"हाइकु": अवतरणों में अंतर
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हाइकु को काव्य विधा के रूप में [[बाशो]] (१६४४-१६९४) ने प्रतिष्ठा प्रदान की। हाइकु मात्सुओ बाशो के हाथों सँबरकर १७ वीं शताब्दी में जीवन के दर्शन से जुड़ कर जापानी कविता की युगधारा के रूप में प्रस्फुटित हुआ। आज हाइकु जापानी साहित्य की सीमाओं को लाँघकर विश्व साहित्य की निधि बन चुका है।
¤ उदाहरण-
* हाइकु अनुभूति के चरम क्षण की कविता है।<ref>जापानी कविताएँ, अनुवादक- डॉ॰[[सत्यभूषण वर्मा]], सीमान्त पब्लिकेशंस इंडिया, १९७७, पृष्ठ-२२</ref>▼
[https://www.rajpalsinghgulia.com/2019/12/hindi-haiku.html?m=1 जिद को छोड़]
[https://www.rajpalsinghgulia.com/2019/12/hindi-haiku.html?m=1 प्यार में तू नभ के]
[https://www.rajpalsinghgulia.com/2019/12/hindi-haiku.html?m=1 तारे ना तोड़ ।]
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* बिंब समीपता (juxtaposition of the images) हाइकु संरचना का मूल लक्षण है। इस से पाठक को रचना के भाव में अपने आप को सहिकारी बनाने की जगह मिल जाती है।
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