"तानाजी मालुसरे": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Tanaji Malusare.jpg|right|thumb|300px|तानाजी की प्रतिमा]]
'''तानाजी मालुसरे''' छत्रपति [[शिवाजी]] महाराज के घनिष्ठ मित्र और वीर निष्ठावान [[मराठा]] सरदार थे। वे [[शिवाजी|छत्रपति शिवाजी महाराज]] के साथ [[मराठा साम्राज्य]], [[हिंदवी स्वराज्य]] स्थापना के लिए सूबेदार (किल्लेदार) की भूमिका निभाते थे । तानाजी छत्रपति शिवाजी महाराज के बचपन के मित्र थे वे बचपन मे एक साथ खेले थे <ref>{{Cite web|url=www.bhaskar.com|title=किला जितने के बाद हुए थे मराठा सरदार वीरगति को प्राप्त, तिलक से यही मिले थे नेताजी औेर महात्मा गांधीजी.|last=भास्कर|first=दैनिक|date=०५ जुलै २०१७|website=दैनिक भास्कर|publisher=दैनिक भास्कर|language=हिंदी|archive-url=https://www.bhaskar.com/news/MH-PUN-HMU-infog-unknown-facts-of-punes-sinhagad-fort-5638564-NOR.html|archive-date=०५ जुलै २०१७|dead-url=|access-date=२४ ऑक्टोबर २०१९}}</ref> वें १६७० ई. में [[सिंहगढ़ की लड़ाई]] में अपनी महती भूमिका के लिए प्रसिद्ध हैं। उस दिन सुभेदार तानाजी मालुसरेजी के पुत्र रायबा के विवाह की तैयारी हो रही थी, तानाजी मालुसरे जी छत्रपती शिवाजी महाराज जी को आमंत्रित करने पहुंचे तब उन्हें ज्ञात हुआ की कोंढाणा पर छत्रपती शिवाजी महाराज चढ़ाई करने वाले हैं, तब तानाजी मालुसरे जी ने कहा राजे मैं कोंढाणा पर आक्रमण करुंगा |'''अपने पुत्र रायबा के विवाह''' <ref>{{Cite web|url=https://www.bhaskar.com/news/MH-PUN-HMU-infog-unknown-facts-of-punes-sinhagad-fort-5638564-NOR.html|title=किला जीतने के बाद हुए थे मराठा सरदार वीरगति को प्राप्त, याही मुले थे तिलक नेताजी एवं महात्मा गांधी जी से.|last=भास्कर|first=दैनिक|date=०५ जुलै २०१७|website=www.dainikBhaskar.com|publisher=दैनिक भास्कर|archive-url=https://www.bhaskar.com/news/MH-PUN-HMU-infog-unknown-facts-of-punes-sinhagad-fort-5638564-NOR.html|archive-date=०५ जुलै २०१७|dead-url=|access-date=२४ ऑक्टोबर २०१९}}</ref> जैसे महत्वपूर्ण कार्य को महत्व न देते हुए उन्होने शिवाजी महाराज की इच्छा का मान रखते हुए [[कोंढाणा किला]] जीतना ज़्यादा जरुरी समझा। छत्रपती शिवाजी महाराज जी की सेना मे कई सरदार थे परंतु छत्ररपतीछत्रपति शिवाजी महाराज जी ने विरवीर तानाजी मालुसरे जी को कोढानाकोंंढाना आक्ररमनआक्रमण के लिए चुना<ref>{{Cite web|url=www.dainikbhaskar.com|title=छत्रपतीछत्रपति शिवाजी महाराज ने तानाजी मालुसरे जी को कोंढाणा किल्ला पर आक्रमण के लिये चुना.|last=भास्कर|first=दैनिक|date=०५ जुलै २०१७|website=दैनिक भास्कर|publisher=Dainik Bhaskar|archive-url=https://www.bhaskar.com/news/MH-PUN-HMU-infog-unknown-facts-of-punes-sinhagad-fort-5638564-NOR.html|archive-date=०५ जुलै २०१७|dead-url=|access-date=२४ ऑक्टोबर २०१९}}</ref> और कोंढणा "स्वराज्य" में शामिल हो गया लेकिन तानाजी मारे गए थे। छत्रपति शिवाजी ने जब यह समाचार सुनी तो वो बोल पड़े "गढ़ तो जीता, लेकिन मेरा "सिंह" नहीं रहा ([[मराठी]] - ''गढ़ आला पण सिंह गेला'')।
 
तानाजीराव का जन्म १७वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के कोंकण प्रान्त में महाड के पास 'उमरथे' में हुआ था। वे बचपन से छत्रपति शिवाजी के साथी थे। ताना और शिवा एक-दूसरे को बहुत अछी तरह से जानते थे। तानाजीराव, शिवाजी के साथ हर लड़ाई में शामिल होते थे। वे शिवाजी के साथ [[औरंगजेब]] से मिलने [[Agra|Aagra]] गये थे तब औरंगजेब ने शिवाजी और तानाजी को कपट से बंदी बना लिया था। तब शिवाजी और तानाजीराव ने एक योजना बनाई और मिठाई के पिटारे में छिपकर वहां से बाहर निकल गए। ऐसे ही एक बार शिवाजी महाराज की माताजी लाल महल से कोंडाना किले की ओर देख रहीं थीं। तब शिवाजी ने उनके मन की बात पूछी तो जिजाऊ माता ने कहा कि इस किले पर लगा हरा झण्डा हमारे मन को उद्विग्न कर रहा है। उसके दूसरे दिन शिवाजी महाराज ने अपने राजसभा में सभी सैनिकों को बुलाया और पूछा कि कोंडाना किला जीतने के लिए कौन जायेगा? किसी भी अन्य सरदार और किलेदार को यह कार्य कर पाने का साहस नहीं हुआ किन्तु तानाजी ने चुनौती स्वीकार की और बोले, "मैं जीतकर लाऊंगा कोंडाना किला"।