"प्रेमचंद": अवतरणों में अंतर

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| मुख्य काम =[[गोदान]] [[मानसरोवर]]
}}[https://gyaniraja.in/munsi-premchand-ki-kahani/ मुंशी प्रेमचंद] ने 1898 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कर स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए| B.A करने के बाद मुंशी प्रेमचंद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हो गए| मुंशी प्रेमचंद का पहला विवाह उन दिनों की परंपरा के अनुसार 15 साल की उम्र में हुआ जो सफल नहीं रहा 1926 में इन्होंने विधवा विवाह का समर्थन करते हुए बाल विधवा शिवरानी देवी से दूसरा विवाह किया| उनसे तीन संताने हुई श्रीपत राय अमृतराय और कमला देवी श्रीवास्तव 1910 में उनकी रचना सोजे वतन के लिए हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने तलब किया तो जीवन की सभी प्रतियां जब्त कर नष्ट कर दी गई इस समय तक प्रेमचंद नवाब राय नाम से उर्दू में लिखे थे उर्दू में प्रकाशित होने वाली जमाना पत्रिका के संपादक और उनके दोस्त मुंशी दया नारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी इसके बाद वे प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे|
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[[File:प्रेमचंद.ogg|thumb|हिन्दी उच्चारण: प्रेमचंद]]
'''[https://gyaniraja.in/munsi-premchand-ki-kahani/ मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ]'''
सौरभ(31 जुलाई 1880 – 8 अक्टूबर 1936) [[हिन्दी]] और [[उर्दू]] के भारतीय लेखकों में से एक थे । <ref>{{cite news|title= आज के दिन जन्मे थे "गोदान" के लेखक मुंशी प्रेमचंद|url=http://www.patrika.com/news/munsi-premchand-was-born-on-this-day/1020850|accessdate=३१ जुलाई २०१४|work=पत्रिका समाचार समूह|date=३१ जुलाई २०१४}}</ref> मूल नाम '''धनपत राय श्रीवास्तव''', प्रेमचंद को '''नवाब राय''' और '''मुंशी प्रेमचंद''' के नाम से भी जाना जाता है।<ref>{{cite web |url= http://in.jagran.yahoo.com/sahitya/article/index.php?page=article&category=5&articleid=943
 
|title=अपनी कृतियों की रूपरेखा |access-date=9 जून 2008|format=पीएचपी|publisher= जागरण याहू|language=}}</ref> उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर [[पश्चिम बंगाल|बंगाल]] के विख्यात [[उपन्यासकार]] [[शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय|शरतचंद्र चट्टोपाध्याय]] ने उन्हें '''उपन्यास सम्राट''' कहकर संबोधित किया था।<ref name="प्रेमचंद मुंशी कैसे बने">{{cite web |url= http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/2005/premchand.htm|title=प्रेमचंद मुंशी कैसे बने|access-date=9 जून 2008|format=एचटीएम|publisher= अभिव्यक्ति|language=}}</ref><ref>{{cite web |url= http://www.vishvbook.com/premchands-novels.html|title=Premchand's Novels|access-date=9 जून 2008|format=एचटीएमएल|publisher= विश्वबुक|language=en}}</ref> प्रेमचंद ने साहित्य की [[यथार्थवाद (हिंदी साहित्य)|यथार्थवादी परंपरा]] की नींव रखी। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया, उनमें [[यशपाल]] से लेकर [[गजानन माधव मुक्तिबोध|मुक्तिबोध]] तक शामिल हैं। उनके पुत्र हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार [[सौरभ]] हैं जिन्होंने इन्हें कलम का सिपाही नाम दिया था। इनकी रचनाये कुछ इस प्रकार से है
आपको बता की मुंशी प्रेमचंद रचनाओं में सबसे पहले आते हैं उनके [https://gyaniraja.in/munsi-premchand-ki-kahani/ उपन्यास गोदान] 1936 गबन 1931 [https://gyaniraja.in/munsi-premchand-ki-kahani/ सेवा सदन] 1918 कर्मभूमि 1920 वरदान 1921 प्रेमाश्रम 1921 रंगभूमि 1925 निर्मला 1927 प्रतिज्ञा कायाकल्प 1926 मंगलसूत्र 1948 में लिखा था|
1 सेवासदन
 
