"परमार भोज": अवतरणों में अंतर

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मालव चक्रवर्ती सम्राट भोज मध्ययुगीन भारत के इतिहास में सम्राट अशोक तथा विक्रमादित्य के समान महाप्रतापी , शूरवीर , कुशल शासक , विद्वान , कवि , दानी , ज्ञानी , न्यायी , धार्मिक , सदाचारी , विद्वानों का आश्रयदाता , ज्ञान - विज्ञान , कला , साहित्य , संस्कृति का पुरस्कर्ता , एवम् लोक सुख - समृद्धि हेतु सदैव कार्यरत , सुरक्षा दक्ष तथा प्रजा में अगाध लोकप्रिय अद्वितीय आदर्श चक्रवर्ती राजा हुआ । भोज इतना महान व्यक्तित्व का बलाढ्य धनी था कि उसे अनेक उपाधियों से अलंकृत किया गया था , जैसे - महाधिराज परमेश्वर , परम भट्टारक महाधिराज परमेश्वर , मालवमण्डन , सार्वभौम , मालवचक्रवर्ती , अवन्तिनायक , धारेश्वर , निर्वाणनारायण , त्रिभुवननारायण , लोकनारायण , विदर्भराज , अहिराज , अहिंद्र , अभिनवार्जुन , कृष्ण , रणरंगमल्ल , आदित्यप्रताप , चाणक्यमाणिक्य , कविराज आदि करीबन ८४ उपाधियाँ डॉ . श्री . वी . वेंकटाचलम् ने ''धार स्टेट गजेटियर पृ . १०७'' पर उल्लेखित की हैं । भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्व . श्री . पं . जवाहरलाल नेहरु ने भी अपनी जग - विख्यात रचना 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' या [[भारत की खोज]] में राजा भोज को मध्ययुगीन भारत का महान राजा निरुपित किया है ।<ref>चक्रवर्ती राजा भोज.पृ.११.डॉ. ज्ञानेश्वर टेंभरे.Msc. Ph.d.२०१५.श्री गजानन इंटरप्राइजेस-21.सुरेंन्द्रनगर.नागपुर-15.भारत. ISBN 978-935142-832-9</ref>
===भोज की दान किर्ति===
विल्हण ने अपने विक्रमांकदेवचरित् में लिखा है कि , अन्य नरेशों की तुलना राजा भोज से नहीं की जा सकती । इसके अलावा उस समय राजा भोज का यश इतना फैला हुआ था कि , अन्य प्रान्तों के विद्वान् अपने यहाँ के नरेशों की विद्वत्ता और दान शीलता दिखलाने के लिये राजा भोज से ही उनकी तुलना किया करते थे । [[राजतरङ्गिणी]] में लिखा है कि उस समय विद्वान् और विद्वानों के आश्रयदाता क्षीतिराज ( क्षितपति ) और भोजराज ये दोनों ही अपने दान की अधिकता से संसार में प्रसिद्ध थे । [[विल्हण]] ने भी अपने [[विक्रमांकदेवचरित्]] में क्षितिपति की तुलना भोजराज से ही की है । उसमें लिखा है कि लोहरा का राजा वीर क्षीतपती भी भोज के ही समान गुणी था ।<ref>राजा भोज. श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ. पृ.106.इलाहाबाद.हिंदुस्थानी एकेडेमी, यु. पी.1932.</ref>
 
राजगुरु मदन ने अपनी बनाई [[पारिजात मंजरी]] में अपने आश्रय दाता मालवे के परमार नरेश [[अर्जुनवर्मा]] की तुलना भी मुंज आदि से न कर भोज से ही की है । जैसे -
''अत्र कथंचिदलिखिते श्रुतिलेहां लिख्यते शिलायुगले ।''
''भोजस्यैव गुणोजितम नमूावतीर्णस्य ॥२॥''
''मनोज्ञां निर्विशन्नेता कल्याणं विजयश्रियं ।''
''सदशो भोजदेवेन धाराधिप ! भविष्यसि ॥६॥''
 
वैसे तो [[प्रबन्धचिन्तामणि]] और [[भोजप्रबन्ध]] आदि में राजा भोज का अनेक कवियों को एक एक श्लोक पर कई कई लाख रुपिया देना लिखा मिलता है । परन्तु इसके [[भूमिदान]] सम्बन्धी यो दानपत्र ही अब वक मिले हैं , उनका वर्णन आगे दिया जाता है।<ref>राजा भोज. श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ. पृ.107.इलाहाबाद.हिंदुस्थानी एकेडेमी, यु. पी.1932.</ref>
 
==भोज बनाम महमूद ग़ज़नवी==