"परमार भोज": अवतरणों में अंतर

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राजगुरु मदन ने अपनी बनाई [[पारिजात मंजरी]] में अपने आश्रय दाता मालवे के परमार नरेश [[अर्जुनवर्मा]] की तुलना भी मुंज आदि से न कर भोज से ही की है । जैसे -
''अत्र कथंचिदलिखिते श्रुतिलेहां लिख्यते शिलायुगले । ''
''भोजस्यैव गुणोजितम नमूावतीर्णस्य ॥ २ ॥॥२॥'' ''मनोज्ञां निर्विशन्नेता कल्याणं विजयश्रियं । ''
''सदशो भोजदेवेन धाराधिप ! भविष्यसि ॥ ६ ॥ ॥६॥''

वैसे तो [[प्रबन्धचिन्तामणि]] और [[भोजप्रबन्ध]] आदि में राजा भोज का अनेक कवियों को एक एक श्लोक पर कई कई लाख रुपिया देना लिखा मिलता है । परन्तु इसके [[भूमिदान]] सम्बन्धी यो दानपत्र ही अब वक मिले हैं , उनका वर्णन आगे दिया जाता है । एपिप्राक्रिया इरिडका , मा०८ , पृ . 101 - 10३ ।है।
 
==भोज बनाम महमूद ग़ज़नवी==