"अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध'": अवतरणों में अंतर

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:रोते हैं या विपट सब यों आँसुओं की दिखा के।
 
जहाँ हरिऔध जी ने वृक्षों आदि को गिनानेआदिने का प्रयत्न किया है, वहाँ उनका प्रकृति-वर्णन कुछ नीरस क्षौर परंपरागत-सा लगता है, किंतु ऐसा बहुत कम हुआ है। अधिकतर उनका प्रकृति चित्रण सरल और स्वाभाविक और ह्रदयग्राही है। :संध्या का एक सुंदर दृश्य देखिए-
:दिवस का अवसान समीप था,
:गगन था कुछ लोहित हो चला।