नमें इनके अर्थ स्मरण करने के लिए इस पद की रचना की गई हैं-
:कर्ता ने अरु कर्म को, करण रीति से जान।
:संप्रदान को, के लिए, अपादान से मान।।
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=== कर्ता कारक ===
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया (कार्य) के करने वाले का बोध होता है वह ‘कर्ता’ कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्नहिन्दी पर्याय ‘ने’ है। इस ‘ने’ चिह्न का वर्तमानकाल और भविष्यकाल में प्रयोग नहीं होता है। इसका सकर्मक धातुओं के साथ भूतकाल में प्रयोग होता है। जैसे- 1.राम ने रावण को मारा। 2.लड़की स्कूल जाती है।
काम करने वाले को कर्त्ता कहते हैं। जैसे –
अध्यापक ने विद्यार्थियों को पढ़ाया।
इस वाक्य में ‘अध्यापक’ कर्त्ता है, क्योंकि काम करने वाला अध्यापक है।
 
पहले वाक्य में क्रिया का कर्ता राम है। इसमें ‘ने’ कर्ता कारक का विभक्ति-चिह्नजताता है। इस वाक्य में ‘मारा’ भूतकाल की क्रिया है। ‘ने’ का प्रयोग प्रायः भूतकाल में होता है। दूसरे वाक्य में वर्तमानकाल की क्रिया का कर्ता लड़की है। इसमें ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग नहीं हुआ है।
 
;विशेष-
 
(1) भूतकाल में अकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ भी ने परसर्ग (विभक्ति चिह्न) नहीं लगता है। जैसे-वह हँसा।
 
(2) वर्तमानकाल व भविष्यतकाल की सकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ ने परसर्ग का प्रयोग नहीं होता है। जैसे-वह फल खाता है।
पंक्ति 62:
 
=== कर्म कारक ===
क्रिया का फल जिस संज्ञा या सर्वनाम को प्राप्त होता है, वह कर्म कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्नहिन्दी पर्याय ‘को’ है। यह चिह्न भी बहुत-से स्थानों पर नहीं लगता।
कार्य का फल अर्थात प्रभाव जिसपर पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं। जैसे –
राम ने आम को खाया।
पंक्ति 71:
पहले वाक्य में ‘मारने’ की क्रिया का फल साँप पर पड़ा है। अतः साँप कर्म कारक है। इसके साथ परसर्ग ‘को’ लगा है।
 
दूसरे वाक्य में ‘लिखने’ की क्रिया का फल पत्र पर पड़ा। अतः पत्र कर्म कारक है। इसमें कर्म कारक का विभक्तिहिंदी चिह्नपर्याय ‘को’ नहीं लगा।
पत्र राम के द्वारा लिखा गया|
 
=== करण कारक ===
संज्ञा आदि शब्दों के जिस रूप से क्रिया के करने के साधन का बोध हो अर्थात् जिसकी सहायता से कार्य संपन्न हो वह करण कारक कहलाता है। इसके विभक्ति-चिह्नहिन्दी पर्याय ‘से’ के ‘द्वारा’ है।
जिसकी सहायता से कोई कार्य किया जाए, उसे करण कारक कहते हैं। जैसे –
वह कलम से लिखता है।
पंक्ति 82:
जैसे- 1.अर्जुन ने जयद्रथ को बाण '''से''' मारा। 2.बालक गेंद '''से''' खेल रहे है।
 
पहले वाक्य में कर्ता अर्जुन ने मारने का कार्य ‘बाण’ से किया। अतः ‘बाण से’ करण कारकपद है। दूसरे वाक्य में कर्ता बालक खेलने का कार्य ‘गेंद से’ कर रहे हैं। अतः ‘गेंद से’ करण कारकपद है।
 
