"मन्त्र": अवतरणों में अंतर

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== आध्यात्मिक ==
'''परिभाषा''': मंत्र वह ध्वनि है जो अक्षरों एवं शब्दों के समूह से बनती है।<ref>आप स्वामी वेद भारती की पुस्तक "मंत्र: क्यों और कैसे पढ़ लें.</ref>. यह संपूर्ण संसार एक तरंगात्मक ऊर्जा से व्याप्त है जिसके दो
* प्रकार हैं - नाद (शब्द) एवं प्रकाश। आध्यात्मिक धरातल पर इनमें से शब्कोई भी एक प्रकार की ऊर्जा दूसरे के बिना सक्रिय नहीं होती। मंत्र मात्र वह ध्वनियाँ नहीं हैं जिन्हें हम कानों से सुनते हैं, यह ध्वनियाँ तो मंत्रों का लौकिक स्वरुप भर हैं।
 
ध्यान की उच्चतम अवस्था में साधक का आध्यात्मिक व्यक्तित्व पूरी तरह से प्रभु के साथ एकाकार हो जाता है जो अन्तर्यामी है। वही सारे ज्ञान एवं 'शब्द' (ॐ) का स्रोत है। प्राचीन ऋषियों ने इसे ''शब्द-ब्रह्म'' की संज्ञा दी - वह शब्द जो साक्षात् ईश्वर है! उसी सर्वज्ञानी शब्द-ब्रह्म से एकाकार होकर साधक मनचाहा ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
 
'''मंत्र विज्ञान'''
 
हम जो कुछ भी बोलते हैं उसका प्रभाव व्यक्तिगत और समष्टिगत रूप से सारे ब्रह्माण्ड पर पड़ता है ।हमारे मुख से निकला हुआ प्रत्येक शब्द आकाश के सूक्ष्म परमाणुओं में कंपन उत्पन्न करता है और इस कंपन से लोगों में अदृश्य प्रेरणाएँ जाग्रत होती हैं ।वस्तुतः मंत्र विज्ञान में इन्फ्रासोनिक स्तर की सूक्ष्म ध्वनियाँ काम करती हैं ।मंत्र जप से एक प्रकार की विद्युत चुम्बकीय ( इलेक्ट्रो मैग्नेटिक) तरंगें उत्पन्न
हो जाती हैं ।जो समूचे शरीर में फैल कर अनेक गुना विस्तृत हो जाती हैं ।इससे प्राणऊर्जा की क्षमता एवं शक्ति में अभिवृद्धि होती है
 
मंत्र जप से उत्पन्न प्रकंपन, शरीर के सूक्ष्म तंत्रों तथा हार्मोन प्रणाली पर अपना गहरा प्रभाव डालते हैं जिससे उनकी सक्रियता बढ़ जाती है और समुचित मात्रा में हार्मोन का स्राव होने लगता है ।
 
मंत्र विद जानते हैं कि मस्तिष्क में विचारों की उपज कोई आकस्मिक घटना नहीं, वरन शक्ति की परतों में आदिकाल से एकत्रित सूक्ष्म कंपन हैं जो मस्तिष्क के ज्ञान कोषों से टकराकर विचार के रूप में प्रकट होते हैं ।
 
ओंकार (ओउम्) अथवा प्रणव का जप अत्यन्त प्रभावशाली यौगिक अभ्यास है।ओंकार परमात्मा का नाम, मंत्रों का अधिपति है।यही वह स्वरूप है जिसका सृष्टि के प्रारम्भ के लिए उद्भव हुआ ।
 
श्रद्धा साधना का प्राण है, मूल है इसलिए धीरे- धीरे ही सही, परंतु हृदय की गहराई से मंत्र जप करना चाहिए ।
मंत्र का प्रत्यक्ष रूप ध्वनि है ।ध्वनि के क्रमबद्ध, लयबद्ध और वृत्ताकार क्रम से निरंतर एक ही शब्द विन्यास के उच्चारण से शब्द तरंगें वृत्ताकार घूमने लगती हैं ।इसके फलस्वरूप हुए परिणामों को मंत्र का चमत्कार कहा जा सकता है ।
 
== मंत्र की उत्पत्ति ==