"उल्का": अवतरणों में अंतर
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== उत्पत्ति ==
एक अन्य मत में यह प्रस्तावित किया गया है कि उल्कापिंडों की उत्पत्ति ग्रहों के साथ साथ हो हुई, अथवा यों कहना चाहिए कि सौरमंडल एवं समस्त खमंडलीय पदार्थो की उत्पत्ति उल्कापिंडों से ही हुई। इस कल्पना के अनुसार आदि विश्व उल्कापिंडों से परिपूर्ण था एव कालांतर में वे पिंड विभिन्न पुंजों में एकत्रित होते गए तथा उनके अधिकाधिक घनीकरण के क्रमानुसार गैसमय नोहारिका, नक्षत्र एवं ग्रह उत्पन्न हुए। इस कल्पना की एक बड़ी त्रुटि यह प्रतीत होती है कि खमंडल में उपस्थित उल्कापिंड इतनी दूर-दूर छितराए हुए हैं तथा उनका पारस्परिक आकर्षण इतना क्षीण है कि उनके एकत्र होकर बड़ी राशि बनने में अत्यधिक समय लगेगा। किंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि एक बार पर्याप्त बड़े आकार की राशि बन जाने के बाद वह अपनी सत्ता बनाए रख सकेगा और कालांतर में और अधिक पिंडों को अपने में मिलाकर अपने आकार की वृद्धि भी कर सकेगा। संभव है, उपर्युक्त विधियों में अंशत: संशोधन करने से इनकी उत्पत्ति की वास्तविक विधि निर्धारित हो सके।
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