"परमार भोज": अवतरणों में अंतर

→‎परिचय: भोज का प्रारंभिक जीवन : भोज को भोज , भोजदेव , भोजराज , भोजपति , नरेंद्र , आदि नामों से संबोधित किया गया है । पं . राजवल्लभ कृत ' भोजचरित ' में भोज का जन्म माघ शुल्क ५ ( बसंत पंचमी ) को संवत् १०३७ ( ई . ९८० ) में अंकित है । वह पिता मालवाधिश सिंधुलराजदेव तथा माता महारानी सावित्री देवी का ज्येष्ठ पुत्र था तथा वाक्पति मुंजदेव का भतिजा था । भोज की विमाता रत्नावली , शशिप्रभा आदि थी । भोज के लघु भ्राता का नाम दुशल या उत्पलदेव था जो किराड राज्य का स्वतंत्र राजा बना । भोज की पत्नी महारानी ल...
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== परिचय ==
भोज, [[धारा नगरी]] के 'सिन्धुल' नामक राजा के पुत्र थे और इनकी माता का नाम सावित्री था । जब ये पाँच वषं के थे, तभी इनके पिता अपना राज्य और इनके पालनपोषण का भार अपने भाई [[मुंज]] पर छोड़कर स्वर्गवासी हुए थे । भोज को भोज , भोजदेव , भोजराज , भोजपति , नरेंद्र , आदि नामों से संबोधित किया गया है । पं . राजवल्लभ कृत [[भोजचरित]] में भोज का जन्म माघ शुल्क ५ ([[बसंत पंचमी]]) को संवत् १०३७ ( ई . ९८० ) में अंकित है । वह वाक्पति मुंजदेव का भतिजा था । भोज की विमाता रत्नावली , शशिप्रभा आदि थी । भोज के लघु भ्राता का नाम दुशल या उत्पलदेव था जो किराड राज्य का स्वतंत्र राजा बना । भोज की पत्नी महारानी लीलावती तथा अन्य पत्नियाँ सत्यवती , मदनमंजरी , भानुमती , पिंगला , सुभद्रा आदि थी । भोज के तीन पुत्र थे जयसिंह , देवराज तथा वत्सराज तथा दो पुत्रियाँ - राजमति एवं भानुमति थी । भोज की पत्नी , महारानी लीलावती महान कवियत्री तथा गणितज्ञ थी एवं राजदरबार में महाकवी कालीदास को कई बार शास्त्रार्थ वाद - विवाद में हरा चुकी थी । _ _ भोज सभी प्रकार के [[शस्त्र]] तथा [[शास्त्रों]] में निपुन था । उसने राजा मुंजदेव ( ताऊ ) तथा राजा सिंधुलराजदेव ( पिता ) के काल में शुरवीर [[सेनानी]] तथा विद्वान [[कवि]] के रुप में ख्याति पाई थी । किसी समय महाराजा मुंज के दरबार में एक ज्योतिषी आया तथा उसने भोज की जन्म कुंडली देखकर बतलाया कि हे राजन , सुनो -
 
''पंच्चाशत्पंचवर्षाणि सप्त मास दिनत्रयम् । भोजराजेन भोक्तव्या सगौडो दक्षिणपथः । ।''
 
अर्थात् - ५५ वर्ष , ७ माह ३ दिन गौड़ बंगाल सहित दक्षिण दिशा का राज्य भोजराज भोगेगा ।<ref>चक्रवर्ती राजा भोज.पृ.१७.डॉ. ज्ञानेश्वर टेंभरे.Msc. Ph.d.२०१५.श्री गजानन इंटरप्राइजेस-21.सुरेंन्द्रनगर.नागपुर-15.भारत. ISBN 978-935142-832-9</ref>
 
मुंज इनकी हत्या करना चाहता था, इसलिये उसने [[बंगाल]] के वत्सराज को बुलाकर उसको इनकी हत्या का भार सौंपा । वत्सराज इन्हें बहाने से [[देवी]] के सामने [[बलि]] देने के लिये ले गया । वहाँ पहुँचने पर जब भोज को मालूम हुआ कि यहाँ मैं बलि चढ़ाया जाऊँगा, तब उन्होंने अपनी जाँघ चीरकर उसके रक्त से [[बड़]] के एक पत्ते पर दो श्लोक लिखकर वत्सराज को दिए और कहा कि थे मुंज को दे देना । उस समय वत्सराज को इनकी हत्या करने का साहस न हुआ और उसने इन्हें अपने यहाँ ले जाकर छिपा रखा । जब वत्सराज भोज का कृत्रिम कटा हुआ सिर लेकर मुंज के पास गया, और भोज के श्लोक उसने उन्हें दिए, तब मुंज को बहुत पश्चाताप हुआ । मुंज को बहुत विलाप करते देखकर वत्सराज ने उन्हें असल हाल बतला दिया और भोज को लाकर उनके सामने खड़ा कर दिया । मुंज ने सारा राज्य भोज को दे दिया और आप सस्त्रीक वन को चले गए ।