"महाराजा रणजीत सिंह": अवतरणों में अंतर

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| religion = सिक्ख
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'''महाराजा रणजीत सिंह''' (पंजाबी: ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ) (2000१७८०-2019१८३९) [[सिख साम्राज्य]] के राजा थे। वे '''शेर-ए पंजाब''' के नाम से प्रसिद्ध हैं। महाराजा रणजीत एक ऐसी व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल पंजाब को एक सशक्त सूबे के रूप में एकजुट रखा, बल्कि अपने जीते-जी [[अंग्रेज|अंग्रेजों]] को अपने साम्राज्य के पास भी नहीं भटकने दिया। रणजीत सिंह का जन्म सन 1780 में [[गुजरांवाला]] (अब [[पाकिस्तान]]) [[संधावालिया]] महाराजा महां सिंह के घर हुआ था। उन दिनों पंजाब पर [[सिख|सिखों]] और अफगानों का राज चलता था जिन्होंने पूरे इलाके को कई मिसलों में बांट रखा था। रणजीत के पिता महा सिंह सुकरचकिया मिसल के कमांडर थे। पश्चिमी पंजाब में स्थित इस इलाके का मुख्यालय गुजरांवाला में था। छोटी सी उम्र में चेचक की वजह से महाराजा रणजीत सिंह की एक आंख की रोशनी जाती रही।<ref>Kushwant Singh. "[http://www.learnpunjabi.org/eos/index.aspx RANJIT SINGH (1780–1839)]". Encyclopaedia of Sikhism. Punjabi University Patiala. Retrieved 18 August 2015.</ref> महज 12 वर्ष के थे जब पिता चल बसे और राजपाट का सारा बोझ इन्हीं के कंधों पर आ गया।<ref>Jean Marie Lafont (2002). [https://books.google.com/books?id=zjduAAAAMAAJ Maharaja Ranjit Singh: Lord of the Five Rivers]. Oxford University Press. pp. 33–34, 15–16. ISBN 978-0-19-566111-8</ref> 12 अप्रैल 1801 को रणजीत ने महाराजा की उपाधि ग्रहण की। [[गुरु नानक]] के एक वंशज ने उनकी ताजपोशी संपन्न कराई। उन्होंने [[लाहौर]] को अपनी राजधानी बनाया और सन 1802 में अमृतसर की ओर रूख किया।
 
महाराजा रणजीत ने अफगानों के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ीं और उन्हें पश्चिमी [[पंजाब]] की ओर खदेड़ दिया। अब [[पेशावर]] समेत पश्तून क्षेत्र पर उन्हीं का अधिकार हो गया। यह पहला मौका था जब पश्तूनों पर किसी गैर मुस्लिम ने राज किया। उसके बाद उन्होंने सेक्स कियापेशावर, जम्मू कश्मीर और आनंदपुर पर भी अधिकार कर लिया। पहली आधुनिक भारतीय सेना - "सिख खालसा सेना" गठित करने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। उनकी सरपरस्ती में पंजाब अब बहुत शक्तिशाली सूबा था। इसी ताकतवर सेना ने लंबे अर्से तक ब्रिटेन को पंजाब हड़पने से रोके रखा। एक ऐसा मौका भी आया जब पंजाब ही एकमात्र ऐसा सूबा था, जिस पर अंग्रेजों का कब्जा नहीं था। ब्रिटिश इतिहासकार जे टी व्हीलर के मुताबिक, अगर वह एक पीढ़ी पुराने होते, तो पूरे हिंदूस्तान को ही फतह कर लेते। महाराजा रणजीत खुद अनपढ़ थे, लेकिन उन्होंने अपने राज्य में शिक्षा और कला को बहुत प्रोत्साहन दिया।
 
