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'''भोज का साम्राज्य''' :
[[उदयपुर]] की ग्वालियर प्रशस्ति में लिखा है कि सम्राट भोज का राज्य उत्तर में [[हिमालय]] से, दक्षिण में मलयाचल तक और पूर्व में उदयाचल से पश्चिम में अस्ताचल तक फैला हुआ था। इस सम्बन्ध में निम्न श्लोक इस प्रकार है -
:'''आकैलासान्मलयर्गिरतोऽ स्तोदयद्रिद्वयाद्वा।'''
:'''भुक्ता पृथ्वी पृथुनरपतेस्तुल्यरूपेण येन॥१७॥'''<ref>एपिग्राफिया इंडिका.भाग.१.पृ.२३५. श्लो.१७.</ref><ref>राजा भोज. श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ. पृ. 125.इलाहाबाद.हिंदुस्थानी एकेडेमी, यु. पी.1932.</ref> कुछ विद्वानों का मत है कि सम्राट भोज का राज्य लगभग संपुर्ण भारतवर्ष पर ही था। उसका अधिकार पूर्व में डाहल या [[चेदि]], कन्नौज, काशी, बंगाल, बिहार,
उड़ीसा और आसाम तक था । दक्षिण में विदर्भ, महाराष्ट्र, कर्णाट और कांची तक तथा पश्चिम में गुजरात, सौराष्ट्र और लाट तक, तथा उत्तर में चित्तौड़ साँभर और काश्मीर तक था। [[चम्पू रामायण]] में भोज को [[विदर्भ]] का राजा कहाँ गया है और [[विदर्भराज]] की उपाधि से विभुषित किया गया है। <ref>राजा भोज. श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ.इलाहाबाद.हिंदुस्थानी एकेडेमी, यु. पी.1932.</ref><ref>धारा देवी तथा भोज.मध्यप्रदेश संदेश.4 अप्रैल 1970.पृ.१३</ref> भोज के राज्य विस्तार को दर्शाता हुआ और एक श्लोक इस प्रकार है -
:'''केदार-रामेश्वर-सोमनाथ-सुण्डीर-कालानल-रूद्रसत्कैः ।'''
:'''सुराश्रयैर्व्याप्य च यःसमन्ताद्यथार्थसंज्ञां जगतीं चकार ॥२०॥'''<ref>एपिग्राफिया इंडिका. भाग.१. पृ.२३६.श्लो.२०.</ref>
इसी से स्पष्ट है कि भोज ने अपने साम्राज्य के पूर्वी सीमा पर [[सुंदरबन]] स्थित सुण्डिर, दक्षिणी सीमा पर [[रामेश्वर]], पश्चिमी सीमा पर [[सोमनाथ]] तथा उत्तरी सीमा पर [[केदारनाथ]] सरिख विख्यात मंदिरों का निर्माण तथा पुर्ननिर्माण किया था। भोज ने काश्मीर में कुण्ड भी बनवाया था। भोज के साम्राज्य विस्तार पर विद्वानों में थोडा मतभेद हो सकता है क्योंकि भोज की साम्राज्य सीमाएं विस्तिर्ण किंतु थोड़ी अस्थिर रही। <ref>राजा भोज. श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ.इलाहाबाद.हिंदुस्थानी एकेडेमी, यु. पी.1932.</ref>
भोज का काश्मीरराज्य भी इतिहास में दर्ज है। विश्वेश्वरनाथ रेउ ने राजा भोज से सम्बन्धित राज्यों की सुचि में काश्मीरराज्य के विषय में लिखा है कि राजा भोज ने सुदूर काश्मीरराज्य के कपटेश्वर ( कोटेर ) तीर्थ में पापसूदन का कुण्ड बनवाया था और वह सदा वहीं के लाए हुए जल से मुँह धोया करता था । इसके लिये वहाँ का जल मंगवाने का पूरा पूरा प्रबन्ध किया गया था । <ref>राजा भोज. श्रीयुत विश्वेश्वरनाथ रेउ. पृ.235.इलाहाबाद.हिंदुस्थानी एकेडेमी, यु. पी.1932.</ref>