"लेखाकरण": अवतरणों में अंतर
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लेखे रखने की क्रिया किसी न किसी रूप में उस समय से विद्यमान है जब से व्यवसाय का जन्म हुआ है। एक बहुत छोटा व्यापारी मस्तिष्क में याद्दाश्त का सहारा लेकर लेखा रख सकता है, दूसरा उसे कागज पर लिखित रूप प्रदान कर सकता है। व्यवस्थित रूप से लेखा रखा जाये या अव्यवस्थित रूप से, यह लेखांकन ही कहलायेगा। जैस व्यवसाय का आकार बढ़ता गया और व्यवसाय की प्रकृति जटिल होती गई लेखांकन व्यवस्थित रूप लेने लगा। इसमें तर्क वितर्क, कारण प्रभाव विश्लेषण के आधार पर प्रतिपादित ठोस नियमों एवं सिद्धान्तों की नींव पड़ती गई एवं सामान्य लेखा-जोखा एक कालान्तर में वृहत लेखाशास्त्र के रूप में हमारे सामने आया।
== Nirgamit लेखांकन
आधुनिक व्यवसाय का आकार इतना विस्तृत हो गया है कि इसमें सैकड़ों, सहस्त्रों व अरबों व्यावसायिक लेनदेन होते रहते हैं। इन लेन देनों के ब्यौरे को याद रखकर व्यावसायिक उपक्रम का संचालन करना असम्भव है। अतः इन लेनदेनों का क्रमबद्ध अभिलेख (records) रखे जाते हैं उनके क्रमबद्ध ज्ञान व प्रयोग-कला को ही लेखाशास्त्र कहते हैं। लेखाशास्त्र के व्यावहारिक रूप को लेखांकन कह सकते हैं। अमेरिकन इन्स्ट्टीयूट ऑफ सर्टिफाइड पब्लिक अकाउन्टैन्ट्स (AICPA) की लेखांकन शब्दावली, बुलेटिन के अनुसार ‘‘लेखांकन उन व्यवहारों और घटनाओं को, जो कि कम से कम अंशतः वित्तीय प्रकृति के है, मुद्रा के रूप में प्रभावपूर्ण तरीके से लिखने, वर्गीकृत करने तथा सारांश निकालने एवं उनके परिणामों की व्याख्या करने की कला है।’’
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