"देवघर": अवतरणों में अंतर

द्वादश ज्योतिर्लिंग पुराण और कोटी रुद्र संहीता व शिव पुराण के अनुसार ज्योतिर्लिंग वैजनाथ महाराष्ट्र के परली-वैजनाथ जिला बीड मे स्वंयंभु स्थापित है|
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→‎मुख्य आकर्षण: शिव पुराण और कोटी रुद्र संहीता व‌ द्वादश ज्योतिर्लिंग के अनुसार ज्योतिर्लिंग वैजनाथ महाराष्ट्र के परली वैजनाथ जिला बीड मे स्थित है|
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== मुख्य आकर्षण ==
झारखंड कुछ प्रमुख तीर्थस्थानों का केंद्र है जिनका ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व है। इन्हीं में से एक स्थान है देवघर। यह स्थान [[संथाल परगना]] के अंतर्गत आता है। देवघर शांति और भाईचारे का प्रतीक है। यह एक प्रसिद्ध हेल्थ रिजॉर्ट है। लेकिन इसकी पहचान हिंदु तीर्थस्थान के रूप में की जाती है। यहां बाबा बैद्यनाथ का ऐतिहासिक मंदिर है जो भारत के बारह [[ज्योतिर्लिंग|ज्योतिर्लिगों]] में से एक है। माना जाता है कि भगवान शिव को [[लंका]] ले जाने के दौरान उनकी स्थापना यहां हुई थी। प्रतिवर्ष श्रावण मास में श्रद्धालु 100 किलोमीटर लंबी पैदल यात्रा करके सुल्तानगंज से पवित्र जल लाते हैं जिससे बाबा बैद्यनाथ का अभिषेक किया जाता है। देवघर की यह यात्रा [[बासुकीनाथ]] के दर्शन के साथ सम्पन्न होती है।
 
बैद्यनाथ धाम के अलावा भी यहां कई मंदिर और पर्वत हैं।
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[[File:Baidyanath Dham Deoghar.jpg|thumb|देवघर का [[वैद्यनाथ मंदिर, देवघर|बाबा बैद्यनाथ मन्दिर]]]]
{{main|वैद्यनाथ मंदिर, देवघर}}
लेकिन ऐतिहासिक रूप से इस मंदिर की स्थापना १५९६ की मानी जाती है जब बैजू नाम के व्यक्ति ने खोए हुए लिंग को ढूंढा था। तब इस मंदिर का नाम बैद्यनाथ पड़ गया। कई लोग इसे कामना लिंग भी मानते हैं।
बैद्यनाथ मंदिर में स्थापित लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है। पुराणों में भी इसका वर्णन मिलता है। माना जाता है कि [[रावण]] चाहता था कि उसकी राजधानी पर शिव का आशीर्वाद बना रहे। इसलिए वह [[कैलाश पर्वत]] गया और शिव की अराधना की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने रावण को अपना ज्योतिर्लिग दिया। लेकिन इसके साथ उन्होंने एक शर्त रखी कि रावण अपनी यात्रा बीच में रोक नहीं सकता और इस लिंग को कहीं भी नीच नहीं रखना होगा। यदि लिंग लंका से पहले कहीं भी नीचे रखा गया तो वह सदा के लिए वहीं स्थापित हो जाएगा।
 
देवगण अपने शत्रु को मिले इस वरदान से घबरा गए और एक योजना के अनुसार [[इंद्र]] ब्राह्मण बनकर आया। इंद्र ने ऐसा बहाना बनाया कि [[रावण]] ने यह लिंग उसे सौंप दिया। ब्राह्मण रूपी इंद्र ने यह लिंग देवघर में रख दिया। रावण की लाख कोशिशों के बाद भी यह हिला नहीं। रावण अपनी गलती को सुधारने के लिए रोज यहां आता था और गंगाजल से शिवजी का अभिषेक करता था।
 
लेकिन ऐतिहासिक रूप से इस मंदिर की स्थापना १५९६ की मानी जाती है जब बैजू नाम के व्यक्ति ने खोए हुए लिंग को ढूंढा था। तब इस मंदिर का नाम बैद्यनाथ पड़ गया। कई लोग इसे कामना लिंग भी मानते हैं।
 
'''दर्शन का समय''': सुबह ४ बजे-दोपहर ३.३० बजे, शाम ६ बजे-रात ९ बजे तक। लेकिन विशेष धार्मिक अवसरों पर समय को बढ़या जा सकता है।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/देवघर" से प्राप्त