2 प्रेमाश्रम
प्रेमचंद की कहानियां इस प्रकार से है पंच परमेश्वर, कफन, नमक का दरोगा, बूढ़ी काकी, नशा, परीक्षा, ईदगाह, बड़े घर की बेटी, सुजान भगत, शतरंज के खिलाड़ी, माता का हृदय, मिस पदमा, बलिदान, दो बैलो की कथा, तथा पूस की रात, सौत कजाकी, प्रेमचंद की पहली कहानी संसार का अनमोल रत्न 1960 में जमाना पत्रिका में प्रकाशित की गयी थी|
3 रंगभूमि
 
4 गोदान
प्रेमचंद के उपन्यास भारत और दुनिया की कई भाषाओं में अनुदित कोई खास कर उनका सर्वाधिक चर्चित उपन्यास गोदान सेवा सदन एक नारी के वेश्या बनने की कहानी है| प्रेमाश्रम किसान जीवन पर लिखा हिंदी का संभवत पहला उपन्यास है यह अवध के किसान आंदोलनों के दौर में लिखा गया रंगभूमि में प्रेमचंद एक अंधे विकारी सूरदास को कथा का नायक बनाकर हिंदी कथा साहित्य में क्रांतिकारी बदलाव का सूत्रपात कर चुके थे गोदान का हिंदी साहित्य ही नहीं विश्व साहित्य में भी महत्वपूर्ण स्थान है प्रेमचंद ने सेवा सदन 1918 उपन्यास से हिंदी उपन्यास की दुनिया में प्रवेश किया यह मूल रूप से उन्होंने बाजार ए हुस्न नाम से पहले उर्दू में लिखा इसका हिंदी रूप सेवा सदन पहले प्रकाशित कराया|
आदि
 
साहित्यिक विशेषताएं इनकी रचनाओं में भारत के दर्शन होते हैं मुंशी प्रेमचंद के साहित्य पर गांधीवाद का प्रभाव दिखाई देता है साहित्य को समाज का दर्पण नहीं मशाल में होना चाहिए यह बोलते थे प्रेमचंद
 
 
== जीवन परिचय ==
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[https://gyaniraja.in/munsi-premchand-ki-kahani/ मुंशी, प्रेमचंद]<br />
'हंस के संपादक प्रेमचंद तथा कन्हैयालाल मुंशी थे। परन्तु कालांतर में पाठकों ने 'मुंशी' तथा 'प्रेमचंद' को एक समझ लिया और 'प्रेमचंद'- 'मुंशी प्रेमचंद' बन गए। यह स्वाभाविक भी है।<ref>प्रेमचंद मुंशी कैसे बने- [[डॉ॰ जगदीश व्योम]], सिटीजन पावर, मासिक हिन्दी समाचार पत्रिका, दिसम्बर २०११, पृष्‍ठ संख्‍या- ०९</ref>
सामान्य पाठक प्राय: लेखक की कृतियों को पढ़ता है, नाम की सूक्ष्मता को नहीं देखा करता। आज प्रेमचंद का मुंशी अलंकरण इतना रूढ़ हो गया है कि मात्र 'मुंशी' से ही प्रेमचंद का बोध हो जाता है तथा 'मुंशी' न कहने से प्रेमचंद का नाम अधूरा-अधूरा सा लगता है।<ref name="प्रेमचंद मुंशी कैसे बने">{{cite web|url=http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/2005/premchand.htm|title=प्रेमचंद मुंशी कैसे बने|publisher=अभिव्यक्ति|language=|format=एचटीएम|access-date=9 जून 2008}}</ref>
 
== विरासत ==