"संस्कृतीकरण": अवतरणों में अंतर

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'''संस्कृतिकरणसंस्कृतीकरण''' [[भारत]] में देखा जाने वाला विशेष तरह का सामाजिक परिवर्तन है। इसका मतलब है वह प्रक्रिया जिसमें जातिव्यवस्था में निचले पायदान पर स्थित जातियाँ ऊँचा उठने का प्रयास करती हैं। ऐसा करने के लिए वे उच्च या प्रभावी जातियों के रीति-रिवाज़ या प्रचलनों को अपनाती हैं। यह समाजशास्त्र की पासिंग् नामक प्रक्रिया के जैसा ही है। इस शब्द के प्रयोग को भारतीय समाजशास्त्री [[एम. एन. श्रीनिवास]] ने १९५० के दशक में लोकप्रिय बनाया।<ref>Charsley, S. (1998) "Sanskritization: The Career of an Anthropological Theory" ''Contributions to Indian Sociology'' 32(2): p. 527 citing Srinivas, M.N. (1952) ''Religion and Society Amongst the Coorgs of South India'' Clarendon Press, Oxford. See also, Srinivas, M. N.; Shah, A. M.; Baviskar, B. S.; and Ramaswamy, E. A. (1996) ''Theory and method: Evaluation of the work of M.N. Srinivas'' Sage, New Delhi, ISBN 81-7036-494-9</ref> हालाँकि इसके इससे पुराने उल्लेख [[भीमराव अम्बेडकर]] कृत ''[[कास्ट्स् इन् इन्डिया: देअर् मेकैनिज़म, जेनेसिस् एन्ड् डेवलप्मेन्ट्]]'' में मिल सकते हैं।<ref>{{harvtxt|Jaffrelot|2005}}, pp. 33, notes that "Ambedkar advanced the basis of one of the most heuristic of concepts in modern Indian Studies—the Sanskritization process—that M. N. Srinivas was to introduce 40 years later."</ref> "सामाजिक सीढ़ी में ऊपर से नीचे की ओर अनुकरण के चलने" की इस प्रक्रिया के सबसे पुराने उल्लेख, एक अन्य सन्दर्भ में गैब्रियल टार्डे लिखित "द लॉज़् ऑफ़् इमिटेशन्" में मिलते हैं।<ref>{{harvnb|Tarde|1899|page=65}}</ref>
 
== परिभाषा==