"शिक्षण विधियाँ": अवतरणों में अंतर

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=== संश्लेषणात्मक तथा विश्लेषणात्मक ===
दूसरे दृष्टिकोण से शिक्षण विधि के दो अन्य प्रकार हो सकते हैं। पाठ्यवस्तु को उपस्थित करने का ढंग यदि ऐसा हैं कि पहले अंगों का ज्ञान देकर तब पूर्ण वस्तु का ज्ञान कराया जाता है तो उसे [[संश्लेषणात्मक विधि]] कहते हैं। जैसे [[हिंदी]] पढ़ाने में पहले वर्णमाला सिखाकर तब शब्दों का ज्ञान कराया जाता है। तत्पश्चात् शब्दों से वाक्य बनवाए जाते हैं। परंतु यदि पहले वाक्य सिखाकर तब शब्द और अंत में वर्ण आपसिखाए जाएँ तो यह [[विश्लेषणात्मक विधि]] कहलाएगी क्योंकि इसमें पूर्ण से अंगों की ओर चलते हैं।
 
=== वस्तुविधि ===
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=== प्रश्नोत्तर विधि (सुकराती विधि) ===
'''प्रश्न''' यद्यपि एक युक्ति है फिर भी सुकरात ने प्रश्नोत्तर को एक विधि के रूप में प्रयोग करके इसे अधिक महत्व प्रदान किया है। इसी से इसे '''सुकराती विधि''' कहते हैं। इसमें प्रश्नकर्ता से ही प्रश्न किए जाते हैं और उसके उत्तरों के आधार पर उसी से प्रश्न करते-करते अपेक्षित उत्तर निकलवा लिया जाता है|है।
 
=== करके सीखना ===
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=== प्रोजेक्ट विधि ===
[[अमरीका]] के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री ड्यूवी, किलपैट्रिक, स्टीवेंसन आदि के सम्मिलित प्रयास का फल '''योजना (प्रोजेक्ट) विधि''' है। इसके अनुसार ज्ञानप्राप्ति के लिए स्वाभाविक वातावरण अधिक उपयुक्त होता है। इस विधि से पढ़ाने के लिए पहले कोई समस्या ली जाती है, जो प्राय: छात्रों के द्वारा उठाई जाती है और उस समस्या का हल करने के लिए उन्हीं के द्वारा योजना बनाई जाती है और योजना को स्वाभाविक वातावरण में पूर्ण किया जाता है। इसी से इसकी परिभाषा इस प्रकार की जाती है कि योजना वह समस्यामूलक कार्य है जो स्वाभाविक वातावरण में पूर्ण किया जाए। Hum kya
 
=== डाल्टन योजना ===
अमरीका के डाल्टन नामक स्थान में 1912 से 1915 के बीच कुमारी [[हेलेन पार्खर्स्ट्र]] ने शिक्षा की एक नई विधि प्रयुक्त की जिसे '''डाल्टन योजना''' कहते हैं। यह विधि कक्षाशिक्षण के दोषों को दूर करने के लिए आविष्कृत की गई थी। डाल्टन योजना में कक्षाभवन का स्थान [[प्रयोगशाला]] ले लेती है। प्रत्येक विषय की एक प्रयोगशाला होती है, जिसमें उस विषय के अध्ययन के लिए पुस्तकें, चित्र, मानचित्र तथा अन्य सामग्री के अतिरिक्त सन्दर्भग्रंथ भी रहते हैं। विषय का विशेषज्ञ अध्यापक प्रयोगशाला में बैठकर छात्रों की सहायता करता है, उनके कार्यों की जाँच तथा संशोधन करता है। वर्ष भर का कार्य 9 या 10 भागों में बाँटक निर्धारित कार्य (असाइनमेंट) के रूप में प्रत्येक छात्र को लिखित दिया जाता है। छात्र उस निर्धारित कार्य को अपनी रुचि के अनुसार विभिन्न प्रयोगशालाओं में जाकर पूरा करता है। कार्य अन्वितियों में बँटा रहता है। जितनी अन्विति का कार्य पूरा हो जाता है उतनी का उल्लेख उसके रेखापत्र (ग्राफकार्ड) पर किया जाता है। एक मास का कार्य पूरा हो जाने पर ही दूसरे मास का निर्धारित कार्य दिया जाता है। इस प्रकार छात्र की उन्नति उसके किए हुए कार्य पर निर्भर रहती है। इस योजना में छात्रों को अपनी रुचि और सुविधा के अनुसार कार्य करने की छूट रहती है। मूल स्रोतों से अध्ययन करने के कारण उनमें स्वावलंबन भी आ जाता है। इस योजना के अनेक रूपांतर हुए जैसे- बटेविया, विनेटका आदि योजनाएँ। डेक्रौली योजना यद्यपि इससे पूर्व की है, फिर भी उसके सिद्धांतों में डाल्टन योजना के आधार पर परिवर्तन किए तथा हमारेगए।
 
=== वर्धा योजना या बुनियादी तालीम ===