"100 दिन": अवतरणों में अंतर

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| screenplay = देवज्योति रॉय
| starring = [[जैकी श्रॉफ]], <br />[[माधुरी दीक्षित]], <br />[[जावेद जाफ़री]], <br />[[लक्ष्मीकांत बेर्डे]], <br />[[मुनमुन सेन]]
| music = [[रामलक्ष्मण|राम लक्ष्मण]]
| cinematography = अरविंद लाड
| editing = ए॰आर॰ राजेंद्रन
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देवी को तब राहत मिली जब उसने अपनी बहन से बात की और पता चला की वो सकुशल है। यद्दपि उसके तुरंत बाद देवी की बहन की हत्या उसी तरह होती है जैसे देवी ने देखी थी। हत्यारे ने रमा के शव को हवेली की दीवारों में छुपा दिया। रमा को लापता घोषित कर दिया गया। देवी को पूर्ण विश्वास हो गया था कि उसकी बहन की हत्या हो चुकी है। पाँच वर्ष बाद, देवी अपने चाचा ([[अजीत वाच्छानी]]) के यहाँ रहने लगती है जहाँ वह करोड़पति व्यापारी राम कुमार ([[जैकी श्रॉफ]]) से मिलती है और उसके साथ प्रणय सूत्र में बन्ध जाती है। सुनील जो देवी से अप्रकट रूप में प्यार करता था बहुत निराश हुआ। देवी और राम का विवाह हो गया और राम की पारिवारिक हवेली में प्रवेश करते हैं, जिसे एक कानूनी लड़ाई के बाद फिर से अर्जित किया था। यह बहुत कम लोग जानते थे कि रमा को यहां दफन किया गया था। जब देवी ने आकस्मिक दृश्य देखना पुनः आरम्भ किया, रमा का कंकाल वाली दीवार ढह जाती है।
 
देवी देखती है कि हवेली की एक दीवार ढह गई है। देवी वहाँ दीवार के नीचे कंकाल को यहाँ स्व निकाल देती है। देवी यह जानती है कि यह कंकाल किसका है: यह रमा है, चूँकि उसके पास भी एक गले का हार वैसा ही था जैसा देवी के पास था। इंस्पेक्टर ([[शिवाजी साटम|शिवाजी सतम]]) तुरन्त यह बताता है कि जब रमा लापता हुई तब हवेली बन्द थी, अतः कोई भी उसके शव को यहाँ छुपा सकता है और कोई भी सच्चाई को नहीं जानता। तथापि वह संदेह करता है कि यह युवती रमा ही है क्या : ऐसे अनेक हार उपलब्द्ध हैं।
 
इस समय देवी एक और आकस्मिक दृश्य देखती है जिसमें वह एक अन्य महिला की हत्या होते हुए देखती है। यहाँ वह दो बिन्दु विवरण के साथ देखती है: एक पत्रिका जिसके आवरण पृष्ठ पर एक घोड़े का चित्र है और एक विडियो कैसेट जिसका नाम 100 दिन है। सुनील और देवी पत्रिका के कार्यालय जाते हैं। सम्पादक ने उन्हें बहुत ही विनम्रता के साथ बताया कि अगले छः माह तक आवरण पृष्ठ पर घुड़सवारी से सम्बंधित कोई चित्र नहीं लगाया जाएगा। कैसेट वाला सुराग भी निरर्थक साबित हुआ : क्योंकि बोम्बे के किसी भी विडियो की दुकान पर ऐसा शीर्षक का सामान नहीं रखता। देवी रमा के जीवन के बारे में छानबीन करने में जूट जाती है। रमा एक शोध छात्रा थी; वह भारत में प्राचीन मूर्तियों और मंदिरों पर अपना शोध पत्र (थिसिस) तैयार कर रही थी। देवी की एक त्वरित जाँच से पता चलता है कि रमा द्वारा सूचीबद्ध कई कलाकृतियाँ या तो रहस्यमय ढंग से गायब हो गयी, चोरी हो गयी या नकली वस्तुओं द्वारा प्रतिस्थापित कर दी गई। उसने यह भी पता लगा लिया कि दो जगमोहन और पार्वती नामक व्यक्ति संग्रहालय में काम करते हैं संदेह के कारण नौकरी से निकाले जा चुके हैं। पार्वती, देवी के इस दृश्य में नये शिकार के रूप में उभरी।
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* [[अजीत वाच्छानी]] - देवी के चाचा
* [[शशि किरन]] - ''प्रिया'' का सम्पादक
* [[शिवाजी साटम|शिवाजी सतम]] - पुलिस इन्सपेक्टर
* [[महावीर शाह]] - मि॰ माथुर
* [[राजा दुग्गल]] - महदेव
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| "सुन बलिये"
| [[एस॰ पी॰ बालसुब्रमण्यम|एस॰ पी॰ बालासुब्रमण्यम]], [[लता मंगेशकर]]
| दिलीप ताहिर
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"https://hi.wikipedia.org/wiki/100_दिन" से प्राप्त