"चन्द्रशेखर आज़ाद": अवतरणों में अंतर
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इस संघ की नीतियों के अनुसार ९ अगस्त १९२५ को [[काकोरी काण्ड]] को अंजाम दिया गया। जब शाहजहाँपुर में इस योजना के बारे में चर्चा करने के लिये मीटिंग बुलायी गयी तो दल के एक मात्र सदस्य [[अशफाक उल्ला खाँ]] ने इसका विरोध किया था। उनका तर्क था कि इससे प्रशासन उनके दल को जड़ से उखाड़ने पर तुल जायेगा और ऐसा ही हुआ भी। अंग्रेज़ चन्द्रशेखर आज़ाद को तो पकड़ नहीं सके पर अन्य सर्वोच्च कार्यकर्ताओँ - पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल', अशफाक उल्ला खाँ एवं ठाकुर[[रोशन सिंह]] को १९ दिसम्बर १९२७ तथा उससे २ दिन पूर्व [[राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]] को १७ दिसम्बर १९२७ को [[फाँसी]] पर लटकाकर मार दिया गया। सभी प्रमुख कार्यकर्ताओं के पकडे जाने से इस मुकदमे के दौरान दल पाय: निष्क्रिय ही रहा। एकाध बार बिस्मिल तथा योगेश चटर्जी आदि क्रान्तिकारियों को छुड़ाने की योजना भी बनी जिसमें आज़ाद के अलावा [[भगत सिंह]] भी शामिल थे लेकिन किसी कारण वश यह योजना पूरी न हो सकी।
४ क्रान्तिकारियों को फाँसी और १६ को कड़ी कैद की सजा के बाद चन्द्रशेखर आज़ाद ने उत्तर भारत के सभी कान्तिकारियों को एकत्र कर ८ सितम्बर १९२८ को [[दिल्ली]] के फीरोज शाह कोटला मैदान में एक गुप्त सभा का आयोजन किया। इसी सभा में भगत सिंह को दल का प्रचार-प्रमुख बनाया गया। इसी सभा में यह भी तय किया गया कि सभी क्रान्तिकारी दलों को अपने-अपने उद्देश्य इस नयी पार्टी में विलय कर लेने चाहिये। पर्याप्त विचार-विमर्श के पश्चात् एकमत से ''समाजवाद'' को दल के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल घोषित करते हुए "हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसियेशन" का नाम बदलकर "हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन" रखा गया। [[चन्द्रशेखर आज़ाद]] ने सेना-प्रमुख (कमाण्डर-इन-चीफ) का दायित्व सम्हाला। इस दल के गठन के पश्चात् एक नया लक्ष्य निर्धारित किया गया - "हमारी लड़ाई
== लाला लाजपतराय का बदला ==
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