"अरण्यकाण्ड": अवतरणों में अंतर

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[[अरण्यकाण्ड]] [[वाल्मीकि]] कृत [[रामायण]] और गोस्वामी [[तुलसीदास]] कृत [[श्री राम चरित मानस]] का एक भाग (काण्ड या सोपान) है।
 
कुछ काल के पश्चात [[राम]] ने [[चित्रकूट]] से प्रयाण किया तथा वे [[अत्रि]] ऋषि के आश्रम पहुंचे। [[अत्रि]] ने [[राम]] की स्तुति की और उनकी पत्नी [[अनसूया]] ने [[सीता]] को [[पातिव्रत धर्म]] के मर्म समझाये। वहां से फिर [[राम]] ने आगे प्रस्थान किया और [[शरभंग]] मुनि से भेंट की। [[शरभंग]] मुनि केवल [[राम]] के दर्शन की कामना से वहाँवहां निवास कर रहे थे अतः [[राम]] के दर्शनों की अपनी अभिलाषा पूर्ण हो जाने से योगाग्नि से अपने शरीर को जला डाला और [[ब्रह्मलोक]] को गमन किया। और आगे बढ़ने पर [[राम]] को स्थान स्थान पर हड्डियों के ढेर दिखाई पड़े जिनके विषय में मुनियों ने [[राम]] को बताया कि राक्षसों ने अनेक मुनियों को खा डाला है और उन्हीं मुनियों की हड्डियाँ हैं। इस पर [[राम]] ने प्रतिज्ञा की कि वे समस्त राक्षसों का वध करके पृथ्वी को [[राक्षस]] विहीन कर देंगे। [[राम]] और आगे बढ़े और पथ में [[सुतीक्ष्ण]], [[अगस्त्य]] आदि ऋषियों से भेंट करते हुये [[दण्डक वन]] में प्रवेश किया जहाँ पर उनकी मुलाकात [[जटायु]] से हुई। [[राम]] ने [[पंचवटी]] को अपना निवास स्थान बनाया।
[[चित्र:Ravi Varma-Ravana Sita Jathayu.jpg|thumb|सीता हरण (चित्रकार: रवि वर्मा)]]
[[पंचवटी]] में [[रावण]] की बहन [[शूर्पणखा]] ने आकर [[राम]] से प्रणय निवेदन-किया। [[राम]] ने यह कह कर कि वे अपनी पत्नी के साथ हैं और उनका छोटा भाई अकेला है उसे [[लक्ष्मण]] के पास भेज दिया। [[लक्ष्मण]] ने उसके प्रणय-निवेदन को अस्वीकार करते हुये शत्रु की बहन जान कर उसके नाक और कान काट लिये। [[शूर्पणखा]] ने [[खर-दूषण]] से सहायता की मांग की और वह अपनी सेना के साथ लड़ने के लिये आ गया। लड़ाई में [[राम]] ने [[खर-दूषण]] और उसकी सेना का संहार कर डाला। [[शूर्पणखा]] ने जाकर अपने भाई [[रावण]] से शिकायत की। [[रावण]] ने बदला लेने के लिये [[मारीच]] को [[स्वर्णमृग]] बना कर भेजा जिसकी छाल की मांग [[सीता]] ने राम से की। [[लक्ष्मण]] को [[सीता]] के रक्षा की आज्ञा दे कर [[राम]] [[स्वर्णमृग]] रूपी [[मारीच]] को मारने के लिये उसके पीछे चले गये। [[मारीच]] के हाथों मारा गया पर मरते मरते [[मारीच]] ने [[राम]] की आवाज बना कर 'हा [[लक्ष्मण]]' का क्रन्दन किया जिसे सुन कर [[सीता]] ने आशंकावश होकर [[लक्ष्मण]] को [[राम]] के पास भेज दिया। [[लक्ष्मण]] के जाने के बाद अकेली [[सीता]] का [[रावण]] ने छलपूर्वक हरण कर लिया और अपने साथ [[लंका]] ले गया। रास्ते में [[जटायु]] ने [[सीता]] को बचाने के लिये [[रावण]] से युद्ध किया और [[रावण]] ने उसके पंख काटकर उसे अधमरा कर दिया।