"गाय": अवतरणों में अंतर
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=== काँकरेज ===
कच्छ की छोटी खाड़ी से दक्षिण-पूर्व का भूभाग, अर्थात् सिंध के दक्षिण-पश्चिम से [[अहमदाबाद]] और रधनपुरा तक का प्रदेश, काँकरेज गायों का मूलस्थान है। वैसे ये [[काठियावाड़]], [[बड़ोदा]] और [[सूरत]] में भी मिलती हैं। ये सर्वांगी जाति की गाए हैं और इनकी माँग विदेशों में भी है। इनका रंग रुपहला भूरा, लोहिया भूरा या काला होता है। टाँगों में काले चिह्न तथा खुरों के ऊपरी भाग काले होते हैं। ये सिर उठाकर लंबे और सम कदम रखती हैं। चलते समय टाँगों को छोड़कर शेष शरीर निष्क्रिय प्रतीत होता है जिससे इनकी चाल अटपटी मालूम पड़ती है। केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान में गाय पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार कांकरेज गाय किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ा सकती है।<ref name=":0">{{Cite web|url=https://hindi.news18.com/news/uttar-pradesh/meerut-seminar-on-33rd-foundation-day-of-the-central-institute-for-research-on-cattle-scientists-claim-the-income-of-farmers-increase-by-gir-and-kankrej-cow-upum-nsng-nodsr-2575885.html|title=मेरठ: वैज्ञानिकों का दावा- गीर व कांकरेज गाय किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ाएगी !|date=2019-11-04|website=News18 India|access-date=2019-12-24}}</ref>
=== मालवी ===
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इस गाय का मूल मूल स्थान राजस्थान में बीकानेर, श्रीगंगानगर हैं। ये लाल-सफेद चकते वाली,काले-सफेद,लाल, भूरी,काली, आदि कई रंगों की होती है। ये खाती कम और दूध खूब देती हैं। ये प्रतिदिन का 10 से 20 लीटर तक दूध देती है। इस पर पशु विश्वविद्यालय बीकानेर राजस्थान में रिसर्च भी काफी हुआ है। इसकी सबसे बड़ी खासियत, ये अपने आप को भारत के किसी भी कोने में ढाल लेती है।
'''गीर'''- ये प्रतिदिन 12 लीटर या इससे अधिक दूध देती हैं। इनका मूलस्थान काठियावाड़ का गीर जंगल है।राजस्थान मे रैण्डा व अजमेरी के नाम से जाना जाता है{{cn}} केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान में गाय पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार गीर गाय किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ा सकती है।<ref name=":0" />
'''देवनी''' - दक्षिण [[आंध्र प्रदेश]] और हिंसोल में पाई जाती हैं। ये दूध खूब देती है।
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