"परमार भोज": अवतरणों में अंतर

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भोज की ज्ञान साधना:-यह भोज न केवल विद्वानों का प्राश्रयदाता अपितु स्वयं भी विद्वान था । वह सारे राज शास्त्र , ३६ आयुधविज्ञान , ७२ कलाओं एवं सारे लक्षणों से अभिज्ञ था । [[धनपाल]] भी भोज को अशेप वाड्मय का वेत्ता समझता है । शृंगार मंजरी कथा में भी भोज को प्रशस्तगीर्वाण तथा असीम जान का वेत्ता कहा गया है । उसके मुख का आश्रय पाकर वाग्देवता फुली न समाती है। वह सारे शास्त्र , निखिल कला तथा सकल विज्ञानों का वेत्ता था । एक बार सुनने पर वह कभी नहीं भूलता था । उसमें ग्रन्थ - निर्माण की अद्भुत क्षमता थी । वह बड़ी शीघ्रता से अनेक ग्रन्थों का निर्माण कर सकता था। उसे 104 गीत - प्रबन्धों अथवा 84 प्रबन्धों का रचयिता कहाँ गया है। <ref>राजा भोज का रचनाविश्व. पृ.३. डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित, आचार्य हिंदी विभाग. सान्दिपनी महाविज्ञालय,उज्जैन (म.प्र.).पब्लिकेशन स्कीम. जयपुर. भारत.ISBN 81-85263-63-9.</ref>
मेरुतुंग ने भोज को 104 गीतप्रबन्धों का रचयिता बताया है । समुद्रगुप्त के समान भोजराज को भी "कविराज" उपाधि से अभिहित किया गया है । कविराज श्री भोजराज ने अपने युग में प्रचलित ज्ञान के प्रायः अशेप आयामों को अपनी तथा अपने आधित विद्वानों की लेखनी में नमेटने का प्रयास किया । भोज की कृतियाँ प्रायः सभी प्रमुख विषयों से सम्बद्ध ज्ञात होती है । [[साहित्य]] , [[साहित्यशास्त्र]] , [[व्याकरण]] , कोप , इतिहास , [[दर्शन]] , धर्मशास्त्र , [[ज्योतिष]] , [[राजनीतिशास्त्र]] , [[आयुर्वेद]] , [[स्थापत्य]] तथा [[संगीत]] से सम्बद्ध पचास से अधिक ग्रन्थों के अभिधान उपलब्ध हो चुके हैं । इन सभी विषयों पर भोज ने अधिकारपूर्वक अपना अभिमत प्रस्तुत किया है । वह कई स्थलों पर अपने पूर्ववर्ती विद्वानों की अपेक्षा कई नूतन बातें प्रस्तुत करता है जिनका परवर्ती विद्वानों ने सादर स्मरण किया है । [[पाणिनि]] के पश्चात् भोज की अष्टाध्यायी उस युग में विशेष लोकप्रिय हुई । पद - पद पर पाणिनि तथा [[अमरकोष]] को उद्धृत करने में निरत मल्लिनाथ भी कतिपय स्थलों पर भोज के व्याकरणगत अभिमगों तथा कोष को उधृत कर देता है । वह आचारशास्त्र , ज्योतिष , अश्वशास्त्र , काव्यशास्त्र आदि के लिए भी भोज की वाणी का स्मरण करता है । उसके काव्यशास्त्र एवं संगीत से सम्बद्ध अभिमतों का परवर्ती काल में अनेक बार स्मरण किया गया । उसके धर्मशास्त्रगत अभिमतों के उल्लेख [[शूलपाणि]] , अल्लाडनाथ , रधुनन्दन तथा विज्ञानेश्वर ने किये हैं । आयुर्वेद के लिए [[रुग्विनिश्चय]] तथा [[भावप्रकाश]] में , व्याकरण - कोष आदि के लिए भट्टोजि दीक्षित , भानुजि दीक्षित , क्षीरस्वामी , सायण , महीप आदि ने उसे उद्धृत किया । ज्योतिष के लिए [[केशवाक]] ने भोज का स्मरण किया है । छित्तप , दिवेश्वर , विनायक , शंकरसरस्वती , सरस्वतीकूटम्बदहित , हरिहर आदि ने भोज की कविरूप में प्रशंसा की है। <ref>राजा भोज का रचनाविश्व. पृ.४. डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित, आचार्य हिंदी विभाग. सान्दिपनी महाविज्ञालय,उज्जैन (म.प्र.).पब्लिकेशन स्कीम. जयपुर. भारत.ISBN 81-85263-63-9.</ref>
==विद्वानों का उपनाम भोज==
[[अजड]] तथा [[मेरुतुंग]] के अनुसार भोज के विरुद तथा उसके ग्रन्थों के अभिधान एक ही थे । कविवन्धु वाक्पतिराज मुंज की परम्परा को सिन्धुराज ने आगे बढ़ाया । भोजराज इस वंश की इस प्रशस्त परम्परा का अन्तिम तो नहीं परन्तु ऐसा दैदीप्यमान दीपस्तम्भ था जिसकी ऊंचाई तथा आलोक की समता कोई भी भारतीय नरेश नहीं कर पाया । भोज ने जो साधा , जो विधान किया , जो दिया तथा जो ज्ञात किया वह अपूर्व था , इसीलिए वह इन क्षेत्रों के लिए उपमान बन गया ।[[कन्दर्पचुडामणि]] के उक्त श्लोकानुसार अनुसार वीरभद्र राजा ने स्वयं को भोज के समान विविध विद्या से सम्बद्ध ग्रन्थ का निर्माता कहा है -
 
''भोज इवायं निरतो नानाविद्यानिबन्धनिर्माण ।''
''समयोच्छिन्नप्राये सोद्योगः कामशास्त्रोपि ॥''
 
[[वेंकटकृष्ण]] ने अपने पाश्रयदाता नरेश गोपाल को भी भोज से उपमित किया है -
 
''बोधे कलानां नवभोजराजः ।''
अर्थात् इनकी कलाओं से बोध होता है कि यह नया भोजराज है।
 
दान में भी उसका विक्रम के साथ स्मरण किया गया है -
''दाणेण बलिभोयविक्कमकहानिव्वाहगो नायगो । ।''
''सो एसौ जयचन्दणाम ण पहू कस्सासयं पीइदौ ॥''
 
==भोज के समय में भारतीय विज्ञान==