"कारक": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति 9:
== कारक के भेद ==
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कारक - - विभक्ति चिह्न (परसर्ग)
1. '''कर्ता''' प्रथमा --
2. '''कर्म''' द्वितीया --
3. '''करण''' --
4. '''संप्रदान''' --
5. '''अपादान''' --
6. '''संबंध''' --
7. '''अधिकरण''' --
8. '''संबोधन''' --
:कर्ता ने अरु कर्म को, करण रीति से जान।
:संप्रदान को, के लिए, अपादान से मान।।
पंक्ति 38:
=== कर्ता कारक ===
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया (कार्य) के करने वाले का बोध होता है वह ‘कर्ता’ कारक कहलाता है। इसका
काम करने वाले को कर्त्ता कहते हैं। जैसे –
अध्यापक ने विद्यार्थियों को पढ़ाया।
इस वाक्य में ‘अध्यापक’ कर्त्ता है, क्योंकि काम करने वाला अध्यापक है।
पहले वाक्य में क्रिया का कर्ता राम है। इसमें ‘ने’ कर्ता
;विशेष-
(1) भूतकाल में अकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ भी ने परसर्ग
(2) वर्तमानकाल व भविष्यतकाल की सकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ ने परसर्ग का प्रयोग नहीं होता है। जैसे-वह फल खाता है।
पंक्ति 62:
=== कर्म कारक ===
क्रिया का फल जिस संज्ञा या सर्वनाम को प्राप्त होता है, वह कर्म
कार्य का फल अर्थात प्रभाव जिसपर पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं। जैसे –
राम ने आम को खाया।
पंक्ति 71:
पहले वाक्य में ‘मारने’ की क्रिया का फल साँप पर पड़ा है। अतः साँप कर्म कारक है। इसके साथ परसर्ग ‘को’ लगा है।
दूसरे वाक्य में ‘लिखने’ की क्रिया का फल पत्र पर पड़ा। अतः पत्र कर्म
पत्र राम के द्वारा लिखा गया|
=== करण कारक ===
संज्ञा आदि शब्दों के जिस रूप से क्रिया के करने के साधन का बोध हो अर्थात् जिसकी सहायता से कार्य संपन्न हो वह करण कारक कहलाता है। इसके
जिसकी सहायता से कोई कार्य किया जाए, उसे करण कारक कहते हैं। जैसे –
वह कलम से लिखता है।
पंक्ति 82:
जैसे- 1.अर्जुन ने जयद्रथ को बाण '''से''' मारा। 2.बालक गेंद '''से''' खेल रहे है।
पहले वाक्य में कर्ता अर्जुन ने मारने का कार्य ‘बाण’ से किया। अतः ‘बाण से’ करण
=== संप्रदान कारक ===
संप्रदान का अर्थ है-देना। अर्थात कर्ता जिसके लिए कुछ कार्य करता है, अथवा जिसे कुछ देता है उसे व्यक्त करने वाले रूप को संप्रदान कारक कहते हैं। इसका
जिसके लिए कोई कार्य किया जाए, उसे संप्रदान कारक कहते हैं। जैसे –
मैं दिनेश के लिए चाय बना रहा हूँ।
इस वाक्य में ‘दिनेश’ संप्रदान अवस्था में है, क्योंकि चाय बनाने का काम दिनेश के लिए किया जा रहा।
1.'''स्वास्थ्य के लिए''' सूर्य को नमस्कार करो। 2.'''गुरुजी को''' फल दो।
इन दो वाक्यों में ‘स्वास्थ्य के लिए’ और ‘गुरुजी को’ संप्रदान
=== अपादान कारक ===
संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी से '''अलग''' होना पाया जाए वह अपादान कारक कहलाता है। इसका
कर्त्ता अपनी क्रिया द्वारा जिससे अलग होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं। जैसे –
पेड़ से आम गिरा।
इस वाक्य में ‘पेड़’ अपादान अवस्था में है, क्योंकि आम पेड़ से गिरा अर्थात अलग हुआ है।
जैसे- 1.बच्चा छत '''से''' गिर पड़ा। 2.संगीता घर '''से''' चल पड़ी।
इन दोनों वाक्यों में ‘छत से’ और घोड़े ‘से’ गिरने में अलग होना प्रकट होता है। अतः घोड़े से और छत से अपादान
=== संबंध कारक ===
शब्द के जिस रूप से किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु से संबंध प्रकट हो वह संबंध कारक कहलाता है। इसका
उदाहरण- 1.यह राधेश्याम का बेटा है। 2.यह कमला की गाय है। इन दोनों वाक्यों में ‘राधेश्याम का बेटे’ से और ‘कमला का’ गाय से संबंध प्रकट हो रहा है। अतः यहाँ संबंध
शब्द के जिस रूप से एक का दूसरे से संबंध पता चले, उसे संबंध कारक कहते हैं। जैसे –
यह राहुल की किताब है।
इस वाक्य में ‘राहुल की’ संबंध
== हिन्दी में कारक ==
== अधिकरण कारक ===
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