"विक्रमादित्य": अवतरणों में अंतर

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महेशचंद्र जैन सील ने स्पष्ट लिखा है कि राजा विक्रमादित्य लोधी थे विक्रमादित्य भारतीय इतिहास का अनूठा 84 कलाओं से पूर्ण कवि दंतिया आज भी जिंदा है वह लोधी ही थे. अनेकों ब्रिटिश इतिहासकारों ने और प्राचीन ग्रंथों ने भी उज्जैन के चक्रवर्ती विक्रमादित्य को पोंवार या प्रमार वंश का बताया है, अतः इसमें कोई संदेह नहीं है कि विक्रमादित्य प्रमार वंशीय थे। <ref>The History of India as Told by Its Own Historians. The Mohammadan Period. The posthumous paper of H. M. Elliot. Vol.11.S. Gupta.(India)1952.</ref>
इसमें कोई संदेह नहीं है कि विक्रमादित्य अग्निवंशीय प्रमार क्षत्रिय ही थे। <ref>The history of India as told by its own Historians.vol.4.British historian pro.John Dowson. M. R. A. S. The history of India as told by its own Historians.vol.4.British historian pro.John Dowson. M. R. A. S.</ref> अद्वितीय सुंदरी और सकलसद्गुणों वाली पतिव्रता शिरोमणि महाराणी "भानुमति" देवी अवंति नरेश विक्रमादित्य की अर्धांगिनी थी।<ref>कालिदास प्रणेता. के. एस. रामस्वामी शास्त्री. पृ.६३.</ref>
हिन्दू शिशुओं में 'विक्रम' नामकरण के बढ़ते प्रचलन का श्रेय आंशिक रूप से विक्रमादित्य की लोकप्रियता और उनके जीवन के बारे में लोकप्रिय लोक कथाओं की दो श्रृंखलाओं को दिया जा सकता है। काशी विश्वविद्यालय के अध्यापक श्री ''ए.एस्.अल्टेकर'' को एक "ताम्र - पत्र" मिला था, जो विक्रम - संवत् २२३ का है । यह मालव के किसी राजा का है । इसके पढ़ने से ज्ञात होता है कि इस गजा ने शकों को परास्त कर अपनी स्वाधीनता की रक्षा की थी । इस ताम्र शासन में भी २२३ संवत् अंकित होने से यह सिद्ध हो जाता है कि चन्द्रगुप्त के अति - पूर्व ही यह संवत् पूर्णतया प्रचलित था । इस ताम्र पत्र से चन्द्रगुप्त (द्वितीय) के ही मौलि पर सर्वप्रथम विक्रमादित्य - मुकुट पहिनाने वालों की सारी मान्यतायें अपने आप खण्डित हो जाती हैं ।
 
ऐसा कहा जाता है कि '''‘अरब’''' का वास्तविक नाम '''‘अरबस्थान’''' है. '''‘अरबस्थान’''' शब्द आया संस्कृत शब्द '''‘अरवस्थान’''' से, जिसका अर्थ होता है '''‘घोड़ों की भूमि’'''. और हम सभी को पता है कि '''‘अरब’''' घोड़ों के लिए प्रसिद्ध है.