"परमार भोज": अवतरणों में अंतर

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इसी प्रकार [[काव्य प्रकाश]] में [[मम्मट]] ने उदात्तालङ्कार के उदाहरण में भोज के दान की प्रशंसा का एक श्लोक दिया है , जिसकी चौथी पंक्ति इस प्रकार है -
''यद्विद्वम्दवनेषु भोजनृपतेस्तत्यागलीलामितम् ।''
अर्थात - भोज के आश्रित विद्वानों के घरों में जो ऐश्वर्य देखा जाता है , वह राजा भोज का ही दिया हुआ है । राजा भोज के समय के कवियों और प्रबन्धकारों ने अपने ग्रंथों में इसके दान और गुणों की अत्याधिक प्रशंसा की है । गिरनार नामक [[जैन]] तीर्थ में मिली हुई [[वस्तुपाल]] की प्रशस्ति में भी इसकी दानशीलता की प्रशंसा का उल्लेख है । <ref>चक्रवर्ती राजा भोज.पृ.२६.डॉ. ज्ञानेश्वर टेंभरे.Msc. Ph.d.२०१५.श्री गजानन इंटरप्राइजेस-21.सुरेंन्द्रनगर.नागपुर-15.भारत. ISBN 978-935142-832-9</ref>
 
==भोज बनाम महमूद ग़ज़नवी==