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पांडित्य और प्रतिभा के घनी भवभूति के नाटकों में शास्त्रों का व्यापक ज्ञान, भाषा की प्रौढ़ता, भाव की गरिमा और निरीक्षण की सूक्ष्मता के कारण सरसता के स्थान पर गांभीर्य और उदात्तता विशेष प्राप्त होती है। संभवत: इन कारणों से उस समय कवि की रचनाएँ अधिक लोकप्रिय न हो सकीं और उनके नाटकों का उस समय किसी राजसभा में अभिनय न हो सका। [[उज्जयिनी]] में के अवसर पर एकत्र पुरवासियों के समक्ष की उनके नाटकों का अभिनय हुआ और तदनंतर वे यशोवर्मा के राज्य में समादृत हुए। मालतीमाधव की प्रस्तावना में उनकी गर्वोक्ति 'ये नाम केचिदिह न: प्रथयन्त्यवज्ञाम्‌' (जो कुछ लोग मेरी अवज्ञा कर रहे हैं।..) संभवत: उन्हीं दुरालोचकों के प्रति है जिनसे ये निरादृत होते रहे।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://srijansamman.blogspot.com/2006/08/blog-post_31.html नई परम्परा के कवि भवभूति] (ललित निबंध)
 
[[श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन]]
[[श्रेणी:कवि]]
[[श्रेणी:संस्कृत]]
[[श्रेणी:संस्कृत नाटक]]