"परमार वंश": अवतरणों में अंतर
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परमार(पँवार) वंश कि उत्पत्ति राजस्थान के आबू पर्वत में स्थित अनल कूण्ड हुई थी तथा चन्द्रावती एव किराडू दो मुख्य राजधानीया भी राजस्थान में ही थी यही से परमार(पँवार) मालवा गये एवं उज्जैन(अवंतीका) एवं धार(धारा) को अपनी राजधानी बनाया भारत वर्ष में केवल परमार(पँवार)वंश ही एक मात्र ऐसा वंश हैं जिसमें चक्रवर्ती सम्राट हुई इसलिए यह कहा जाता है कि
''पृथ्वी तणा परमार, पृथ्वी परमारो तणी'' यानी धरती की शोभा परमारो से है या इस धरती की रक्षा का दायित्व परमारो का
पंवारी के विषय में एक मत है कि यह जाति चन्द्रवंशी है । पँवार जाति में कई नाम परिवर्तित पाए जाते है - परमार,प्रमार,प्रमर,पंवार,पोंवार। प्राचीन परमार लोगों के आधीन जो नगर में आज भी विद्यमान है । महारगती ( महेश्वर ) पारा मण्डपदुर्ग ( माण्डू ) उज्जैयिनी,चन्द्रभाग,चित्तौड़, आबू , चन्द्रावती , मऊ मैदान पवारवती , अमरकोट , लोह , दूर्वा और पाटन इन नगरों को पंवारों ने अपनाया था या इन पर विजय प्राप्त की थी । पंवारों का राज्य नर्मदा नदी के पार दक्षिण भारत तक फैला था । कवि चन्द्र भट्ट ने लिखा है कि राम पंवार भारत वर्ष के चक्रवर्ती राजा थे । चन्दबरदाई के काल में भी पँवार वंश की प्रशस्ति लिखी गई है । सन् 888 ई० सम्वत् 945 विक्रमी में पंवारों की एक शाखा मालवे में हिमालय की और आयी । जिस शाखा का मूल राजा कनकपाल था। जो कि गढ़वाल के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है । कनकपाल के विषय में युरोपियन इतिहासकारों ने विभिन्न विचार व्यक्त किए है । हार्डविक साहब के विचार से उसका नाम कनकपाल नहीं था , बल्कि भोगदन्त था । वह पंवार क्षत्रिय था । अपने भाई सुंत्रदत्त के साथ अहमदाबाद गुजरात से सबसे पहले गढ़वाल में आया था । बह योग्य और साहसी था और चाँदपुर के राजा की जो सब राजाओं में बड़ा और बलिष्ट था , सेना में भर्ती हुआ था उस राजा की कृपासे भोगदन्त ने बड़ी उन्नति कर सेना में सबसे बड़ा पद । प्राप्त किया और सेनापति बना । राजा ने अपनी कन्या का विवाह उससे किया , बाद में उसने राजा की गद्दी से उतारा और अपने पौरुष के बल पर सब राजाओं को अपने आधीन कर लिया । . गढ़वाल में एक जाति राठियों की कही जाती हैं । अनुमान किया जाता है कि यह जाति कनकपाल के साथ सैनिकों के रूप में गहाँ आयौ थी और वही जम गयी , गोंकि राठ ' नाम से एक पदढी अभी तक मिलती है ।<ref>https://books.google.co.in/books?id=BwFjDwAAQBAJ&printsec=frontcover</ref>
राजा मुंज , मोज , अमोघवर्ष , आदि नरेश तो स्वयं बड़े विद्वान , [[लेखक]] और [[कवि]] थे तथा इन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना को , विशेषकर राजा भोज ने । यद्यपि इस युग में अनेक विषयों पर ग्रंथ रचे गये पर ये ग्रंथ निम्न कोटि के थे । उनमें सरसता , सरचि और मौलिकता का प्रभाव था ।<ref>Pārva madhyakālina Bhārata kā rūjannitika evani sāmskrtika itihāsa.Bhanwarlal Nathuram Luniya
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