"धर्म": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
No edit summary टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
||
पंक्ति 13:
वैदिक काल में "धर्म" शब्द एक प्रमुख विचार प्रतीत नहीं होता है। यह [[ऋग्वेद]] के 1,000 भजनों में एक सौ गुना से भी कम दिखाई देता है जो कि 3,000 साल से अधिक पुराना है।<ref>{{cite web|url=https://amp.scroll.in/article/905466/how-did-the-ramayana-and-mahabharata-come-to-be-and-what-has-dharma-got-to-do-with-it|title=How did the ‘Ramayana’ and ‘Mahabharata’ come to be (and what has ‘dharma’ got to do with it)?}}</ref> 2,300 साल पहले सम्राट [[अशोक]] ने अपने कार्यकाल में इस शब्द का इस्तेमाल करने के बाद, "धर्म" शब्द प्रमुखता प्राप्त की थी। पांच सौ वर्षों के बाद, ग्रंथों का समूह सामूहिक रूप से धर्म-[[शास्त्रों]] के रूप में जाना जाता था, जहां [[धर्म]] सामाजिक दायित्वों के साथ समान था, जो व्यवसाय (वर्णा धर्म), जीवन स्तर (आश्रम धर्म), व्यक्तित्व (सेवा धर्म) पर आधारित थे। , राजात्व (राज धर्म), स्री धर्म और मोक्ष धर्म।
हिन्दू,
इस्लाम वास्तव में वह धर्म है जो सदा से चला आ रहा है। हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इस्लाम के संस्थापक (Founder) नहीं थे बल्कि वे ईश्वर अर्थात अल्लाह के अंतिम संदेष्टा (Messenger) थे।
धर्म का असल अर्थ होता है ईश्वर अर्थात अल्लाह के द्वारा बताए गए नियमों का पालन करना और ईश्वर की इच्छाओं को धारण करना।
सत्य ईश्वर की धारणा हमें केवल इस्लाम में ही दिखाई पड़ती है जिसमें मात्र एक ही ईश्वर अर्थात अल्लाह की पूजा-उपासना करने को कहा गया और प्राथना भी केवल उसी से करनी है। इस्लाम के अलावा जितने भी धर्म, मत, दर्शन, पंथ व सम्प्रदाय है, सभी सत्य मार्ग अर्थात इस्लाम से भटके हुए हैं और कुछ स्वयं इंसानों के द्वारा बनाए गए हैं।
ईश्वर यानी अल्लाह कभी अवतार नहीं लेता है बल्कि वह लोगों के मार्गदर्शन के लिए अपने भक्तों में से किसी खास भक्त को चुनता है जिन्हें हम नबी या रसूल (संदेष्टा) कहते हैं और फिर उसकी तरफ प्रकाशना करता है जिसे हम ईश्वरीय वाणी कहते हैं। क़ुरआन मजीद उस ईश्वर यानी अल्लाह की तरफ से अंतिम ईशवाणी है और हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के अंतिम रसूल (संदेष्टा) हैं।
इस्लाम को जानने के लिए ईश्वर यानी अल्लाह की तरफ से अवतरित अंतिम ग्रंथ अर्थात क़ुरआन मजीद का और ईश्वर यानी अल्लाह के अंतिम संदेष्टा यानी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) की जीवनी का अध्ययन करें।
हम सभी इंसान, चाहे वो हमसे पहले के इंसान हों या हम जो इस वर्तमान में जी रहे हैं या वो इंसान जो भविष्य में आएंगे, हम सभी इंसान केवल एक ही माता-पिता की संतान हैं यानी इस धरती पर सबसे पहले केवल एक पुरुष और एक स्त्री का एक जोड़ा था और उन्हीं दोनों से बाकी सभी मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है ये दोनों पुरुष और स्त्री जिस धर्म का अनुपालन करते थे वह इस्लाम ही था उसके बाद इनकी संतानों ने अपनी अज्ञानता की वजह से व शैतान के बहकावे में आकर अपने-अपने नए धर्म, मत, दर्शन, पंथ व सम्प्रदाय की स्थापना की जो कि बिल्कुल भी सही नही है। क्योंकि धरती के सबसे पहले के स्त्री व पुरुष इस्लाम धर्म का अनुपालन करते थे इसीलिये हम ने बताया कि इस्लाम सदा से चला आ रहा सत्य धर्म व सत्य मार्ग है।
सभी इंसानों को सत्य मार्ग (सत्य धर्म) पर चलने के लिए एवं मरने के बाद स्वर्ग में जाने के लिए केवल उस अकेले एवं सच्चे ईश्वर यानी अल्लाह की पूजा-वंदना करनी होगी (जिसे कोई भी अपनी इन आँखों से नहीं देख सकता)। उसके द्वारा अवतरित अंतिम ग्रंथ यानी क़ुरआन मजीद का अनुपालन करना होगा और ईश्वर के भक्त एवं अंतिम संदेष्टा (रसूल) यानी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम) की शिक्षाओं का अनुपालन करना होगा।
( [[पालि]] : [[धम्म]] ) भारतीय संस्कृति और दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में कोई समतुल्य शब्द का पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, [[अहिंसा]], न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि।
Line 61 ⟶ 75:
यहूदी संप्रदाय मूसा ने मिस्र के फेरूओ के विचारों का विरोध कर एक नया संप्रदाय बनाया पांच छैः हजार वर्ष पूर्व।
क्रिश्चियन संप्रदाय यशु ने शायद रोमन विचारधारा का विरोध किया और नया बनाया ढाई हजार वर्ष पहले ।
पारसी संप्रदाय के जरथुष्ट्री ने भी किसी सभ्यता का विरोध कर बनाया था ।
अगर ध्यान दिया जाऐ तो पश्चिमी संप्रदाय में पहले प्राचीन सभ्यताएं रहती थी जिसकी मान्यता कुछ और ही थी वे धर्म नहीं थे जैसे मिस्र रोमन बेबीलोन सुमेरू इन्ही में कही सिन्धुघाटी सभ्यता भी है इन सबका अस्तित्व खत्म हुआ तो यहूदी इसाई मुस्लिम और पारसी संप्रदाय आये ।
|