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पौधों से [[भोजन]], [[ईंधन]], [[चारा]] एवं तन्तु (फाइबर) की प्राप्ति के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को '''सस्यविज्ञान''' (Agronomy) कहते हैं। सस्यविज्ञान के अन्तर्गत [[पादप अनुवांशिकी]], [[पादप क्रियाविज्ञान]], [[मौसमविज्ञान]] तथा [[मृदा विज्ञान]] समाहित हैं। यह [[जीवविज्ञान]], [[रसायन विज्ञान]], [[अर्थशास्त्र]], [[पर्यावरण]], [[मृदा विज्ञान]] तथा [[आनुवांशिकी]] आदि विषयों का सम्मिलित अनुप्रयोग है। वर्तमान में सस्यवैज्ञानिक अनेकों कार्यों में संलग्न हैं, जैसे- अन्न उत्पादन, अधिक स्वास्थ्यकर भोजन का उत्पादन, पादपों से [[ऊर्जा]] का उत्पादन आदि। सस्यवैज्ञानिक प्रायः [[सस्य आवर्तन]] (crop rotation), [[सिंचाई]] एवं [[जलनिकास]], [[पादप प्रजनन]], [[पादपकार्यिकी]] (plant physiology), [[मृदा]]-[[वर्गीकरण]], मृदा-उर्वरकता, [[खरपतवार]]-प्रबन्धन, कीट-प्रबन्धन आदि में विशेषज्ञता प्राप्त करते हैं।
 
फसल उत्पादन के लिए भूमि पर जितने कार्य किये जाते हैं उसे कृषि कहते हैं और इनके विशिष्ट ज्ञान को कृषि विज्ञानं कहते हैं।
सी. आर. बाल के शब्दों में- "सस्य विज्ञान वह कला एवं विज्ञान है जिसके अंतर्गत भूमि का वैज्ञानिक ढंग से प्रबंध तथा पौधों को उगाने का प्रयत्न किया जाता है,जिससे कि भूमि, पानी तथा प्रकाश की प्रत्येक इकाई से कम से कम खर्चे के साथ ,भूमि की उर्वरा शक्ति को स्थिर रखकर, अधिक से अधिक तथा ऐक्षिक किस्म की फसल का उत्पादन किया जा सके।"
 
सस्य विज्ञानं (Agronomy) शब्द ग्रीक भाषा के एग्रोस (Agros) एवं नोमोस (Nomos) से मिलकर बना है। जिसमें एग्रोस का अर्थ होता है - '''"खेत"''' तथा '''नोमोस''' का अर्थ है '''"प्रबंध"''' अर्थात '''एग्रोनोमोस''' (Agronomos) का अर्थ है '<nowiki/>'''भूमि का प्रबंध''''।
 
'''परिभाषा (Definition) :-'''
 
१. "सस्य विज्ञानं कृषि की एक विशेष शाखा है जो फसल उत्पादन और भूमि प्रबंध से सम्बन्ध रखती है। "
 
२. "सस्य विज्ञानं कृषि की एक महत्वपूर्ण शाखा है जो फसल उत्पादन एवं भूमि प्रबंध की विभिन्न क्रियाओं की कला दक्षता एवं वैज्ञानिक सिद्धांतों का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करती है।"
 
सस्य विज्ञानं का क्षेत्र एवं महत्त्व :
 
यह सच है की मनुष्य की अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति फसलों द्वारा की जाती है, लेकिन भारत जैसे देश में जनसँख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस बढ़ती जनसँख्या की आवश्यकता की पूर्ति एक समस्या है। इस समस्या का समाधान निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है -
 
१. भूमि को बढाकर, जोकि संभव नहीं है।
 
२. प्रति इकाई क्षेत्र में सघन खेती करना, इस विधि से समस्या का जल्दी समाधान हो सकता है।
 
* हमारे देश में उर्वरकों, सिंचाई,फसल सुरक्षा तथा कृषि तकनीकी का ज्ञान कम है तथा फसलों का उत्पादन भी विदेशों की अपेक्षा कई गुना कम है।
* फसल की उपज पर विभिन्न कारकों जैसे - जलवायु, मृदा, खेत की तैयारी, बुआई का समय, फसल की जातियां, बुआई का तरीका, खाद व सिंचाई की मात्रा, खरपतवार, बीमारी, कटाई, मड़ाई आदि का प्रभाव पड़ता है।  
* उपरोक्त सभी कारकों को ठीक करके उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।
* सस्य विज्ञान विषय को अलग से स्वतंत्र रूप से वर्ष 1900 में मान्यता प्राप्त हुई।
* सर्वप्रथम वर्ष १९०८ में अमेरिकन सोसाइटी ऑफ़ एग्रोनोमी की स्थापना हुई।
* भारत में इंडियन सोसाइटी ऑफ़ एग्रोनोमी की स्थापना वर्ष 1955 में हुई।
 
'''भारत (India) में उगाई जाने वाली फसलों को निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है-[https://hindimeguide.blogspot.com/2019/01/farmer-information-abt.-agriculture.html]'''
 
'''मौसम के आधार पर :-'''
 
