"प्रथम विश्व युद्ध": अवतरणों में अंतर

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प्रथम विश्वयुद्ध को 'लोकतंत्र की लड़ाई' भी कहा जा रहा था। ब्रिटेन ने तो आधिकारिक तौर पर ऐलान किया था कि यह युद्ध लोकतंत्र के लिए लड़ा जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति [[वुड्रो विल्सन]] भी यही चाहते थे। उन्होंने लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए 14 सूत्री मांग रखी थी। इसी कारण बहुत से [[उपनिवेश]] आजादी की उम्मीद में इस लड़ाई में इन देशों का साथ दे रहे थे। भारत में तो यह भावना बहुत मजबूत थी। इस कारण सैनिकों के जाने का समर्थन भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़े नेता भी कर रहे थे। उन्हें झटका तब लगा जब युद्ध खत्म होने पर ब्रिटेन ने इस बारे में बात करने से साफ पल्ला झाड़ लिया। जब [[रॉलैट एक्ट]] आया, जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ, युद्ध के तुरन्त बाद 1919 में ही [[गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट]] आया तो भारतीय नेताओं को बड़ी निराशा हुई।
 
इस युद्ध के बाद भारत को भले ही आजादी ना मिली हो लेकिन आजादी के लिए आन्दोलन में तेजी जरूर आ गई। भारत के नेताओं को अब ब्रिटेन पर से भरोसा उठ गया था। ब्रिटेन और फ्रांस ने सिर्फ उपनिवेशों को ही धोखा नहीं दिया बल्कि इस महायुद्ध में उनका साथ देने वाले देशों के साथ भी उन्होंने कोई अच्छा व्यवहार नहीं किया। ओर देश के प्रतीत उन्होने अपना बलिदान दिया ओर देश को स्वाभिमान दिया ऑर देश को गुलाम होने से बचा लिया ऑर लोकतन्त्र ऑर विश्व मे यह युद्द प्रथम विश्व युद्द के नाम से जाना जाता है
 
==सन्दर्भ==