"गुरु गोबिन्द सिंह": अवतरणों में अंतर

→‎गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म: कश्मीरी पंडितों की फरियाद के बारे में लिखा कि किस तरह उनकी फरियाद सुनकर गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपने पिता को बलिदान देने के लिए कहा।
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→‎गुरु गोबिन्द सिंह का जन्म: पिता के बलिदान के समय गुरु गोबिंद सिंह जी नौ साल के थे।
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गोविन्द राय जी नित्य प्रति आनंदपुर साहब में आध्यात्मिक आनंद बाँटते, मानव मात्र में नैतिकता, निडरता तथा आध्यात्मिक जागृति का संदेश देते थे। आनंदपुर वस्तुतः आनंदधाम ही था। यहाँ पर सभी लोग वर्ण, रंग, जाति, संप्रदाय के भेदभाव के बिना समता, समानता एवं समरसता का अलौकिक ज्ञान प्राप्त करते थे। गोविन्द जी शांति, क्षमा, सहनशीलता की मूर्ति थे।
 
[[काश्मीरी पण्डित|काश्मीरी पण्डितों]] का जबरन धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनाये जाने के विरुद्ध फरियाद लेकर गुरु तेग बहादुर जी के दरबार में आये और कहा कि हमारे सामने ये शर्त रखी गयी है कि है कोई ऐसा महापुरुष? जो इस्लाम स्वीकार नहीं कर अपना बलिदान दे सके तो आप सब का भी धर्म परिवर्तन नहीं किया जाएगा उस समय गुरु गोबिंद सिंह जी नेनौ साल के थे। उन्होंने पिता गुरु तेग बहादुर जी से कहा आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है! इसलिएकश्मीरी पंडितों की फरियाद सुन उन्हें जबरन धर्म परिवर्तन से बचाने के लिए स्वयं [[इस्लाम]] न स्वीकारने के कारण ११ नवम्बर १६७५ को औरंगजेब ने दिल्ली के [[चांदनी चौक]] में सार्वजनिक रूप से उनके पिता [[गुरु तेग बहादुर]] का सिर कटवा दिया। इसके पश्चात [[वैशाखी]] के दिन २९ मार्च १६७६ को गोविन्द सिंह सिखों के दसवें गुरु घोषित हुए।
 
१०वें गुरु बनने के बाद भी उनकी शिक्षा जारी रही। शिक्षा के अन्तर्गत लिखना-पढ़ना, घुड़सवारी तथा धनुष चलाना आदि सम्मिलित था। १६८४ में उन्होने [[चंडी दी वार]] की रचना की। १६८५ तक वह [[यमुना नदी]] के किनारे [[पाओंटा साहिब|पाओंटा]] नामक स्थान पर रहे।