"परमार वंश": अवतरणों में अंतर

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→‎वर्तमान: राजा कल्याण सिंह परमार
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=== वर्तमान ===
वर्तमान में परमार वंश की एक शाखा उज्जैन के गांव नंदवासला,खाताखेडी तथा नरसिंहगढ एवं इन्दौर के गांव बेंगन्दा में निवास करते हैं।धारविया परमार तलावली में भी निवास करते हैंकालिका माता के भक्त होने के कारण ये परमार कलौता के नाम से भी जाने जाते हैं।धारविया भोजवंश परमार की एक शाखा धार जिल्हे के सरदारपुर तहसील में रहती है। इनके ईष्टदेव श्री हनुमान जी तथा कुलदेवी माँ कालिका(धार)है|ये अपने यहाँ पैदा होने वाले हर लड़के का मुंडन राजस्थान के पाली जिला के बूसी में स्थित श्री हनुमान जी के मंदिर में करते हैं। इनकी तीन शाखा और है;एक बूसी गाँव में,एक मालपुरिया राजस्थान में तथा एक निमच में निवासरत् है।11वी से 17 वी शताब्दी तक पंवारो का प्रदेशान्तर सतपुड़ा और विदर्भ में हुआ । सतपुड़ा क्षेत्र में उन्हें भोयर पंवार कहा जाता है धारा नगर से 15 वी से 17 वी सदी स्थलांतरित हुए पंवारो की करीब 72 (कुल) शाखाए बैतूल छिंदवाडा वर्धा व् अन्य जिलों में निवास करती हैं। पूर्व विदर्भ, मध्यप्रदेश के बालाघाट सिवनी क्षेत्र में धारा नगर से सन 1700 में स्थलांतरित हुए पंवारो/पोवारो की करीब 36 (कुल) शाखाए निवास करती हैं जो कि राजा भोज को अपना पूर्वज मानते हैं । संस्कृत शब्द प्रमार से अपभ्रंषित होकर परमार तथा पंवार/पोवार/भोयर पंवार शब्द प्रचलित हुए ।
 
पंवार वंश की एक शाखा जिसका प्रधान कल्याण सिंह परमार थे। इनके तेरह भाई थे।
कल्याण सिंह परमार दिल्ली के तत्कालीन शासक अनंगपाल तोमर के दामाद थे। कल्याण सिंह परमार ने रोहतक ( हरियाणा) के पास कलानौर नाम का गांव बसाया था जो उन्होंने अपने नाम कल्याण सिंह के नाम पर रखा था।
इस वंश के लोग विक्रम संवत 1499(1442 ईसा पूर्व) में धर्म परिवर्तन करके मुस्लिम हुए।
राजा कल्याण सिंह पवार की वंशज कलानौर से जये राजस्थान में जाकर बस गए।
विक्रम संवत 1905(1848 ईसा पूर्व)मे राजा कल्याण सिंह परमार के वंशज उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती शहर जीवन में आकर बस गये।
 
== राजा ==