"चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Inscription on Iron Pillar, Delhi.jpg|left|thumb|300px|दिल्ली के [[लौह स्तम्भ]] पर अंकित सन्देश जिसमें 'चन्द्र' शब्द आया है। विद्वानों का मत है कि यह '''चन्द्रगुप्त द्वितीय''' को ही इंगित करता है।]]▼
[[चित्र:Two Gold coins of Chandragupta II.jpg|thumb|300px|चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की मुद्रा]]▼
'''चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य''' (375-412) [[गुप्त राजवंश]] का राजा।
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== साम्राज्य ==
▲[[चित्र:Inscription on Iron Pillar, Delhi.jpg|left|thumb|300px|दिल्ली के [[लौह स्तम्भ]] पर अंकित सन्देश जिसमें 'चन्द्र' शब्द आया है। विद्वानों का मत है कि यह '''चन्द्रगुप्त द्वितीय''' को ही इंगित करता है।]]
चंद्रगुप्त का साम्राज्य सुविस्तृत था। इसमें पूर्व में [[बंगाल]] से लेकर उत्तर में संभवत: [[बल्ख]] तथा उत्तर-पश्चिम में [[अरब सागर]] तक के समस्त प्रदेश सम्मिलित थे। इस विस्तृत साम्राज्य को स्थिरता प्रदान करने की दृष्टि से चंद्रगुप्त ने अनेक शक्तिशाली एवं ऐश्वर्योन्मुखी राजपरिवारों से विवाहसंबंध स्थापित किए। स्वयं उनकी द्वितीय रानी कुबेरनागा 'नागकुलसंभूता' थी। कुबेरनागा से उत्पन्न प्रभावतीगुप्त वाकाटकनरेश रुद्रसेन द्वितीय को ब्याहीं थी। नागों एवं वाकाटकों की भौगोलिक स्थिति से सिद्ध है कि उनसे गुप्तसाम्राज्य को पर्याप्त बल एवं सहायता मिली होगी। कुंतल प्रदेश के कदंब नरेश शांतिवर्मन के तालगुंड अभिलेख से विदित है कि राजा काकुस्थ (त्स्थ) वर्मन की पुत्रियाँ गुप्त एवं अन्य राजाओं को ब्याहीं थीं। कुमारी का विवाह चंद्रगुप्त द्वितीय या उनके किसी पुत्र से हुआ होगा।▼
▲[[चित्र:Two Gold coins of Chandragupta II.jpg|thumb|300px|चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की मुद्रा]]
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साम्राज्य को शासन की सुविधा के लिये विभिन्न इकाइयों में विभाजित किया गया था। सम्राट् स्वयं राज्य का सर्वोच्च अधिकारी था। उसकी सहायता के लिये मंत्रिपरिषद् होती थी। राजा के बाद दूसरा उच्च अधिकारी युवराज होता था। मंत्री मंत्रिपरिषद् का मुख्य अधिकारी एवं अध्यक्ष था। चंद्रगुप्त द्वितीय के मंत्री शिखरस्वामी थे। इन्हें [[करमदांड अभिलेख]] में कुमारामात्य भी कहा है। इस संबंध में यह ज्ञातव्य है कि गुप्तकाल में युवराजों के साहाय्य के लिये स्वतंत्र परिषद् हुआ करती थी। वीरसेन शाब को 'अन्वयप्राप्तसचिव' कहा है। ये चंद्रगुप्त के सांधिविग्रहिक थे।
शासन की सबसे बड़ी इकाई प्रांत था। प्रांतों के मुख्य अधिकारी उपरिक कहे जाते थे। तीरभुक्ति-उपरिक-अधिकरण के राज्यपाल महाराज गोविंदगुप्त थे। उनकी राजधानी वैशाली थी। शासन की प्रांतीय इकाई देश या भुक्ति कहलाती थी। प्रांतों का विभाजन अनेक प्रदेशों या विषयों में हुआ था। वैशाली के सर्वोच्च शासकीय अधिकारी का विभाग वैशाली-अधिष्ठान-अधिकरण कहलाता था। नगरां एवं ग्रामों के शासन के लिय अलग परिषद् होती थी। ग्रामशासन के लिये ग्रामिक, महत्तर एवं भोजक उत्तरदायी होते थे।
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