"परमार वंश": अवतरणों में अंतर

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राजा भोज की मृत्यु के पश्चात्‌ चोलुक्य कर्ण और कर्णाटों ने मालव को जीत लिया, किंतु भोज के एक संबंधी उदयादित्य ने शत्रुओं को बुरी तरह पराजित करके अपना प्रभुत्व पुन: स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। उदयादित्य ने मध्यप्रदेश के उदयपुर नामक स्थान में नीलकंठ शिव के विशाल मंदिर का निर्माण कराया था। उदयादित्य का पुत्र जगद्देव बहुत प्रतिष्ठित सम्राट् था। वह मृत्यु के बहुत काल बाद तक पश्चिमी भारत के लोगों में अपनी गौरवपूर्ण उपलब्धियों के लिय प्रसिद्ध रहा। मालव में परमार वंश के अंत अलाउद्दीन खिलजी द्वारा 1305 ई. में कर दिया गया।
 
परमार वंश की एक शाखा आबू पर्वत पर चंद्रावती को राजधानी बनाकर, 10वीं शताब्दी के अंत में 13वीं शताब्दी के अंत तक राज्य करती रही। इस वंश की दूसरी शाखा वगद (वर्तमान बाँसवाड़ा) और डूंगरपुर रियासतों में उट्ठतुक बाँसवाड़ा राज्य में वर्त्तमान अर्थुना की राजधानी पर 10वीं शताब्दी के मध्यकाल से 12वीं शताब्दी के मध्यकाल तक शासन करती रही। वंश की दो शाखाएँ और ज्ञात हैं। एक ने जालोर में, दूसरी ने बिनमाल में 10वीं शताब्दी के अंतिम भाग से 12वीं शताब्दी के अंतिम भाग तक राज्य किया। [[धारावर्ष परमार]] यह [[आबू]] के परमारों में बड़ा प्रसिद्ध और पराक्रमी शासक हुआ । गुजरात के राजा [[कुमारपाल]] ने जब कोंकण ( उत्तरी ) के राजा ( मल्लिकार्जुन ) पर दो चढ़ाइयां कर उसको मारा उस समय कुमारपाल की सेना के साथ वह भी था और उसने भी अपनी वीरता दिखाई थी । [[ताजुल मासिर]] नाम की फ़ारसी तवारीख से पाया जाता है कि हिजरी सन् ५६३के सफ़र ( वि० सं० १२५३ पौष या माघ - ई० स० ११६६ ) महीने मे [[कुतबुद्दीन ऐब़क]] ने अणहिलवाड़े पर चढ़ाई की । उस समय आबू के नीचे ( कायद्रां गांव के पास ) बड़ी लड़ाई हुई , जिसमे धारावर्ष गुजरात की सेना के दो मुख्य सेनापतियों में से एक था । इस लड़ाई में गुजरात की सेना हारी , परंतु उसी जगह थोड़े ही समय पहले जो एक दूसरी लड़ाई हुई थी उसमें शहाबुद्दीन गोरी घायल होकर भागा था । उस लड़ाई में भी धारावर्ष का लढना पाया जाता है। <ref>राजपुताने का इतिहास. जि. १. रायबहादुर गौरीशंकर हिराचंद ओझा. पृ.१६७. बाबु चांडमल चंडक प्रबंध. वैदिक यंत्रालय, अजमेर. विक्रम संवत् १६६३.</ref>
 
=== वर्तमान ===
वर्तमान में परमार वंश की एक शाखा उज्जैन के गांव नंदवासला,खाताखेडी तथा नरसिंहगढ एवं इन्दौर के गांव बेंगन्दा में निवास करते हैं।धारविया परमार तलावली में भी निवास करते हैंकालिका माता के भक्त होने के कारण ये परमार कलौता के नाम से भी जाने जाते हैं।धारविया भोजवंश परमार की एक शाखा धार जिल्हे के सरदारपुर तहसील में रहती है। इनके ईष्टदेव श्री हनुमान जी तथा कुलदेवी माँ कालिका(धार)है|ये अपने यहाँ पैदा होने वाले हर लड़के का मुंडन राजस्थान के पाली जिला के बूसी में स्थित श्री हनुमान जी के मंदिर में करते हैं। इनकी तीन शाखा और है;एक बूसी गाँव में,एक मालपुरिया राजस्थान में तथा एक निमच में निवासरत् है।11वी से 17 वी शताब्दी तक पंवारो का प्रदेशान्तर सतपुड़ा और विदर्भ में हुआ । सतपुड़ा क्षेत्र में उन्हें भोयर पंवार कहा जाता है धारा नगर से 15 वी से 17 वी सदी स्थलांतरित हुए पंवारो की करीब 72 (कुल) शाखाए बैतूल छिंदवाडा वर्धा व् अन्य जिलों में निवास करती हैं। पूर्व विदर्भ, मध्यप्रदेश के बालाघाट सिवनी क्षेत्र में धारा नगर से सन 1700 में स्थलांतरित हुए पंवारो/पोवारो की करीब 36 (कुल) शाखाए निवास करती हैं जो कि राजा भोज को अपना पूर्वज मानते हैं । संस्कृत शब्द प्रमार से अपभ्रंषित होकर परमार तथा पंवार/पोवार/भोयर पंवार शब्द प्रचलित हुए ।