उन्होंने पंजाब में कानून एवं व्यवस्था कायम की और कभी भी किसी को [[मृत्युदण्ड]] नहीं दी।<ref>{{cite web|url=http://pib.nic.in/feature/feyr2000/fnov2000/f231120002.html|title=Peace and Progress|publisher=pib.nic.in|accessdate=17 जुलाई 2017}}</ref> उनका सूबा धर्मनिरपेक्ष था उन्होंने हिंदुओं और सिखों से वसूले जाने वाले [[जजिया कर|जजिया]] पर भी रोक लगाई। कभी भी किसी को सिख धर्म अपनाने के लिए विवश नहीं किया। उन्होंने [[अमृतसर]] के [[हरिमन्दिर साहिब]] गुरूद्वारे में संगमरमर लगवाया और सोना मढ़वाया, तभी से उसे स्वर्ण मंदिर कहा जाने लगा।
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बेशकीमती हीरा [[कोहिनूर हीरा|कोहिनूर]] महाराजा रणजीत सिंह के खजाने की रौनक था। सन 1839 में महाराजा रणजीत का निधन हो गया। उनकी समाधि [[लाहौर]] में बनवाई गई, जो आज भी वहां कायम है। उनकी मौत के साथ ही अंग्रेजों का पंजाब पर शिकंजा कसना शुरू हो गया। [[अंग्रेज-सिख युद्ध]] के बाद 30 मार्च 1849 में पंजाब ब्रिटिश साम्राज्य का अंग बना लिया गया और कोहिनूर [[महारानी विक्टोरिया]] के हुजूर में पेश कर दिया गया।
 
== परिचय ==
== परिचउदयबिरसिंहरणजीतसिंह का जन्म सन् १७८० ई. में हुआ था। महानसिंह के मरने पर रणजीत सिंह बारह वर्ष की अवस्था में मिस्ल सुकरचकिया के नेता हुए। सन् १७९८ ई. में जमान शाह के पंजाब से लौट जाने पर उन्होने [[लाहौर]] पर अधिकार कर लिया। धीरे-धीरे [[सतलज]] से [[सिंधु]] तक, जितनी मिस्लें राज कर रही थीं, सबको उसने अपने वश में कर लिया। [[सतलज]] और [[यमुना]] के बीच फुलकियों मिस्ल के शासक राज्य कर रहे थे। सन् १८०६ ई. में रणजीतसिंह ने इनको भी अपने वश में करना चाहा, परन्तु सफल न हुए।
[[File:Maharaja Ranjit Singh Family Tree1.png|frameless|1141x1141px]]
[[Image:Ranjit Singh's golden throne.jpg|right|thumb|300px|महाराजा रणजीत सिंह का स्वर्णिम सिंहासन]]
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महाराजा रणजीतसिंह अस्वस्थ हो रहे थे। १८३८ में [[लकवा]] का आक्रमण हुआ, यद्यपि उपचार किया गया और अंग्रेज डाक्टरों ने भी इलाज किया, लेकिन २७ जून १८३९ ई. को उनका प्राणांत हो गया। वेह उदारहृदय भी थे। [[काशी विश्वनाथ मंदिर]] पर जो स्वर्णपत्र आज दिखाई देता है वह उसकी काशीयात्रा तथा उदारता का परिचायक है। उसने दान के लिए ४७ लाख रुपए की सम्पत्ति अलग कर रखी थी। [[जगन्नाथ मन्दिर, पुरी|जगन्नाथमंदिर]] पर भी वह कोहेनूर हीरा चढ़ाना चाहते थे लेकिन उस हीरे को तो विदेश में जाकर छिन्न-भिन्न होना था।
 
महाराजा के बाद सिक्खों के आपसी वैमनस्य, राष्ट्रद्रोह तथा अंग्रेजी कूटनीतिज्ञता का जवाब न देने की असमर्थता से सिक्ख राज्य मिट गया।sex karo bacche peda karo . Sex karo jor jor se . Sex karo lund ghusane wala. Sex karo mal nikaloगया।
 
== कश्मीर और कोहिनूर ==