"धर्म": अवतरणों में अंतर
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राजधर्म लिए [[राजधर्म]] देखें। दक्षिणा लिए [[दक्षिणा]] देखें।
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[[चित्र:MonWheel.jpg|right|thumb|300px|[[धर्मचक्र]] (गुमेत संग्रहालय, पेरिस)]]
'''धर्म''' का अर्थ होता है, धारण, अर्थात जिसे धारण किया जा सके, धर्म ,कर्म प्रधान है। गुणों को जो प्रदर्शित करे वह धर्म है। धर्म को [[गुण]] भी कह सकते हैं।
यहाँ उल्लेखनीय है कि धर्म शब्द में गुण का अर्थ केवल मानव से संबंधित नहीं है। प्राणी/पदार्थ के लिए भी धर्म शब्द प्रयुक्त होता है, यथा पानी का धर्म है बहना, अग्नि का धर्म है [[प्रकाश]], उष्मा देना और संपर्क में आने वाली वस्तु को जलाना। व्यापकता के दृष्टिकोण से धर्म को गुण कहना सजीव, निर्जीव दोनों के अर्थ में नितांत ही उपयुक्त है। धर्म सार्वभौमिक होता है। प्राणी हो या पदार्थ पूरी पृथ्वी के किसी भी कोने में बैठे प्राणी या पदार्थ का धर्म एक ही होता है। उसके देश, रंग रूप की कोई बाधा नहीं है। धर्म सार्वकालिक होता है यानी कि प्रत्येक काल में युग में धर्म का स्वरूप वही रहता है। धर्म कभी बदलता नहीं है। उदाहरण के लिए [[पानी]], अग्नि आदि पदार्थ का धर्म सृष्टि निर्माण से आज पर्यन्त समान है।
वैदिक काल में "धर्म" शब्द एक प्रमुख विचार प्रतीत नहीं होता है। यह [[ऋग्वेद]] के 1,000 भजनों में एक सौ गुना से भी कम दिखाई देता है जो कि 3,000 साल से अधिक पुराना है।<ref>{{cite web|url=https://amp.scroll.in/article/905466/how-did-the-ramayana-and-mahabharata-come-to-be-and-what-has-dharma-got-to-do-with-it|title=How did the ‘Ramayana’ and ‘Mahabharata’ come to be (and what has ‘dharma’ got to do with it)?}}</ref> 2,300 साल पहले सम्राट [[अशोक]] ने अपने कार्यकाल में इस शब्द का इस्तेमाल करने के बाद, "धर्म" शब्द प्रमुखता प्राप्त की थी। पांच सौ वर्षों के बाद, ग्रंथों का समूह सामूहिक रूप से धर्म-[[शास्त्रों]] के रूप में जाना जाता था, जहां [[धर्म]] सामाजिक दायित्वों के साथ समान था, जो व्यवसाय (वर्णा धर्म), जीवन स्तर (आश्रम धर्म), व्यक्तित्व (सेवा धर्म) पर आधारित थे। , राजात्व (राज धर्म), स्री धर्म और मोक्ष धर्म।
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