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परमार(पँवार) वंश कि उत्पत्ति राजस्थान के आबू पर्वत में स्थित अनल कूण्ड हुई थी तथा चन्द्रावती एव किराडू दो मुख्य राजधानीया भी राजस्थान में ही थी यही से परमार(पँवार) मालवा गये एवं उज्जैन(अवतीका) एवं धार(धारा) को अपनी राजधानी बनाया भारत वर्ष में केवल परमार(पँवार)वंश ही एक मात्र ऐसा वंश हैं जिसमें चक्रवर्ती सम्राट हुई इसलिए यह कहा जाता है कि.
'पृथ्वी तणा परमार, पृथ्वी परमारो तणी' यानी धरती की शोभा परमारो से है या इस धरती की रक्षा का दायित्व परमारो का है परमार राजा दानवीर साहित्य व शौर्य के धनी थे। तथा वे कृपाण एवं कलम दोनों में दक्ष थे। उनका शासन भारत के बाहर, दूसरे देशों तक था। लेकिन राजा भोज के पश्चात परमार सम्राटों का पतन हो गया एवं परमारो के पतन होते ही भारत वर्ष मुसलमानों के अधिन हो गया अर्थात परमारो का इतिहास बहुत ही गौरव शाली रहा है। <ref>http://parmardiyodar.blogspot.com
=== कथा ===
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