"गुरु गोबिन्द सिंह": अवतरणों में अंतर
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→खालसा पंथ की स्थापना: मृत्यु की तिथि गलत थी उसे सही किया है टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
→गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म: कश्मीरी पंडितों की फरियाद के बारे में लिखा कि किस तरह उनकी फरियाद सुनकर गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने पिता को बलिदान देने के लिए कहा। टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
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गुरु गोविंद सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु [[गुरु तेगबहादुर]] और माता गुजरी के घर [[पटना]] में 05 जनवरी १६६६ को हुआ था। जब वह पैदा हुए थे उस समय उनके पिता [[असम]] में [[धर्म]] [[उपदेश]] को गये थे। उनके बचपन का नाम '''गोविन्द राय''' था। पटना में जिस घर में उनका जन्म हुआ था और जिसमें उन्होने अपने प्रथम चार वर्ष बिताये थे, वहीं पर अब [[तखत श्री पटना साहिब]] स्थित है।
१६७० में उनका परिवार फिर पंजाब आ गया।
गोविन्द राय जी नित्य प्रति आनंदपुर साहब में आध्यात्मिक आनंद बाँटते, मानव मात्र में नैतिकता, निडरता तथा आध्यात्मिक जागृति का संदेश देते थे। आनंदपुर वस्तुतः आनंदधाम ही था। यहाँ पर सभी लोग वर्ण, रंग, जाति, संप्रदाय के भेदभाव के बिना समता, समानता एवं समरसता का अलौकिक ज्ञान प्राप्त करते थे। गोविन्द जी शांति, क्षमा, सहनशीलता की मूर्ति थे।
[[काश्मीरी पण्डित|काश्मीरी पण्डितों]] का जबरन धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाये जाने के विरुद्ध
१०वें गुरु बनने के बाद भी उनकी शिक्षा जारी रही। शिक्षा के अन्तर्गत लिखना-पढ़ना, घुड़सवारी तथा धनुष चलाना आदि सम्मिलित था। १६८४ में उन्होने [[चंडी दी वार]]
गुरु गोबिन्द सिंह की तीन पत्नियाँ थीं। 21जून, 1677 को 10 साल की उम्र में उनका [[विवाह]] माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर [[बसंतगढ़]] में किया गया। उन दोनों के 3 पुत्र हुए जिनके नाम थे – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह। 4 अप्रैल, 1684 को 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। उनका एक बेटा हुआ जिसका नाम था अजित सिंह। 15 अप्रैल, 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने माता साहिब देवन से विवाह किया। वैसे तो उनका कोई संतान नहीं था पर सिख धर्म के पन्नों पर उनका दौर भी बहुत प्रभावशाली रहा।
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