=== संप्रदान कारक ===
संप्रदान का अर्थ है-देना। अर्थात कर्ता जिसके लिए कुछ कार्य करता है, अथवा जिसे कुछ देता है उसे व्यक्त करने वाले रूप को संप्रदान कारक कहते हैं। इसका लेनेहिन्दी वालेपर्याय को‘के संप्रदानलिए’ कारक कहते हैं।है।
इसके विभक्ति चिह्न ‘के लिए’ को हैं।
जिसके लिए कोई कार्य किया जाए, उसे संप्रदान कारक कहते हैं। जैसे –
मैं दिनेश के लिए चाय बना रहा हूँ।
इस वाक्य में ‘दिनेश’ संप्रदान अवस्था में है, क्योंकि चाय बनाने का काम दिनेश के लिए किया जा रहा।
 
1.'''स्वास्थ्य के लिए''' सूर्य को नमस्कार करो। 2.'''गुरुजी को''' फल दो।
 
इन दो वाक्यों में ‘स्वास्थ्य के लिए’ और ‘गुरुजी को’ संप्रदान कारकअवस्था में हैं।
 
=== अपादान कारक ===
संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी से '''अलग''' होना पाया जाए वह अपादान कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्नहिन्दी पर्याय ‘से’ है।
कर्त्ता अपनी क्रिया द्वारा जिससे अलग होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं। जैसे –
पेड़ से आम गिरा।
इस वाक्य में ‘पेड़’ अपादान अवस्था में है, क्योंकि आम पेड़ से गिरा अर्थात अलग हुआ है।
 
जैसे- 1.बच्चा छत '''से''' गिर पड़ा। 2.संगीता घर '''से''' चल पड़ी।
 
इन दोनों वाक्यों में ‘छत से’ और घोड़े ‘से’ गिरने में अलग होना प्रकट होता है। अतः घोड़े से और छत से अपादान कारकअवस्था में हैं।
 
=== संबंध कारक ===
शब्द के जिस रूप से किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु से संबंध प्रकट हो वह संबंध कारक कहलाता है। इसका विभक्तिहिन्दी चिह्नपर्याय ‘का’, ‘के’, ‘की’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री’ है। जैसेये हिन्दी सर्वनामों में अभी भी भिन्न कारक रूप में दिखाई देता है, जसे- मैं>मेरा।
उदाहरण- 1.यह राधेश्याम का बेटा है। 2.यह कमला की गाय है।
इन दोनों वाक्यों में ‘राधेश्याम का बेटे’ से और ‘कमला का’ गाय से संबंध प्रकट हो रहा है। अतः यहाँ संबंध कारकअवस्था है।में हैं।
शब्द के जिस रूप से एक का दूसरे से संबंध पता चले, उसे संबंध कारक कहते हैं। जैसे –
यह राहुल की किताब है।
इस वाक्य में ‘राहुल की’ संबंध कारकअवस्था में है, क्योंकि यह राहुल का किताब से संबंध बता रहा है।
 
जहाँ एक संज्ञा या सर्वनाम का सम्बन्ध दूसरी संज्ञा या सर्वनाम से सूचित होता है, वहाँ सम्बन्ध कारक होता है। इसके विभक्ति चिह्न का, की, के; रा, री, रे; ना, नी, ने हैं। जैसे-
 
== हिन्दी में कारक ==
राम का लड़का, श्याम की लड़की, गीता के बच्चे।
मेरा लड़का, मेरी लड़की, हमारे बच्चे।
अपना लड़का, अपनी लड़की, अपने लड़के।
कर्ता कारक : जो वाक्य में कार्य को करता है, वह कर्ता कहलाता है। ...
कर्म कारक : वह वस्तु या व्यक्ति जिस पर वाक्य में की गयी क्रिया का प्रभाव पड़ता है वह कर्म कहलाता है। ...
करण कारक : वह साधन जिससे क्रिया होती है, वह करण कहलाता है। ...
सम्प्रदान कारक : ...
अपादान कारक : ...
संबंध कारक : ...
अधिकरण कारक : ...
संबोधन कारक :
Example
 
== अधिकरण कारक ===
"https://hi.wikipedia.org/wiki/कारक" से प्राप्त