"प्रतिरक्षा प्रणाली": अवतरणों में अंतर

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== प्रतिरक्षा ==
[[संक्रामक रोग|संक्रामक रोगों]] का निवारण करने की शरीर की शक्ति को '''प्रतिरक्षा''' ([https://www.onlymyfitness.in/2019/12/height-kaise-badhaye.html?m=1 Immunity]) कहते हैं। किंतु सभी शक्तियाँ प्रतिरक्षा में नहीं गिनी जातीं। त्वचा जीवाणुओं को शरीर में प्रविष्ट नहीं होने देती। आमाशयिक रस का अम्ल जीवाणुओं को नष्ट कर देता है, किंतु यह प्रतिरक्षा के अंतर्गत नहीं आता। ये शरीर की रक्षा के प्राकृतिक साधन हैं। प्रतिरक्षा से अर्थ है ब्राह्य प्रोटीनों को रक्त में उपस्थित विशिष्ट वस्तुओं द्वारा नष्ट कर डालने की शक्ति। जीवाणु जो शरीर में प्रविष्ट होते हैं, उनके शरीरों के घुलने से प्रोटीन उत्पन्न होते हैं। उनकी नष्ट कर देने की शक्ति रक्त में होती है। इस क्रिया का रूप रासायनिक तथा भौतिक होता है, यद्यपि यह शक्ति कुछ सीमा तक प्राकृतिक होती है, किंतु वह विशेषकर उपार्जित (aquired) होती है और जीवाणुओं और वाइरसों (viruses) के शरीर में प्रविष्ट होने से शरीर में इन कारणों को नष्ट करनेवाली वस्तुएँ उत्पन्न हो जाती हैं। यह विशिष्ट (specific) प्रतिरक्षा कहलाती है। इन रोगों के कीटाणुओं को प्राणी के शरीर में प्रविष्ट किया जाता है, तो उससे शरीर उनका नाश करने वाली वस्तुएँ स्वयं बनाता है। यह सक्रिय रोग क्षमता है। इसको उत्पन्न करने के लिये जिस वस्तु को शरीर में प्रविष्ट कराया जाता है वह वैक्सीन कहलाती है। जब एक जंतु के शरीर में वैक्सीन प्रविष्ट करने से सक्रिय क्षमता उत्पन्न हो जाती है, तो उसके शरीर से थोड़ा रक्त निकालकर, उसके सीरम को पृथक्‌ करके, उसको दूसरे जंतु के शरीर में प्रविष्ट करने से निष्क्रिय क्षमता उत्पन्न होती है। अर्थात्‌ एक जंतु का शरीर उन जीवाणुनाशक वस्तुओं को उत्पन्न करता है और इन प्रतिरक्षक वस्तुओं को दूसरे जंतु के शरीर में प्रविष्ट करके उसको रोगनाशक शक्ति से संपन्न कर दिया जाता है। यह हुई निष्क्रिय प्रतिरक्षा। चिकित्सा में इसका बहुत प्रयोग किया जाता है। डिफ्थीरिया, टिटैनस आदि रोगों की इसी प्रकार तैयार किए गए ऐंटीटॉक्सिक सीरम से चिकित्सा की जाती है।
 
रक्त कई प्रकार की जीवाणुनाशक शक्तियों से युक्त है। रक्त की श्वेत कणिकाओं (white corpuscles) में जीवाणु तथा सब बाह्य वस्तुओं को खा जाने की शक्ति होती है। इस कार्य को जीवाणुभक्षण कहा जाता है। रक्त जीवाणुओं को गला देता है, जो जीवाणुलयन (bacteriolysis) कहा जाता है। इसका कारण रक्त में उपस्थित एक रासायनिक वस्तु होती है, जो बैक्टीरियोलयसिन कहलाती है। रक्त में जीवाणुओं को बांध देने की भी शक्ति होती है। रोगाक्षम किए हुए जंतु के शरीर में पहुँचकर जीवाणुओं के गुच्छे से बन जाते हैं। उनकी गतिशक्ति नष्ट हो जाती है। यह घटना समूहन (agglutination) कही जाती है और जो वस्तु इसका कारण होती है वह ऐग्लूटिनिन कहलाती है। जीवाणु शरीर में जीवविष उत्पन्न करते हैं। प्रतिरक्षक जीवाणु में इन विषों को मारनेवाली शक्तियाँ भी उत्पन्न होती हैं, जो प्रतिजीव विष (antioxin) कहलाती हैं। ये विशिष्ट वस्तुएँ होती हैं। जिस रोग के विरुद्ध प्रतिरक्षा की जाती है, उसी रोग के जीवाणुओं का इससे नाश या निराकरण होता है। यही विशिष्ट प्रतिरक्षा कहलाती है। रक्त में दूसरे जंतु के रक्त की कोशिकाओं को भी घोल लेने की शक्ति होती है, जो रक्तद्रवण (हीमोलाइसिस, heamolysis) कहलाती है।
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== सन्दर्भ ==
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{{टिप्पणीसूची}}<ref>{{Citation|last=Nusser|first=Stefan|title=Sicherheitsarchitektur für WWW-Informationssysteme|date=1998|url=http://dx.doi.org/10.1007/978-3-642-80474-8_4|work=Sicherheitskonzepte im WWW|pages=63–70|publisher=Springer Berlin Heidelberg|isbn=978-3-540-63391-4|access-date=2019-12-21}}</ref>
 
== इन्हें भी देखें ==