"परमार भोज": अवतरणों में अंतर

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[[कर्म]] के लिए कही गयी भोज की यह उकि स्वयं भोज के लिए सार्थक बन गयी है -
 
''उवमाणं कह लव्भउ पेच्छह कुम्मस्स असमचरिअस्स ।''<ref>राजा भोज का रचनाविश्व. पृ.४-५. डॉ.भगवतीलाल राजपुरोहित, आचार्य हिंदी विभाग. सान्दिपनी महाविज्ञालय,उज्जैन (म.प्र.).पब्लिकेशन स्कीम. जयपुर. भारत.ISBN 81-85263-63-9.</ref>
 
==भोज के समय में भारतीय विज्ञान==