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#पुनर्निर्देशित [[हिन्दू काल गणना]]
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'''युग''', हिंदु सभ्यता के अनुसार, एक निर्धारित संख्या के वर्षों की कालावधि है। ब्रम्हांड का काल चक्र चार युगों के बाद दोहराता है। हिन्दू ब्रह्माण्ड विज्ञान से हमे यह पता चलता है की हर ४.१-८.२ अरब सालों बाद ब्रम्हांड में जीवन एक बार निर्माण एवं नष्ट होता है। इस कालावधि को हम [[ब्रह्मा]] का एक पूरा दिन (रात और दिन मिलाकर) भी मानते है। ब्रह्मा का जीवनकाल ४० अरब से ३११० अरब वर्षों के बीच होता है।
 
[[काल]] के अंगविशेष के रूप में 'युग' शब्द का प्रयोग [[ऋग्वेद]] से ही मिलता है (दश युगे, ऋग्0 1.158.6) इस युग शब्द का परिमाण अस्पष्ट है। ज्यौतिष-पुराणादि में युग के परिमाण एवं युगधर्म आदि की सुविशद चर्चा मिलती है।
 
[[वेदांग ज्योतिष]] में युग का वरणविवरण है (1,5 श्लोक)। यह युग पंचसंवत्सरात्मक है। [[कौटिल्य]] ने भी इस पंचवत्सरात्मक युग का उल्लेख किया है। [[महाभारत]] में भी यह युग स्मृत हुआ है। पर यह युग पारिभाषिक है, अर्थात् शास्त्रकारों ने शास्त्रीय व्यवहारसिद्धि के लिये इस युग की कल्पना की है।
सतयुग त्रेता युग द्वारा पाक युग और कालयुग एक परिकल्पना है सतयुग की परिकल्पना में सभी इच्छा की पूर्ति तत्काल होती है त्रेतायुग में कुछ इच्छाओं को छोड़कर अत्याधिक इच्छा की पूर्ति होती है और द्वारापाक में आधे इच्छा की पूर्ति होती है कालयुग में कोई बहुत बहुत कम इच्छा की पूर्ति होती है परन्तु कालयुग की पूर्ण कल्पना होने पर सतयुग पुनः प्रारंभ होता है ।
 
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परिकल्पना की दुनिया के मिथ्क इस वास्तविक विश्व के दुख दर्द से भी अत्याधिक दुखभरा है अत्याधिक उलझन है अत्याधिक व्याकुलता बैचैनी जब मनुष्य की मन परिकल्पना की दुनिया में प्रवेश करती है तब से अंतिम क्षण अर्थात पांच वर्षों तक सुख और चैन पूरी तरहा से जीवन से चला जाता है मात्र सदैव चिंतन मनन परिकल्पना ही रहता है ना जगने पर परिकल्पना खत्म होती है ना निंद्रा में मात्र दिन रात परिकल्पना आती ही रहती है । कहा जाऐ तो भूख गरीबी बीमरी धोखा अपमान मृत्यु से भी भयावह कुछ है तो परिकल्पना की दुनिया की कल्पना अगर वास्तविक दुनिया में सतयुग त्रेता युग व द्वारापाक युग व कालयुग होता तो विश्व का हर मनुष्य व्याकुलता बैचैनी के कारण आत्महत्या कर लेता ।
 
== युग आदि का परिमाण ==
मुख्य लौकिक युग '''सत्य''' (उकृत), '''त्रेता''', '''द्वापर''' और '''कलि''' नाम से चार भागों में (चतुर्धा) विभक्त है। इस युग के आधार पर ही '''मन्वंतर''' और '''कल्प''' की गणना की जाती है। इस गणना के अनुसार सत्य आदि चार युग संध्या (युगारंभ के पहले का काल) और संध्यांश (युगांत के बाद का काल) के साथ 12000 वर्ष परिमित होते हैं। चार युगों का मान 4000 + 3000 + 2000 + 1000 = 10000 वर्ष है; संध्या का 400 + 300 + 200 + 100 = 1000 वर्ष; संध्यांश का भी 1000 वर्ष है।
युगों का यह परिमाण '''दिव्य''' वर्ष में है। दिव्य वर्ष = 360 मनुष्य वर्ष है; अत: 12000 x 360 = 4320000 वर्ष चतुर्युग का मानुष परिमाण हुआ। तदनुसार सत्ययुग = 1728000; त्रेता = 1296000; द्वापर = 864000; कलि = 432000 वर्ष है। ईद्दश 1000 चतुर्युग (चतुर्युग को युग भी कहा जाता है) से एक '''कल्प''' याने ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष है। 71 दिव्ययुगों से एक '''मन्वंतर''' होता है।
यह वस्तुत: महायुग है। अन्य अवांतर युग भी है। प्रत्येक संख्या में ३६० के गुणा करना होता है क्योंकि और कलियुग जो की १२०० दिव्यवर्ष अवधि का था वह मानव वर्षों के रूप में ४३२००० वर्ष का बना होता है चारों युगों की अवधि इस प्रकार है सत्य 17,28,000 वर्ष ,त्रेता 12,96,000 वर्ष ,द्वापर 8,64,000 वर्ष कलियुग 4,32,000 वर्ष चारों युगों का जोड़ 43,20,000 वर्ष यानी एक चतुर्युग | दुसरी गलती यह हुई कि जब द्वापर समाप्त हुआ तो उस समय २४०० वा वर्ष चल रहा था जब कलियुग शुरू हुआ तो उसको कलियुग प्रथम वर्ष लिखा जाना चाहिए था लेकिन लिखा गया कलियुग २४०१ तो जो कहा जाता है की २०१८ में कलियुग शुरू हुए ५१२० वर्ष हो गए हैं उसमे से त्रुटिपूर्ण जुड़े २४०० वर्ष निकालने होंगे शेष बचे २७२० वर्ष ही सही अंक है | तीसरी गलती यह हुई कि कहा गया कलियुग के बाद सत्ययुग आएगा ये व्यवहारिक नहीं है कलियुग की आखरी रात्री सोयेंगे सुबह उठेंगे तो सबकुछ सही होगा हर व्यक्ति सतोगुणी होगा यह संभव नहीं है पतन जिस प्रकार धीरे धीरे हुआ उसी प्रकार उत्थान होगा अधोगामी कलियुग के बीतने पर उर्ध्वगामी कलियुग की शुरुआत होगी फिर द्वापर फिर त्रेता फिर सत्ययुग आएगा |
 
== '''युग गणना स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरी जी के अनुसार''' ==
 
== युगधर्मगधर्म ==
'''{{मुख्य|युगधर्म}}'''
स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरी जी के अनुसार
 
सूर्य अपने महा केंद्र (ब्रह्मा) के चक्कर लगाता है इसके एक चक्कर मे पृथ्वी के 24000 वर्ष लगते हैं इसमे 12000 वर्षों (चार युग की अवधि)का एक आरोही अर्धचक्र तथा 12000 (चार युग की अवधि)वर्षों का एक अवरोही अर्धचक्र होता है ।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/युग" से प्राप्त