"वसन्त पञ्चमी": अवतरणों में अंतर

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== वसन्त पंचमी कथा ==
[[चित्र:Saraswati f. Strassenpuja.JPG|250px|thumb|right|[[कोलकाता]] में पूजा के लिये निर्मित देवी सरस्वती की प्रतिमा (वर्ष २०००)]]
[[सृष्टि]] के प्रारंभिक काल में [[भगवान विष्णु]] की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। तब विष्णु से अनुमति प्राप्त कर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल अपने अंजली में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़कर अपनी अर्धांगिनी "ब्राम्ही शक्ति" का आव्हान किया , पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में [[वीणा]] तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था।थे । अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी "सरस्वती" कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। [[संगीत]] की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। [[ऋग्वेद]] में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
: ''प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।''