"मौसम विज्ञान": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ke oor ==
प्राचीन काल से ही मनुष्य ऋतु तथा जलवायु की अनेक घटनाओं से प्रभावित होता रहा है। वायुविज्ञान के प्राचीनतम ग्रंथ ऐरिस्टॉटल (384-322 ई.पू.) रचित 'मीटिअरोलॉजिका' तथा उनके शिष्यों की पवन तथा ऋतु संबंधी रचनाएँ हैं। ऐरिस्टॉटल के पश्चात्‌ अगले दो हजार वर्षो में ऋतुविज्ञान की अधिक प्रगति नहीं हुई। 17वीं तथा 18वीं शताब्दी में मुख्यत: यंत्रप्रयोग तथा गैस आदि के नियम स्थापित हुए। इसी काल में तापमापी का आविष्कार सन्‌ 1607 में गैलीलियों गेलीली ने किया और एवेंजीलिस्टा टॉरीसेली ने सन्‌ 1643 में वायु दाबमापी यंत्र का आविष्कार किया। इन आविष्कारों के पश्चात्‌ सन्‌ 1659 में वायल के नियम का आविष्कार हुआ। सन्‌ 1735 में जार्ज हैडले ने व्यापारिक वायु (ट्रैड विंड) की व्याख्या प्रस्तुत की तथा उसमें हैडले ने व्यापारिक वायु (ट्रेड विंड) की व्याख्या प्रस्तुत की तथा उसमें सबसे पहले वायुमंडलीय पवनों पर पृथ्वी के चक्कर के प्रभाव को सम्मिलित किया। जब सन्‌ 1783 में ऐंटोनी लेवोसिए ने वायुंमडल की वास्तविक प्रकृति का ज्ञान प्राप्त कर लिया और सन्‌ 1800 में जॉन डॉल्टन ने वायुमंडल में जलवाष्प के परिवर्तनों पर और वायु के प्रसार तथा वायुमंडलीय संघनन के संबंध पर प्रकाश डाला तभी आधुनिक ऋतुविज्ञान का आधार स्थापित हो गया। 19वीं शताब्दी में विकास अधिकतर संक्षिप्त ऋतुविज्ञान के क्षेत्र में हुआ। अनेक देशों ने ऋतुवैज्ञानिक संस्थाएँ स्थापित की और ऋतु वेधशालाएँ खोलीं। इस काल में ऋतु पूर्वानुमान की दिशा में भी पर्याप्त विकास हुआ। 20 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में 20 किलोमीटर की ऊँचाई तक वायु के वेग तथा दिशा आदि के प्रेक्षणों के बढ़ जाने के कारण जो सूचनाएँ ऋतुविशेषज्ञों को प्राप्त होने लगीं उनसे ऋतुविज्ञान की अधिक उन्नति हुई। ऊपरी वायु के ऐसे प्रेक्षणों से ऋतुविज्ञान की अनेक समस्याओं को समझने में बहुत अधिक सहायता मिली।