भारत की भाषाओं का परिवार यद्यपि एक नहीं है, फिर भी उनका साहित्यिक आधारभूमि एक ही है। [[रामायण]], [[महाभारत]], [[पुराण]], [[भागवत]], संस्कृत का अभिजात्य साहित्य - अर्थात् [[कालिदास]], [[भवभूति]], [[बाणभटबाणभट्ट]], [[श्रीहर्ष]], [[अमरुकअमरूक]] और [[जयदेव]] आदि की अमर कृतियाँ, [[पालि]], [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] में लिखित बौद्ध, जैन तथा अन्य धर्मों का साहित्य भारत की समस्त भाषाओं को उत्तराधिकार में मिला। शास्त्र के अंतर्गतअन्तर्गत [[उपनिषद्]], [[भारतीय दर्शन|षड्दर्शन]], स्मृतियाँ[[स्मृति]]याँ आदि और उधर [[काव्यशास्त्र]] के अनेक अमर ग्रंथ—नाट्यशास्त्रग्रन्थ — [[नाट्यशास्त्र]], [[ध्वन्यालोक]], [[काव्यप्रकाश]], [[साहित्यदर्पण]], रसगांधर[[रसगंगाधर]] आदि की विचार-विभूति का उपयोग भी सभी ने निरंतरनिरन्तर किया है। वास्तव में आधुनिक भारतीय भाषाओं के ये अक्षय प्रेरणा-स्रोत हैं जो प्रायः सभी को समान रूप से प्रभावित करते रहे हैं। इनका प्रभाव निश्चय ही अत्यन्त समन्वयकारी रहा है और इनसे प्रेरित साहित्य में एक प्रकार की मूलभूत समानता स्वतः ही आ गई है।—इस प्रकार समान राजनीतिक, सांस्कृतिक और साहित्यकि आधारभूमि पर पल्लवित-पुष्पित भारतीय साहित्य में जन्मजात समानता एक सहज घटना है।