"चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य": अवतरणों में अंतर

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== परिचय ==
 
चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य (375ई. - 415ई414ई.) समुद्रगुप्त के एरण अभिलेख से स्पष्ट है कि उनके बहुत से पुत्र पौत्र थे, किंतु अपने अंतिम समय में उन्होंने चंद्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। चंद्रगुप्त द्वितीय एवं परवर्ती गुप्तसम्राटों के अभिलेखों से भी यही ध्वनित होता है कि समुद्रगुप्त की मृत्यु के उपरांत चंद्रगुप्त द्वितीय ही गुप्तसम्राट् हुए। किंतु इसके विपरीत, अंशरूप में उपलब्ध '[[देवीचंद्रगुप्तम्]]‌' एवं कतिपय अन्य साहित्यिक तथा पुरातात्विक अभिलेख संबंधी प्रमाणों के आधार पर कुछ विद्वान्‌ [[रामगुप्त]] को समुद्रगुप्त का उत्तराधिकारी प्रमाणित करते हैं। रामगुप्त की अयोग्यता के कारण यवनो के आक्रमण से भारतभूमी की रक्षा के लिए चंद्रगुप्त को सत्ता अपने हाथ मे लेनी पड़ी। रामगुप्त की एतिहासिकता संदिग्ध है। भिलसा आदि से प्राप्त ताम्र सिक्कों का रामगुप्त उस प्रदेश का कोई स्थानीय शासक ही रहा होगा।
 
चंद्रगुप्त द्वितीय की तिथि का निर्धारण उनके अभिलेखों आदि के आधार पर किया जाता है। चंद्रगुप्त का, गुप्तसंवत्‌ 61 (380 ई.) में उत्कीर्ण मथुरा स्तंभलेख, उनके राज्य के पाँचवें वर्ष में लिखाया गया था। फलत: उनका राज्यारोहण गुप्तसंवत्‌ 61-5= 56= 375 ई. में हुआ। चंद्रगुप्त द्वितीय की अंतिम ज्ञात तिथि उनकी रजतमुद्राओं पर प्राप्त हाती है- गुप्तसंवत्‌ 90+ 0= 409- 410 ई.। इससे अनुमान कर सकते हैं कि चंद्रगुप्त संभवत: उपरिलिखित वर्ष तक शासन कर रहे थे। इसके विपरीत कुमारगुप्त प्रथम की प्रथम ज्ञात तिथि गुप्तसंवत्‌ 96= 415 ई., उनके बिलसँड़ अभिलेख से प्राप्त होती है। इस आधर पर, ऐसा अनुमान किया जाता है कि, चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल का समापन 413-14 ई. में हुआ होगा।