ऋतुओं के आधार पर फसलों को तीन वर्गों में बांटा गया है :-
 
(i) '''खरीफ:''' इस वर्ग की फसलों को बोते समय अधिक तापक्रम तथा आर्द्रता व पकते समय शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है। इन फसलों का न्यूनतम तापक्रम 15 डिग्री सेंटीग्रेट से 19 डिग्री सेंटीग्रेट व अनुकूलन तापक्रम 32 डिग्री सेंटीग्रेट से ३६ डिग्री सेंटीग्रेट तथा अधितम तापक्रम 37 डिग्री सेंटीग्रेट से 45 डिग्री सेंटीग्रेट होता है। खरीफ की फसलें सर्दियों की शुरुआत (जून-जुलाई से अक्टूबर-नवंबर) तक मानसून की शुरुआत के साथ उगाई जाती हैं। इस वर्ग में मुख्य रूप से धान, मक्का, ज्वार, लोबिया, जूट, बाजरा, कपास, मूंगफली, मूंग, उड़द आदि खरीफ की फसलें हैं।
 
(ii) '''रबी:''' इस वर्ग की फसलों को बोते समय अपेक्षाकृत कम तापमान तथा पकते समय अधिक तापमान व शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है। रबी की फसलें गर्मियों की शुरुआत (अक्टूबर-नवंबर से मार्च-अप्रैल) तक सर्दियों की शुरुआत के साथ बोई जाती हैं। गेहूं, जौ, चना और तिलहन, राई, जई  रबी की मुख्य फसलें हैं।
 
(iii) '''जायद :''' इस वर्ग की फसलों में गर्म शुष्क मौसम को सहन करने की क्षमता होती है। जायद की फसलें गर्मियों के छोटे मौसम में उगाई जाती हैं। तरबूज और खीरे,ककड़ी  जायद की फसलें हैं।
 
'''पौधों के जीवन चक्र के आधार पर वर्गीकरण :-[https://hindimeguide.blogspot.com/]'''
 
'''1. एक वर्षीय फसलें :-''' जो फसलें अपना जीवन चक्र एक वर्ष के अंदरपूरा कर लेती हैं। जैसे - गेंहूं, चना, जौ, सोयाबीन आदि।
 
'''2. द्वि वर्षीय फसलें :-'''
 
जो फसलें अपना जीवन चक्र दो वर्ष के अंदर पूरा करती हैं, अर्थात पहले वर्ष में वृद्धि और दूसरे वर्ष में बीज उत्पादन करती हैं। जैसे - चुकंदर आदि।
 
'''3. बहुवर्षीय फसलें :-''' इस वर्ग में फसलें अनेक वर्षों तक जीवित रहने की क्षमता रखती हैं। जैसे - लूसर्न, नैपियर घास आदि।
 
'''फसलों का आर्थिक वर्गीकरण :-'''
 
'''1. अनाज वाली फसलें :-''' इन फसलों के दाने मनुष्यों और पशुओं के आहार के प्रयोग में लाये जाते हैं और वानस्पतिक भाग पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग किये जाते हैं।  जैसे - गेंहूं, मक्का, बाजरा, जौ,जई आदि।
 
'''2.दलहनी फसलें :-''' इस वर्ग की फसलें प्रोटीन की धनी होती हैं। जैसे - मूंग, उर्द, मसूर, चना, मटर, अरहर आदि।
 
'''3.तिलहनी फसलें :-''' इस वर्ग की फसलें मुख्यतः तेल के लिए उगाई जाती हैं। जैसे - सूरजमुखी, तिल, राई, मूंगफली, अरंडी आदि।
 
'''4.रेशे वाली फसलें :-''' इस वर्ग की फसलों से रेशा प्राप्त किया जाता है, जो टाट, बोरी, रस्सी, दरी बनाने के लिए काम आता है। जैसे - जूट, कपास, सनई, पटसन आदि।
 
'''5.शर्करा वाली फसलें :-''' इस वर्ग की फसलों से चीनी प्राप्त की जाती है।  जैसे - गन्ना, चुकंदर आदि।
 
'''6.सब्जी वाली फसलें :-''' ये फसलें सब्जी के लिए उगाई जाती हैं। जैसे - टमाटर, भिंडी, बैंगन, लौकी, गाजर, मूली, पालक, फूलगोभी आदि।
 
'''7.चारे वाली फसलें :-'''  इस वर्ग की फसलें पशुओं को चारे के उद्देश्य से उगाई जाती हैं , जैसे - बरसीम, लोबिया, ज्वार, नैपियर, जई, बाजरा आदि।
 
'''8.मसाले व औषधि वाली फसलें :-''' इन फसलों को उगाने का उद्देश्य मसाले व औषधि प्राप्त करना है। जैसे - जीरा, सौंफ, मिर्च, धनिया, अजवायन, मेथी, हल्दी, प्याज, पोदीना, अदरख आदि।
 
'''9.उद्दीपक फसलें :-''' इस वर्ग में तम्बाकू, चाय, कॉफ़ी, पोस्त आदि आते हैं।
 
'''10.फलों वाली फसलें :-''' इस वर्ग में तरबूजा, खरबूज, खीरा, सिंघाड़ा आदि।   
 
 
== बाहरी कड़ियाँ ==